री-चार्ज (राजस्थानी लघुनाटक)
दृश्य : एक (दुकान का दृश्य, मोबाइल की दुकान, अशोक, हरीश, अनिल बातचीत कर रहे हैं) | |
अशोक - | लाईफ टाइम हो गए अधिकतर कनेक्शन, अब अपना काम कैसे चलेगा ? |
अनिल - | काम कैसे नहीं चलेगा, अभी तो लोग-बाग आ रहे हैं । दस-बीस का री-चार्ज करवाने के लिए । |
अशोक - | दस-बीस रुपए से शो-रूम का खरचा निकलेगा क्या ? बिजली के मीटर की चकरी घूमती है तब, एक यूनिट के सात रुपए आते हैं । |
हरीश - | हमने चतुराई तो बहुत की, लेकिन ग्राहक तो हमसे भी होशियार है । अपना काम मिस कॉल से ही निकाल लेता है । |
अनिल - | बात करेंगे तो भी, तुम चिंता मत करना, मैं मिस कॉल कर दूंगा ठीक । और रोटी बनाते ही तू मिस कॉल कर देना । चिंतावाली बात हुई तो मैं तीन-चार मिस कॉल कर दूंगी तब आप समझ जाना । और मुफ्त वाले से बात कर लेना । |
आशोक- | तो अब क्या करें ? इस तरह अपना निर्वाह कैसे होगा ? (सभी एक साथ बोलते हैं) सोचो-सोचो, हां-हां, सोचो-सोचो…… । |
अनिल - | अरे। सुनो सुनो, मेरे दिमाक में एक आइडिया आया है । |
अशोक - | बता बता, जल्दी से बता दे वर्ना भूल जाएगा । |
अनिल - | यदि आदमी की उम्र री-चार्ज का ठेका हमें मिल जाए तो कैसा रहे ? |
हरीश - | फिर तो आनंद ही आनंद है, लेकिन यह होगा कैसे ? |
अनिल - | मैं बता दूं …? |
हरीश - | बता-बता । |
अनिल - | हम भगवान की तपस्या करेंगे । |
अशोक - | हें… तपस्या करेंगे ? तपस्या क्या ऐसे ही बातों से होती है ? |
अनिल - | हम भगवान को खुश कर लेंगे । |
हरीश - | भगवान भी क्या आराम से खुश थोड़े ही हो जाते हैं ! इस के लिए तपस्या करनी होगी । और तपस्या के लिए निर्मल मन चाहिए, हमारे मन तो कालिख से भरे पड़े हैं । |
अनिल - | लिजिए, यही तो तुम्हें मालूम नहीं । |
अशोक - | क्या नहीं मालूम ? |
अनिल - | भगवान होते हैं भोलेनाथ- उन्हें क्या पता कि हमारे मनों में क्या है ? और हम बेहतरीन चढ़ावे बोलेंगे, पैदल यात्राएं बोलेंगे…। |
अशोक - | फिर वे चढ़ावे और यात्राएं पूरी भी करनी होगी तब …? |
अनिल - | हुं… पूरी किस लिए करनी होगी ! भगवान तो भूल जाएंगे … इतने में किसी दूसरे भक्त की तरफ वे ध्यान लगा देंगे… । |
हरीश - | तब ठीक है । पर मांगना क्या है ? |
अनिल - | मांगना है लाईफ टाईम री-चार्ज ! |
अशोक - | तो फिर तपस्या किस लिए कर रहे हैं ! लाईफ टाईम री-चार्ज तो अपने पास बहुत ही रखें हैं … और फिर रोना भी किस बात है ! |
अनिल - | अरे चतुराई की दुम यह लाईफ टाईम री-चार्ज नहीं । |
हरीश - | तो फिर… ? |
अनिल - | हम मांगेंगे आदमी की उम्र का लाईफ टाईम री-चार्ज करने का वरदान । |
अशोक - | तो ऐसे कहना था पहले साफ-साफ । |
हरीश - | फिर तो हमारे व्यारे न्यारे हो जाएंगे । |
अशोक - | एक बढ़िया शो-रूम खोल लेंगे । |
अनिल - | फिर शुभ काम में देर किस बात की, जल्दी करो । |
तीनों - | (तीनों तपस्या करते हैं) हे भगवान हम पर खुश हो जाओ । ऐसे घोर कलयुग में देखिए हम आपके भक्त खा-पी कर आपकी तपस्या कर रहे हैं । (काफी देर बाद) देखिए भगवान हमने हमारे टेलीविजनों पर तरह-तरह के चैनलों पर सुंदर-सुंदर सीन चला रखें हैं । अच्छे-अच्छे कार्यक्रम आपको अर्पित है… हे भगवान जी ! आप हम पर खुश हो जाओ । |
