विनायक सोमवार "रंग राजस्थानी" 25 अगस्त 2014
बाल साहित्य बजार मांय ऊभा होय’र हरजस गावणो है - डॉ. नीरज दइया
बाल साहित्य बजार मांय ऊभा होय’र हरजस गावणो है - डॉ. नीरज दइया
(साहित्य अकादेमी नई दिल्ली रै बाल साहित्य पुरस्कार सूं पुरस्कृत बाल कहाणियां री पोथी जादू रो पेन रा लेखक डॉ. नीरज दइया सूं युवा साहित्यकार संजय पुरोहित री बात-बतळावण।)
साहित्य अकादेमी सूं डॉ. नीरज दइया नै बाल साहित्य पुरस्कार री घोषणा माथै आलोचक दइया री पैली प्रतिक्रिया कांई रैयी?
आपां जिकै समाज मांय रैवां उण मांय पुरस्कार बस उण सिरजण री ओळखाण हुवै।
अर बाल साहित्यकार नीरज दइया नै किंया कांई लाग्यो?
पुरस्कार खारो किण नै लागै, आ साहित्य मांय अेक ढाळै री दावती है। पण आपनै बतावूं कै जादू रो पेन री कहाणियां बरसां पैली लिखी अर घणखरी तो माणक मासिक मांय छप्योड़ी है। आ किताब बरसां पैली पांडुलिपि रूप तैयार करीज पण प्रकाशन रो जोग घणी दफै टळतो गयो। मुन्ना भाई साब यानी आदरजोग सूर्यप्रकाश बिस्सा इण नै प्रकाशित करणी चावतां हा, कंपोज हुयगी प्रूफ पढीजग्या पण छपसी-छपसी करता छपी कोनी। पछै अेक दूजै प्रकाशन मांय केई बरस पड़ी रैयी। अबै जठै सूं प्रकाशित है उण प्रकाशक जी पाखती आ पोथी आठ बरस तांई पड़ी रैयी। इण बिचाळै म्हैं अर प्रकाशक जी जूनै घर सूं नवै घर मांय आयग्या। म्हैं नौकरी रै चक्कर मांय राजकोट, सूरतगढ़ सूं बीकानेर पूगग्यो। बाल साहित्य री इण पोथी पेटै लगोलग चरचा करता रैयी... बस छप रैयी है... बस छप रैयी है। सेवट छपी। म्हनै लखावै कै ओ पुरस्कार म्हारै धीजै नै मिल्यो है।
टैम माथै पोथी नीं छपण सूं कांई नफो-नुकसाण रैयो?
टैम माथै पोथी नीं छप्या लेखन रो जोस मोळो पड़तो जावै। लिखणो सरल काम कोनी अर बाल-साहित्य लेखन तो घणो अबखो काम है। बाल साहित्य नै बीजा विधावां करता कमती गंभीर मान्यो जावै। आं सगळी घटनावां सूं विग्यान रै इण जुग मांय कैवणो पड़ै कै होणी नै जिको मंजूर हुवै बो हुवै। लेखक रूप म्हैं म्हारो काम मांय कमी कोनी राखी। बरसां पैली पोथी रो आज सम्मान इण बात रो संकेत है कै आं कहाणियां मांय आपरै बगत मांय जीवण री ताकत ही अर रैवैला।
किताबां छपण मांय इण ढाळै री अबखायां क्यूं है? आपनै कांई लखावै कै किताबां रा पाठक कोनी का बजार कोनी?
