Friday, November 14, 2014

"जादू रो पेन" के लिए साहित्य अकादेमी बाल साहित्य पुरस्कार 2014





मेरी पुरस्कृत राजस्थानी बाल-कहानियों की पुस्तक का नाम “जादू रो पेन” यानी जादुई पेन है। इसे जादू नहीं तो क्या कहेंगे कि किसी रचना की पहली पंक्ति, यहां तक कि किसी शब्द को चयनित करते हुए भी कुछ सहमा और निरंतर संदेह से जूझने वाला यह लेखक आज यहां उपस्थित है। आगे कुछ कहने से पूर्व राजस्थानी के संयोजक डॉ. अर्जुनदेव चारण, परामर्श मंडल, चयन समिति और पूरे साहित्य अकादेमी परिवार आभार प्रदर्शित करता चलूं। अंत में आभार औपचारिक लगाता है।
किसी भी प्रकार का ज्ञान सदैव हमारे आनंद का हनन करता है। बाल साहित्य के संदर्भ में यह उक्ति कुछ अधिक अर्थवान सिद्ध हुई है। शब्दों की दुनिया में आज अनेक खतरे और संकट महसूस किए जा सकते हैं। प्रत्येक लेखक अपने शब्दों से एक संसार गढ़ता है। इस शब्द-संसार के विषय में मैं कहना चाहता हूं कि हमारे गढ़े जाने के बाद, दूसरे समय में कोई अंतर और अंतराल क्यों होता है। मेरी आकांक्षा ऐसे शब्द हैं जो मेरे भावों से किसी विषयांतर को दूर रखे। किसी बात का अलग रूप में पहुंचना अथवा नहीं पहुंचना किस की कमी है? आज भूमंडलीकरण के इस दौर में बाल साहित्य विमर्श अनिवार्य है। यांत्रिकता और मूल्यों के बदलाव ने बाल मन को भी नहीं छोड़ा है। ऐसा लगता है कि पुराने अर्थ शब्दों को अलविदा कह रहे हैं। इस नए समय में कुछ नया करने की आवश्यकता है। युग सापेक्ष सृजन हेतु जहां स्व-मूल्यांकन की आवश्यता है वहीं यह भी सोचना जरूरी है कि क्या हम हमारी पुरानी दुनिया बच्चों को सौंपना चाहते हैं, या बदलती दुनिया से मुकाबला करने की जिम्मेदारी और जबाबदेही हेतु उनको समर्थ बनाना चाहते हैं।
आज मुझे मेरी बाल-स्मृतियों बुला रही है। उस समय की बहुत सारी बातों को आज याद नहीं किया जा सकता। वे बहुत सी बातें भीतर कहीं लुप्त हो गई हैं। उस दौर में कभी यह सोचा न था कि साहित्य अकादेमी पुरस्कार के अभिभाषण में मेरा बचपन मुझे आवाज देगा। मेरी अब तक की साहित्य-यात्रा अनेकानेक विवरणों का रोमांचकारी समुच्चय है। मैं लेखक क्यों हूं? जब इस सवाल के बारे में सोचता हूं तो लगता है कि मैंने लेखन को विरासत के रूप में अंगीकार किया है। मेरे पिता साहित्य अकादेमी के मुख्य पुरस्कार से सम्मानित राजस्थानी के प्रख्यात कहानीकार श्री सांवर दइया से मैंने लेखन की विधिवत शिक्षा-दीक्षा तो नहीं पाई, बस उनके अध्ययन-कक्ष से कुछ किताबें पढ़कर कोई बीज बना होगा। बाल पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकालय के प्रति मेरी रुचि ने जिस मार्ग तक पहुंचाया, उसमें मेरे शिक्षकों और पिता के साहित्यिक-लगाव ने मुझे वह पर्यावरण दिया। जहां मैं कुछ आधारभूत बातें सीख सका। मेरे अनुभव ने बल प्रदान किया कि कुछ लिखने से पहले पढ़ना जरूरी है।