अशोक - | खुश हो जाओ भगवान । खुश हो जाओ । |
(पटाखा फूटने की आवाज के साथ ही भगवान का प्रकट होना ) | |
भगवान - | भक्त जनो ! मैं तुम पर बड़ा प्रसन्न हूं । मांगिए क्या मांगते हैं ? |
अनिल, अशोक - | (दोनों) हे भगवन इतने जल्दी कैसे आ गए ? |
हरीश - | अरे मुझे तो लगता है कल बाजार में जो बेहरूपिया घूम रहा था, वही भगवान बन कर आ पहुंचा है । |
भगवान - | नालायकों ! भगवान को पहचानते नहीं । |
अशोक - | नहीं नहीं भगवन… ऐसी बात नहीं है, यह हरीशिया तो है ही ऐसा नीच …। |
भगवान - | अरे ! पागल भक्तों … मैं सचमुच भगवान हूं । यह देखिए गले में पहना सर्प भी एकदम असली है । |
(सर्प की फुफकार) | |
तीनों - | (डर से घिग्गी बंघ जाती है) अरे…… नहीं… नहीं… भगवान… जी … पैर पकड़ते हैं । इस काले नाग को अपने काबू में रखिए प्लीज । |
हरीश - | और भगवान आप तो हमें जल्दी से वरदान दे दीजिए । अरे ! अशोक, अनिल यूं बेवकूफों की भांति खड़े क्यों हो…। साक्षात दंडवत प्रणाम करो भगवान को । |
(तीनों दंडवत प्रणाम करते हैं । धें की आवाज उनके नीचे गिरने की) | |
भगवान - | लो कर लो बात ! मैं तो खुद कब से कह रहा हूं कि जल्दी से वरदान मांग लो । चलिए उठिए, उठ जाओ तीनों… । |
तीनों - | हां, हां । बस भगवान हमें तो आदमी की उम्र का री-चार्ज करने वाली ऐजेंसी दे दीजिए बस । बस और कुछ नहीं मांगते हम । |
भगवान - | उम्र का री-चार्ज…… (सोचते हैं)…। |
अशोक - | हां… भगवान जी सोच क्या रहें हैं ? आपने हमें वरदान देने का कह दिया है । अब खुश हुए हैं तो हमें यह वरदान दे ही दीजिए । |
दोनों - | हां यह वरदान तो दे ही दीजिए भगवान । |
भगवान - | दे तो दूंगा लेकिन…… ? |
नारद - | (खड़ताल बजाते हुए आते हैं) क्यों भगवन… फंस गए ना, इस मोबाईल युगीन भक्तों के चक्कर में…… । नारायण-नारायण । |
भगवान - | हें हें… हां … नारदजी ! आप ठीक समय पर आएं हैं …… । कोई उपाय बताओ … अब हम क्या करें ? |
नारद - | इन्हें तो वरदान दीजिए भगवन ! नारायण-नारायण । |
भगवान - | वह तो देना ही पड़ेगा । |
नारद - | फिर देवलोक पहुंच कर सोचते हैं कोई उपाय । आप चिंता मत कीजिए भगवन, नेटवर्क तो हमारे हाथ में ही रहेगा… दे दीजिए… और जल्दी से निकल चलिए यहां से । नारायण-नारायण । |
अनिल - | भगवान किस से बातें करने लगे हो ? |
भगवान - | कोई नहीं, यह तो नारद जी थे । |
तीनों - | नारदमुनी ! कहां है नादर जी ! हमें तो यहां कहीं दिखाई नहीं देते । |
भगवान - | वे तो नारायण-नारायण कहते हुए चले गए । |
तीनों - | ऐसे कैसे कहते हुए चले गए ! हम से मिले बिना ही ? |
भगवान - | आपको नारद जी से क्या लेना है । आप तीनों अपना वरदान दोहराएं । |
भगवान - | (अतिनाटकीय ढंग से) हं-हं-हं, हमें तो बस भगवान …… आप इअतना कीजिए कि बस …… आदमी की उम्र री-चार्ज करने का वरदान दे दीजिए । |
भगवान - | आप हो तो बड़े ही चतुर भक्तों … लेकिन ठीक है… तथास्तु । |