लेखन अर प्रकाशन मांय जिण नै फायदो कैवां बो काम नै देखता बेजा कमती है। फगत लेखन अर प्रकाशन सूं रोटी रो जुगाड़ करणिया साव कमती लाधैला.... लिखणो, छापणो अर छापणो तीनूं ई वायरस है। इण नै आप रोग कैय सको। लिखणियां नै लिख्या-छप्या बिना चैन कोनी मिलै अर छापणियां ई धुन रा असवार है। फूल सारू पांखड़ी री उम्मीद मांय पोथ्यां छापै अर कदै कदास किणी किताब रै भाग मांय कोई लोटरी ई निकळ जावै। राजस्थानी मांय लिखणो-पढणो असल मांय असूल री बात है। म्हारी भाषा जिण नै मान्यता कोनी अर टाबरां री स्कूली भाषा दूजी है, इण अबखी बेळा जद बां री भाषा माथै कीं बेसी संकट है बाल साहित्य सूं जुड़ाव उणां री भाषा नै बचावण रो जतन है। आ बात समझण अर समझण सूं बेसी कीं करण री है। टाबर तो भगवान रो रूप मानीजै सो आपां कैय सकां कै बाल साहित्य बजार मांय ऊभा होय’र हरजस गावणो है। मोटो सवाल ओ है कै आज बालकां री भाषा अर संस्कारां री चिंता किण नै है?
आप री बात साव खरी है पण आज आरथिक जुग मांय कंप्यूटरी दुनिया सूं बाल साहित्य मुकाबलो किंया करैला। कांई आपां रो राजस्थानी बाल साहित्य कठैई मिसफिट तो कोनी?मिसफिट आळी बात जोरदार है। ओ मुकाबलो तो सांम्ही है। बात आपां रै निजू सोच अर विचारधारा री है। राजस्थानी समाज मांय लेखन कोई काम कोनी मानीजै। लेखक आपरै पेट खातर जिको काम करै फगत बो ई गिणती मांय गिणीजै। रोजगार भेळै लेखन साइडजोब दांई केई लेखक पाळै। केई काम-धाम सूं फारिग हुय’र लेखक-कवि री पदवी बिराजण री जुगत लगावै। आं सगळी बातां सूं लेखन री गंभीरता कमती हुवै अर आलोचना रो रंग-ढंग ई राजस्थानी मांय सावळ बैठियोड़ो कोनी। किणी नै कोई बात सावळ कैवां तो बात रै मरम नै समझ री बजाय नाराजगी पाळ लेवै। इणी खातर म्हैं आपरी मिसफिट आळी बात नै ठीक मानू कै आज री सामाजिक संरचना मांय लेखक खुद ई मिसफिस है अर साहित्य नै समाज मांय फिट करण रो काम घणी खेचळ मांगै।
जादू रो पेन री बाल कहाणियां मांय इसो कांई जादू आप करियो कै साहित्य अकादेमी नै ओ पुरस्कार देवणो पडिय़ो?
जादू रो पेन असल मांय आ बात सफीट करै कै संसार मांय जादू नांव री कोई चीज कोनी.... जो कीं है बस हाथ रो हुनर है। आ बात जादू री इण दुनिया मांय रैवण वाळा बाळकां नै बेगी समझ लेवणी चाइजै। लिखावट चोखी आवणी का कोई रचना चोखी लिखणी बस करत करत अभ्यास आळी बात है। आ बात कोई साव नुंवी बात कोनी बस इण नै जिण ढंग सूं सांम्ही राखी है बो म्हारो निजू है अर म्हारै आसै-पासै रो है। टाबरपणै री बातां-घटनावां अर इण दुनिया री हेमाणी मांय सूं जादू रो पेन मांय बरसां पैली लिख्योड़ी कहाणियां आज ई जुगानुरूप है। आ ई खासियत स्यात दाय करीजै हुवैला।
बाल साहित्य री आज री स्थिति माथै आपरो कांई कैवणो है?
पुरस्कार सूं जिम्मेदारी बधै अर म्हैं लेखक रै रूप मांय बाल साहित्य सिरजण पेटै कीं जसजोग लिखणो चावूं। आलोचक रै रूप अबार तांई हुयै काम नै देखूं तद लखावै हाल घणो मारग बाकी है।
राजस्थानी री हरेक बंतळ मांय मानता रो सवाल जरूरी हुवै। छेकड़लो सवाल- इण मुद्दै माथै आपरो कांई कैवणो है?