वर्ष 1982 के बाद का कोई समय है जो स्मृति-पटल पर अब भी अंकित है। मेरे पिता हिंदी शिक्षक के रूप में जिस विद्यालय में सेवारत थे, उसकी नवमीं कक्षा में मैंने प्रवेश लिया था। एक दिन प्रातः कालीन प्रार्थना सभा में हमें सूचना दी गई कि सांवर दइया जी को राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी का पुरस्कार उनके कहानी संग्रह के लिए घोषित किया गया है। उसी दौर में कवि कन्हैयालाल सेठिया की कृति “मायड़ रो हेलो” से मातृभाषा राजस्थानी से लगाव में अभिवृद्धि हुई। साथ ही राजस्थानी भाषा और साहित्य के उन्नयन के लिए श्री रावत सारस्वत और श्रीलाल नथमल जोशी द्वारा चलाए गए उल्लेखनीय अभियान भी मेरी बाल-स्मृति में है। राजस्थानी के प्रचार-प्रसार के उस दौर में जैसे मुझे मेरा कोई सीधा मार्ग मिल रहा था। सच तो यह है कि उस समय ऐसा लगा कि मैं अब तक किसी असुविधाजनक मार्ग पर था, और जैसे इन सब बातों-घटनाओं ने मेरी अंगुली मेरी भाषा को थमा दी। मेरे लेखन में लगभग दस वर्षों का आरंभिक काल बड़ा आनंदमय रहा। ‘जादू रो पेन’ की अधिकांश रचनाएं उसी समय लिखी गई।
मेरी बाल कहानियों में बाल-स्मृतियों की विभिन्न घटनाएं कहानियों के रूप में प्रकट हुई है। मुझे लगता है कि बाल साहित्य लेखन के लिए जिस बालमन की आवश्यकता होती है, वह मुझे अपने घर-परिवार में सहजता से सुलभ हुआ। राजस्थानी की लोकप्रिय मासिक पत्रिका “माणक” ने इन बाल कहानियों को प्रकाशित कर मुझे बाल साहित्य के लेखक के रूप में नाम दिया। कुछ बाल कहानियां मैंने बाद लिखी, उसके बारे में मुझे लगता है उनमें अभिव्यक्त आनंद, मेरे अपने ज्ञान से मुक्त नहीं है। बालकों के लिए लिखने के लिए बालक बन कर उन जैसी सहजता, सरलता और निश्छलता पाना आवश्यक है।
प्रकाशन-संकट व पत्र-पत्रिकाओं के अभाव का कारण राजस्थानी भाषा को सरकारी संरक्षण नहीं मिलना है। कोई लेखक क्यों और किस के लिए लिखें? लगभग दस वर्षों से अधिक समय ‘जादू रो पेन’ के प्रकाशन में लगा। इसका प्रकाशन जैसे किसी मृत पांडुलिपि में प्राणों का संचार होना था, वहीं मेरे बाल साहित्यकार का दूसरा जन्म भी। राजस्थानी में जयंत निर्वाण, बी.एल. माली, भंवरलाल भ्रमर, आनंद वी. आचार्य, रामनिरजंन ठिमाऊ, दीनदयाल शर्मा, नवनीत पाण्डे, हरीश बी. शर्मा, मदन गोपाल लढ़ा, विमला भंडारी, रवि पुरोहित आदि लेखक बाल साहित्य की विविध विधाओं में सक्रिय है। यह सच है कि इन वर्षों मैं बाल-साहित्य नहीं लिख पाया। बाल साहित्य लिखना आज के दौर में बड़ों के साहित्य-लेखन से भी मुश्किल हो गया है। अनेक प्रश्नों और आशंकाओं ने मुझे घेर रखा है। ऐसा क्यों हुआ? यह तो मैं नहीं जानता, किंतु लगता है कि मैं अब अभय होकर नहीं लिख सकता। शायद यह भय स्वयं को एक जिम्मेदार लेखक मानने से भीतर लद गया है। गत वर्षों में मैंने कविता, आलोचना और अनुवाद के क्षेत्र में कुछ काम करने का प्रयास किया है। मुझे लगता है कि मेरा लेखन मेरे दिवंगत लेखक पिता को फिर-फिर अपने भीतर जीवित करने और स्वयं को ऊर्जावान करने का उपक्रम है। वर्तमान दौर में लेखन को कार्य के रूप में सामाजिक मान्यता नहीं है। हमारी चिंता होनी चाहिए कि समाज में लेखन को पर्याप्त सम्मान मिले।