संजय जी, म्हारी दीठ मांय राजस्थानी री मानता सूं बडो सवाल ओ है कै पैली-दूजी रै टाबरां खातर राजस्थानी में इत्तो रचाव राखां कै बां रो काम निकळ सकै। मानता मिलण सूं पैली जरूरी है कै माइत बण’र आपां आपरै घर-परिवार मांय राजस्थानी नै पूरी-पूरी मानता देवां, अर टाबरां री ओळख बाल साहित्य सूं करावां। अठै साहित्यकार रूप आपां रो साहित्य-समाज खुद नै जांचै-परखै कै आपां पाखती बालसाहित्य हेमाणी सूंपण री चावना कठै-कित्ती है।
~संजय पुरोहित
आंम्ही-सांम्ही
संस्कृति अर संस्कारां री हेमाणी बाल-साहित्य रै मारफत टाबरां तांई पूगैला – डॉ. नीरज दइया
(साहित्य अकादेमी रै बाल साहित्य पुरस्कार री घोषणा पछै कवि, आलोचक अर बाल साहित्यकार डॉ. नीरज दइया सूं वरिष्ठ लेखक-कवि नवनीत पाण्डे री बातचीत)
- नीरज जी सैं सूं पैली तो आपनै दोलड़ी बधाई। पैली आ कै बरसां बरस प्रकासण री खेचळ- अबखायां झेल’र ’जादू रो पेन’ पोथी रूप सांम्ही आयो अर दूजी कै इण नै केंद्रीय साहित्य अकादमी रै बाल साहित्य पुरस्कार री घोषणा करीजी है।
- आ बधाई तो थोथी अर थोड़ै दिनां री है। भाई नवनीत जी, असली बधाई तो राजस्थानी भाषा नै आपरो वाजिब माण मिल्यां हुवैला। प्रकासण री अबखायां सूं पैली लिखण री अबखायां देखां। पत्र-पत्रिकावां री कमी अर मांग नीं हुवण सूं जिण गति सूं साहित्यकारां नै लिखणो चाइजै बो लिखणो कोनी हुवै। बाल साहित्य लेखन री गति साव धीमी है। कोई लिखै किण खातर? जद आपां देखां कै प्रकासण रा पूजता इंतजाम कोनी। लिखणो-छपणो दोनूं ई घर फूंक तमासा देखणा है। भादाणी जी री ओळियां मांय कैवां तो- जो पहले अपना घर फूंके, / फिर धर-मजलां चलना चाहे / उसको जनपथ की मनुहारें! तो भाई साब पोथी “जादू रो पेन” रै लिखण-छपण मांय लेखक अर प्रकाशक दोनूं धुन रा धणी है, अर इण पोथी रो जोग ई कीं इण ढाळै रो हो कै घणी उडीक पछै प्रकाशित हुवण रो जस मिल्यो। पुरस्कार नै म्हैं लेखन रै भेळै म्हारै खटाव रो फळ मानूं। आ पोथी तो बरसां पैली छपणी ही, अर उण बगत साहित्य अकादेमी रो ओ पुरस्कार ई कोनी हो। फेर लेखक पुरस्कार खातर कोनी लिखै, अर पुरस्कार खातर लिखै तो ई जरूरी कोनी कै पुरस्कार मिलै ई!
- म्हनै लागै कै एक लेखक नै टाबरां सारू लिखण खातर घणी खेचळ करणी पड़ै, भोत ई दोरो पण महताऊ काम है, आप इण बाबत कांई सोचौ?
- कैवणिया कैवै कै राजस्थानी मांय लिखणो साव सोरो काम है। दावै जियां लिखो अठै पोल है। साची बात पण है कै पोल मांय पोल घसावणिया कीं बेसी हुयग्या है। पण पोल घणी दूर तांई चालै कोनी। गळी-गवाड़ तांई तो ठीक है। आप लेखक-कवि हुयां पछै जे खुद नै भारतीय लेखक रूप जांचण-परखण री भोळावण नीं समझणी चावो तो कोई हाथ थोड़ी पकड़ैला। लिखणो साइड-जोब दांई धंधो बणावणियां भाषा अर साहित्य रै माण नै हाण पूगावै। लिखणो तो असल मांय अंतस री बळत हुवै। टाबरां खातर लिखण मांय भाषा मेहतावू हुवै। घणी जरूरी बात- संस्कृति अर संस्कारां री हेमाणी बाल-साहित्य रै मारफत टाबरां तांई पूगैला, इण नै चेतै राखता बाल साहित्य लिखणो सोरो कोनी। लिखण सूं पैली जरूरी है कै लेखक खुद सूं सवाल करै कै क्यूं लिख रैयो हूं। कांई लिख रैयो हूं... बीजा लेखकां कांई लिख्यो है... आपरी परंपरा नै जाणिया बिना कोई मेहतावू काम कोनी करीज सकै। आज जरूरत है राजस्थानी नै भारतीय साहित्य मांय सिरै साबित करां। बिना विजन रै कोई काम करजै तद उण री पूग अर पूछ बेसी कोनी हुवै। राजस्थानी री रचनावां दूजी भाषावां मांय पूगैला तद अठै री सौरम समझी जावैला। अखबायां तो है पण अबखायां सांम्ही छाती कर राखी है, अर आपां लेखकां रो ओ काज तो लेखकां रै करियां ई सजैला।
- आज जद दृश्य मीडिया टी.वी. चैनलां माथ टाबरां रा कार्टून प्रोग्रामां, मोबाइलां अर फूहड़ सीरीयलां रौ बोलबालौ है अर उणां री वजै सूं टाबर चज रै पाठ-पोथी सूं दूर हुय रैया है, एक लेखक रूप इसो कांई हुवणौ, का कैवां करीजणो करणो चइजै कै टाबरां री पोथ्यां भणणै में रुचि जागै?
- बदळाव रै जुग मांय बजार समाज माथै हावी हुवतो जाय रैयो है। बगत मिनख नै मसीण बणावण नै खपै अर लेखक मिनख नै मिनख बण्यै रैवण रै जतन मांय मददगार साबित हुय रैयो है। संवेदना री बात आपां अठै री परंपरा, संस्कृति अर संस्कारां नै टाळ कियां कर सकां। टाबरां सांम्ही आज चौफेर जिकी दुनिया है उण मांय उणा सांम्ही चयन रा अवसर पैली करता बेसी है। ओ बदळाव कोई एक दिन मांय कोनी आयो। इण बदळाव रो कारण गांव अर शहर रो आपस मांय रळ जावणो कैयो जाय सकै। छोटी हुवती इण दुनिया मांय मिनख तर-तर मोटो हुवतो जाय रैयो है। चादरै सूं बेसी पग पसारण रा मारग घणा सोखा लागै। करजायती माइत आपरै घर मांय आराम री सगळी चीजां भेळी करै, पण जिकी विरासत लारली पीढी नै आगली पीढी नै सूंपणी है बा संस्कृति अर संस्कारां री हेमाणी बो बिसरावतो जावै। लेखक नै आपरै पाठ भेळै आं सगळी बातां सूं आंम्ही-सांम्ही हुवण री सोचणी पड़ैला। लिखण मांय जादू कोनी पण जादू रो पेन दिखाय’र आपां नै असली पाठ कै हुनर तो हाथ मांय हुवै, टाबरां नै सीखावण री भोळावण परोटणी पड़ैला। बां री आज री इण दुनिया सूं जुड़ परा ई किणी बदळाव री नींव आपां राख सकां। बाल साहित्य लेखन सूं पैली सगळी दुनियादारी बिसराय’र टाबर बण’र आ दुनिया देखणी-समझणी पड़ैला।
- बाल साहित्य में सिरजण कम हुवंतौ जा रैयौ है, भौत कम लिखारा है जिका लिखै.. आलोचक नीरज दइया इण री बजै कांई मानौ! क्यूं लेखक टाबरां कानी सूं इत्ता बेपरवाह है जद कै आज रै माहौल में टाबरां माथै ध्यान देवणौ सैंग सूं जरूरी लखावणो चाइजै..