जटिल से जटिलतर होते जा रहे इस समय में सरल कुछ भी नहीं, सरलता कहीं भी नहीं। ऐसे में बाल साहित्य लेखन से जुड़ी हमारी जिम्मेदारियां और अपेक्षाएं निश्चय ही अपरिमित है। यह जिम्मेदारी मैं इस रूप में भी ग्रहण करता हूं कि बच्चों में आयु-विभेद से जुड़ी जटिलताएं और विभेदीकरण के बिंदु कुछ अधिक मिलते हैं। हम लिखते तो बच्चों का साहित्य है किंतु अकसर वह किसी वर्ग विशेष अथवा आयु विशेष के लिए सिमट कर रह जाने की त्रासदी भोगता है।
मेरा मानना है कि किसी भी युवा, प्रौढ़ अथवा वृद्ध के भीतर का उसका बचपन सदा-सदा हरा रहता है, और इस रूप में सभी के अंतस में एक बालमन जीवित रहता है। बाल साहित्य के पाठक केवल बच्चे ही नहीं है। इसमें बड़े बच्चे और बूढ़े भी शामिल हैं। ऐसे में इस समग्र-पाठक संसार से एक उभयनिष्ट छोटे संसार को हमें पहचानना है। पाठक के रूप में बालक-बालिका या कुछ चयनित समूह के बच्चों की परिकल्पना मैं करता हूं। जब मैं लिखता हूं तो मुझे यह भी ज्ञान होना चाहिए कि मैं किस के लिए लिख रहा हूं। किसी इकाई के रूप में हर रचना से पहले यह विचार करना मुझे आवश्यक जान पड़ता है। किसी आदर्श और उभयनिष्ट इकाई को स्वीकारना बाल साहित्य के परिपेक्ष्य में सरल कार्य नहीं है।
मैं जिस भाषा और प्रदेश का लेखक हूं वहां मेरे सामने आ रही चुनौतियों का अंदाजा आप इस रूप में लगा सकते हैं कि एक समय हिंदी के हित में शहीद की गई मेरी मातृ-भाषा राजस्थानी आज भी रोती-बिलखती है। उसे अपने बच्चों और घर-परिवार से अलग रखा गया है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम साहित अनेक शिक्षा समितियों के प्रबल प्रावधानों के बावजूद प्राथमिक शिक्षा के अंतर्गत हमारे बच्चे को अपनी मातृभाषा से वंचित रखा गया है। कुछ सीखने और सहजता से पढ़ने की उम्र में बच्चों का सामना अनेकानेक उलझनों से होता है। घर की भाषा और स्कूल की भाषा में अंतर है। बच्चे कुंठित और दुविधाग्रस्त है। उनका सर्वांगीण विकास भाषा के अभाव में कैसे संभव है? बच्चों के माता-पिता के सामने इन सब बातों की तुलना में बड़ा संकट रोजगार का है। अभावों में निरंतर जीवनयापन करते परिवारों के बच्चे निरंतर स्कूल को अलविदा कहते जा रहे हैं। वहां ऐसे समय में कोई जादू काम नहीं कर सकता।
यकीनन जैसा कि मैंने आरंभ में कहा कि मुझे बचपन में बहुत बाद में अपनी मातृभाषा की अंगुली थामने का सुख मिला। किसी भाषा को मां के रूप में स्वीकार किए जाने की अहमियत का अहसास मिलना बहुत जरूरी है। वही अहसास मैं अपनी भाषा में लिख कर अपने नन्हें दोस्तों को देना चाहता हूं। मैं राजस्थानी में इसलिए लिखता हूं। आज साहित्य अकादेमी के इस मंच से मेरे प्रदेश के उन सवा एक करोड़ से अधिक बच्चों की तरफ से मैं यह पुरजोर मांग करता हूं कि उनकों उनके अधिकार दिए जाए। मेरे इस उद्बोाधन की अंतिम पंक्ति पर आप सभी का समर्थन चाहूंगा- क्या हमारी यह मांग जायज नहीं कि राजस्थान के बच्चों की प्राथमिक शिक्षा उनकी अपनी मातृभाषा में होनी चाहिए।
(साहित्य अकादेमी बाल साहित्य पुरस्कार को ग्रहण करने के बाद दिया गया संभाषण)