- नवनीत जी, आ बात आपां पैली करी अर अबै आलोचक री दीठ सूं कैवूं तो बुरो मानण री बात कोनी- लिखणियां बस सौख पाळै। जिको लेखक-कवि छठ-छमास लिखै बो लिखण मांय ई आळसी कोनी, बांचण मांय ई आळसी लखावै। पोथी मोल लेय’र बांचण री बात तो अळगी, आपां रा केई लेखक-कवि तो भेंट करियां पछै ई पोथी नै खोल’र देखै कोनी। मानीजता साहित्यकारां बाबत इण ढाळै री बात बेजा है। कारण कै साथळ उधाड़सां तो आपां ई लाजा मरसां। मोटा गिणजण आळा लेखकां रो ई हाजमो सफा खराब है, तो छोटियां री बात ई जावण दो। आलोचना री एक ओळी बरदास्त कोनी हुवै। संबंध खराब हुवण रै डर सूं धाको धिकावण री इण परंपरा रो अंत हुयां ई आपां आगै बध सकां। अबै बगत आयग्यो कै हरेक पाळां अर चकारियां सूं बारै निकळ’र भारतीय लेखन समाज मांय राजस्थानी री साख नै सवाई मांडण रा जतन करां। काल आपां री हेमांणी टाबर ई सांभैला। आज जे बगतसर चेतो नीं करांला तो काल आपां रो रोवणो म्हनै सांम्ही दीसै। आ बात पक्की है कै संस्कृति अर संस्कारां री हेमाणी बाल-साहित्य रै मारफत ई टाबरां तांई पूगैला।
- डॉ. नीरज दइया बाबत आ घारणा प्रचारित करीजती रैयी है कै विवाद-प्रियता बेसी है। लिखो-पढो तो खूब पण चरचा मांय रैवण खातर चौळका ई करो। इण पेटै कांई कैवोला?
- भाई नवनीत जी, ओ सवाल है का किणी री कोई सूचना। असल मांय म्हारै माथै म्हारै केई मानीता लेखकां रो लाड बेसी है, अर बै म्हारै काम माथै ध्यान बेसी देवै। म्हारी सरलता अर सहजता मांय कैयोड़ी लिख्योड़ी ओळी रा केई-केई अरथ बै ई सोचै अर करै। स्यात म्हरै लिखण मांय ई कोई कमी रैयी जावै कै म्हैं बां सगळा सीगै नै बंद कोनी कर सकूं। कहाणी आलोचना री म्हारी नुंवी पोथी “बिना हासलपाई” छप्यां पैली ई घणी चरचा मांय लावण रो जस सिध करै कै चौळकां करूं कोनी हुय जावै। आलोचना अर आलोचक रो सुभाव बिना हासलपाई रो हुवणो चाइजै। म्हैं म्हारै सूं सजता जतन करिया अर आप नै इण मांय जळेबी दीसै तो म्हारो कैवणो है कै म्हारो खून एबी पोजिटिव है अर मीठो पसंद हुवण रै उपरांत ई डागदर बंद करण रो कैय दियो। डागदर कैवै कै सूगर है, अर म्हारा मानीता लेखक मानै ई कोनी कै म्हैं मीठो आलोचक हूं। बै खारो तूबै जिसो मानै। जद आलोचना मांय म्हैं म्हारै जीसा सांवर दइया री आलोचना करण मांय ईमानदारी बरत सकूं, तो म्हनै लगै कै बिना हासलपाई आलोचना हुवणी चाइजै। आलोचना मांय रचनकार री ठौड़ पाठ नै प्रमुखता मिलणी चाइजै। किताब "बिना हासलपाई" बजार में आयगी है जिका नै इण पेटै किणी हासलपाई री हूंस हुवै बै पूरी करैला। काळै नै सौ बार गोरो कैयां सूं गोरै रो भरम तो हुय सकै, पण काळो तो काळो ई रैवैला। आलोचक उण टाबर दांई हुवै- जिको नागै राजा री पोल खोलै। आलोचना लिखती बेळा म्हारो असूल हुवै कै भरम नै भांग’र सांच नै बांचणियां री आंख्यां सांम्ही लाय सकूं। “बिना हासलपाई” ऐंड कोनी एक सरुआत है... किणी कहाणीकार रै हुवण नीं हुवण सूं बेसी मेहतावूं है जिका बाबत जिकी बात जिण दीठ सूं करण री बिध करी है, उण री परख करी जावणी चाइजै। आपां रा मारग एक है तद गळी मांय लुकण सूं काम कोनी चालै। ओ लाइव शो है, आप अर म्हैं पाठकां साम्हीं हा... फैसलो तो अंतपंत पाठक अर आवणियो बगत ई करैला।