0 टिप्पणियाँ:

Post a Comment

डॉ. नीरज दइया की प्रकाशित पुस्तकें :

हिंदी में-

कविता संग्रह : उचटी हुई नींद (2013), रक्त में घुली हुई भाषा (चयन और भाषांतरण- डॉ. मदन गोपाल लढ़ा) 2020
साक्षात्कर : सृजन-संवाद (2020)
व्यंग्य संग्रह : पंच काका के जेबी बच्चे (2017), टांय-टांय फिस्स (2017)
आलोचना पुस्तकें : बुलाकी शर्मा के सृजन-सरोकार (2017), मधु आचार्य ‘आशावादी’ के सृजन-सरोकार (2017), कागद की कविताई (2018), राजस्थानी साहित्य का समकाल (2020)
संपादित पुस्तकें : आधुनिक लघुकथाएं, राजस्थानी कहानी का वर्तमान, 101 राजस्थानी कहानियां, नन्द जी से हथाई (साक्षात्कार)
अनूदित पुस्तकें : मोहन आलोक का कविता संग्रह ग-गीत और मधु आचार्य ‘आशावादी’ का उपन्यास, रेत में नहाया है मन (राजस्थानी के 51 कवियों की चयनित कविताओं का अनुवाद)
शोध-ग्रंथ : निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध
अंग्रेजी में : Language Fused In Blood (Dr. Neeraj Daiya) Translated by Rajni Chhabra 2018

राजस्थानी में-

कविता संग्रह : साख (1997), देसूंटो (2000), पाछो कुण आसी (2015)
आलोचना पुस्तकें : आलोचना रै आंगणै(2011) , बिना हासलपाई (2014), आंगळी-सीध (2020)
लघुकथा संग्रह : भोर सूं आथण तांई (1989)
बालकथा संग्रह : जादू रो पेन (2012)
संपादित पुस्तकें : मंडाण (51 युवा कवियों की कविताएं), मोहन आलोक री कहाणियां, कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां, देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां
अनूदित पुस्तकें : निर्मल वर्मा और ओम गोस्वामी के कहानी संग्रह ; भोलाभाई पटेल का यात्रा-वृतांत ; अमृता प्रीतम का कविता संग्रह ; नंदकिशोर आचार्य, सुधीर सक्सेना और संजीव कुमार की चयनित कविताओं का संचयन-अनुवाद और ‘सबद नाद’ (भारतीय भाषाओं की कविताओं का संग्रह)

नेगचार 48

नेगचार 48
संपादक - नीरज दइया

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"
श्री सांवर दइया; 10 अक्टूबर,1948 - 30 जुलाई,1992

डॉ. नीरज दइया (1968)
© Dr. Neeraj Daiya. Powered by Blogger.

आंगळी-सीध

आलोचना रै आंगणै

Labels

101 राजस्थानी कहानियां 2011 2020 JIPL 2021 अकादमी पुरस्कार अगनसिनान अंग्रेजी अनुवाद अतिथि संपादक अतुल कनक अनिरुद्ध उमट अनुवाद अनुवाद पुरस्कार अनुश्री राठौड़ अन्नाराम सुदामा अपरंच अब्दुल वहीद 'कमल' अम्बिकादत्त अरविन्द सिंह आशिया अर्जुनदेव चारण आईदान सिंह भाटी आईदानसिंह भाटी आकाशवाणी बीकानेर आत्मकथ्य आपणी भाषा आलेख आलोचना आलोचना रै आंगणै उचटी हुई नींद उचटी हुई नींद. नीरज दइया उड़िया लघुकथा उपन्यास ऊंडै अंधारै कठैई ओम एक्सप्रेस ओम पुरोहित 'कागद' ओळूं री अंवेर कथारंग कन्हैयालाल भाटी कन्हैयालाल भाटी कहाणियां कविता कविता कोश योगदानकर्ता सम्मान 2011 कविता पोस्टर कविता महोत्सव कविता-पाठ कविताएं कहाणी-जातरा कहाणीकार कहानी काव्य-पाठ किताब भेंट कुँअर रवीन्द्र कुंदन माली कुंवर रवीन्द्र कृति ओर कृति-भेंट खारा पानी गणतंत्रता दिवस गद्य कविता गली हसनपुरा गवाड़ गोपाल राजगोपाल घिर घिर चेतै आवूंला म्हैं घोषणा चित्र चीनी कहाणी चेखव की बंदूक छगनलाल व्यास जागती जोत जादू रो पेन जितेन्द्र निर्मोही जै जै राजस्थान डा. नीरज दइया डायरी डेली न्यूज डॉ. अजय जोशी डॉ. तैस्सितोरी जयंती डॉ. नीरज दइया डॉ. राजेश व्यास डॉ. लालित्य ललित डॉ. संजीव कुमार तहलका तेजसिंह जोधा तैस्सीतोरी अवार्ड 2015 थार-सप्तक दिल्ली दिवाली दीनदयाल शर्मा दुनिया इन दिनों दुलाराम सहारण दुलाराम सारण दुष्यंत जोशी दूरदर्शन दूरदर्शन जयपुर देवकिशन राजपुरोहित देवदास रांकावत देशनोक करणी मंदिर दैनिक भास्कर दैनिक हाईलाईन सूरतगढ़ नगर निगम बीकानेर नगर विरासत सम्मान नंद भारद्वाज नन्‍द भारद्वाज नमामीशंकर आचार्य नवनीत पाण्डे नवलेखन नागराज शर्मा नानूराम संस्कर्ता निर्मल वर्मा निवेदिता भावसार निशांत नीरज दइया नेगचार नेगचार पत्रिका पठक पीठ पत्र वाचन पत्र-वाचन पत्रकारिता पुरस्कार पद्मजा शर्मा परख पाछो कुण आसी पाठक पीठ पारस अरोड़ा पुण्यतिथि पुरस्कार पुस्तक समीक्षा पुस्तक-समीक्षा पूरन सरमा पूर्ण शर्मा ‘पूरण’ पोथी परख प्रज्ञालय संस्थान प्रमोद कुमार शर्मा फोटो फ्लैप मैटर बंतळ बलाकी शर्मा बसंती पंवार बातचीत बाल कहानी बाल साहित्य बाल साहित्य पुरस्कार बाल साहित्य समीक्षा बाल साहित्य सम्मेलन बिणजारो बिना हासलपाई बीकानेर अंक बीकानेर उत्सव बीकानेर कला एवं साहित्य उत्सव बुलाकी शर्मा बुलाकीदास "बावरा" भंवरलाल ‘भ्रमर’ भवानीशंकर व्यास ‘विनोद’ भारत स्काउट व गाइड भारतीय कविता प्रसंग भाषण भूमिका मंगत बादल मंडाण मदन गोपाल लढ़ा मदन सैनी मधु आचार्य मधु आचार्य ‘आशावादी’ मनोज कुमार स्वामी मराठी में कविताएं महेन्द्र खड़गावत माणक माणक : जून मीठेस निरमोही मुकेश पोपली मुक्ति मुक्ति संस्था मुरलीधर व्यास ‘राजस्थानी’ मुलाकात मोनिका गौड़ मोहन आलोक मौन से बतकही युगपक्ष युवा कविता रक्त में घुली हुई भाषा रजनी छाबड़ा रजनी मोरवाल रतन जांगिड़ रमेसर गोदारा रवि पुरोहित रवींद्र कुमार यादव राज हीरामन राजकोट राजस्थली राजस्थान पत्रिका राजस्थान सम्राट राजस्थानी राजस्थानी अकादमी बीकनेर राजस्थानी कविता राजस्थानी कविता में लोक राजस्थानी कविताएं राजस्थानी कवितावां राजस्थानी कहाणी राजस्थानी कहानी राजस्थानी भाषा राजस्थानी भाषा का सवाल राजस्थानी युवा लेखक संघ राजस्थानी साहित्यकार राजेंद्र जोशी राजेन्द्र जोशी राजेन्द्र शर्मा रामपालसिंह राजपुरोहित रीना मेनारिया रेत में नहाया है मन लघुकथा लघुकथा-पाठ लालित्य ललित लोक विरासत लोकार्पण लोकार्पण समारोह विचार-विमर्श विजय शंकर आचार्य वेद व्यास व्यंग्य व्यंग्य-यात्रा शंकरसिंह राजपुरोहित शतदल शिक्षक दिवस प्रकाशन श्याम जांगिड़ श्रद्धांजलि-सभा श्रीलाल नथमल जोशी श्रीलाल नथमलजी जोशी संजय पुरोहित संजू श्रीमाली सतीश छिम्पा संतोष अलेक्स संतोष चौधरी सत्यदेव सवितेंद्र सत्यनारायण सत्यनारायण सोनी समाचार समापन समारोह सम्मान सम्मान-पुरस्कार सम्मान-समारोह सरदार अली पडि़हार संवाद सवालों में जिंदगी साक्षात्कार साख अर सीख सांझी विरासत सावण बीकानेर सांवर दइया सांवर दइया जयंति सांवर दइया जयंती सांवर दइया पुण्यतिथि सांवर दैया साहित्य अकादेमी साहित्य अकादेमी पुरस्कार साहित्य सम्मान सीताराम महर्षि सुधीर सक्सेना सूरतगढ़ सृजन कुंज सृजन संवाद सृजन साक्षात्कार हम लोग हरदर्शन सहगल हरिचरण अहरवाल हरीश बी. शर्मा हिंदी अनुवाद हिंदी कविताएं हिंदी कार्यशाला होकर भी नहीं है जो