- नवनीत पाण्डे, 2 D-2, पटेल नगर, बीकानेर
दैनिक युगपक्ष : मंगलवार 26 अगस्त, 2014
डॉ. नीरज दइया 22 सितम्बर 1968, रतनगढ़ (चूरू) में जलम। साहित्य जगत में कवि अर आलोचक रै रूप भरोसैमंद नांव। राजस्थानी अर हिंदी में अेम.अे., नेट, स्लेट, बी.अेड., पत्रकारिता अर जनसंचार में स्नातक। ‘निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध’ विषय माथै पीअेच.डी.। मा. शिक्षा बोर्ड राजस्थान, अजमेर री राजस्थानी विषय पाठ्यक्रम समिति रा संयोजक अर राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी री समितियां रा सदस्य ई रैया। केई संकलनां मांय रचनावां संकलित-प्रकाशित अर केई कवितावां बीजी भारतीय भाषावां में अनूदित।
प्रकाशित पोथ्यां : लघुकथा-संग्रै ‘भोर सूं आथण तांई’ (1989), कविता-संग्रै ‘साख’ (1997), लांबी कविता ‘देसूंटो’ (2000), समालोचना ‘आलोचना रै आंगणै’ (2011), बाल-कथा संग्रै ‘जादू रो पेन’ (2012) अर हिंदी कविता-संग्रै ‘उचटी हुई नींद’ (2013)।
अनुवाद : पंजाबी काव्य-संग्रै / अमृता प्रीतम ‘कागद अर कैनवास’ (2000), हिंदी कहाणी-संग्रै / निर्मल वर्मा ‘कागला अर काळो पाणी’ (2002), चौबीस भारतीय भाषावां रै कवियां री कवितावां रो राजस्थानी अनुवाद ‘सबद नाद’ (2012), गुजराती जातरा-वृतांत / भोलाभाई पटेल ‘देवां री घाटी’ (2013) अरमोहन आलोक रै पुरस्कृत राजस्थानी कविता-संग्रै रो हिंदी अनुवाद ‘ग-गीत’ (2004)।
संचै अर संपादन : ‘मोहन आलोक री कहाणियां’ (2010), ‘कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां’ (2011), राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर सूं प्रकाशित पचपन युवा कवियां री कवितावां रो संग्रै ‘मंडाण’ (2012), नेशनल बिब्लियोग्राफी ऑफ इंडियन लिटरेचर (राजस्थानी : 1981-2000) साहित्य अकादेमी नई दिल्ली, ‘राजस्थानी पद्य संग्रह’ (कक्षा-12) मा. शिक्षा बोर्ड राजस्थान अजमेर, नेगचार (राजस्थानी पत्रिका), जागती जोत (मासिक पत्रिका) राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर।
पुरस्कार अर सम्मान : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर सूं ‘बावजी चतुरसिंहजी अनुवाद पुरस्कार’, नगर विकास न्यास, बीकानेर सूं ‘पीथळ पद्य पुरस्कार’।
अंतरजाळ : ‘कविता कोश’ रै राजस्थानी भाषा विभाग रा सहायक सम्पादक। बेव-पत्रिका नेगचार, अनुसिरजण, इंडिया राजस्थानी आद चर्चित।
अबार : केंद्रीय विद्यालय संगठन में पी.जी.टी. (हिंदी)
मोबाइल : 9461375668
ई-मेल : neerajdaiya@gmail.com
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