तीनों - | तथास्तु । भगवान आप महान हो … भगवान जी की जय हो … भगवान जी की जय …… । |
(भगवान अंतर्ध्यान हो जाते हैं) | |
अशोक - | अरे ! गए । भगवान तो चले गए …… । अब जय जयकार की जरूरत नहीं । चलिए हम काम में चलते हैं । यह करना है वह करना है अब तक तो बहुत ही काम करना बाकी है । |
हरीश - | लेकिन हमें मालूम कैसे चलेगा कि किस की लाईफ टाइम खतम होने वाली है । |
अनिल - | लो इतना ही नहीं मालूम ! डॉक्टरों को कमीशन देंगे । जा कर पूछ लेंगे, वे अपने आप ही बता देंगे । |
हरीश - | घरों में भी जा सकते हैं । बूढ़े-बुजुर्गों को टंटोल सकते हैं । |
अनिल - | अरे ! बेवकूफ, बूढ़े-बुजुर्गों के पास कौनसा खजाना पड़ा है । |
हरीश - | चलो अपन प्लान बनाते हैं । |
अशोक - | यह लो अपनी दुकान तो जम गई । अब मैं बैठता हूं काउंटर पर । और आप लाओ ग्रहकों को बहला-फुसला कर । |
अनिल - | चलिए काम का बंटवारा कर लेते हैं । |
हरीश - | मैं जाता हूं अस्पताल की तरफ । और तुम जाओ किसी के घर, देख वहां कहीं कोई बूढ़ा-बुजुर्ग जो अपनी अंतिम सांस ले रहा हो । |
अनिल - | जाता तो हूं मैं पर मेरा मन कहना नहीं मान रहा । बहुत साले लोग तो बूढ़े-बुजुर्गों से तंग आए उकताए बैठे हैं । इंतजार करते हैं उनके मरने का । वे भला क्यों उनका रीचार्ज करवाएंगे । |
हरीश - | अरे तुझे कुछ मालूम नहीं । |
अनिल - | मालूम कैसे नहीं ! मैं बहुत से बुजुर्गों के लिए यही सुनता आया हूं । वे कहते रहते हैं- हे भगवान ! सभी के मां-बाप मरते हैं, पर मेरे वाले जाने कब पीछा छोड़ेंगे ? |
अशोक - | अब चुप हो जा और जान ले कि काफी बूढ़े-बुजुर्ग ऐसे भी होते हैं जो अंतिम सांस तक घर वालों को अपने धन की खुशबू ही नहीं लगने देते । वे पूरी गांठ पर अपना कब्जा जमाए रहते हैं, हमें तो ऐसो को खोज निकालना है । |
दोनों - | तो चलिए, हम काम आरंभ करते हैं । |
(दोनों जाते हैं । दृश्य : एक समाप्त) | |
दृश्य : दो (अस्पताल का सीन, मरीज, डॉक्टर, नर्सें आदि सभी का मिलाजुला शोर) | |
हरीश - | डॉक्टर साहब नमस्कार ! |
डॉक्टर - | नमस्कार, नमस्कार । बोलिए क्या काम है ? |
हरीश - | डॉक्टर साहब, मैं री-चार्ज करने वाली दुकान से आया हूं । |
डॉक्टर - | भाई मैंने तो कल ही एक हजार रुपए का रीचार्ज करवाया है, अब और अधिक नहीं करवाना । |
हरीश - | नहीं-नहीं, डॉक्टर साहब ! वह रीचार्ज नहीं । हम तो उम्र का रीचार्ज करते हैं । आप के पास ऐसा कोई सीरियस मरने वाला मरीज हो तो बतला सकते हैं । |
डॉक्टर - | यहां तो सभी सीरियस ही सीरियस है । मुझे छोड़ कर जिससे मन करता हो बात कर के देख लो । वह देखो, उस बेड पर वे लोग सामान इकट्ठा कर रहे हैं । वह मरीज अंतिम सांस ले रहा है । |
हरीश - | ठीक है डॉक्टर जी । मैं देखता हूं …। |
एक आदमी - | चलो सामान उठाओ । बाहर ऑटो इंतजार कर रहा है । सांस चल रही है तब तक बापू को घर ले चलते हैं डॉक्टर ने बोला है कि पांच-दस मिनिट की सांसें बाकी है । बस थोड़ी ही देर है । |
हरीश - | रुको-रुको, आप इन्हें घर मत ले कर जाएं…। |
एक आदमी - | तो कहां ले जाएं ? तू कहता है तो सीधे समशान ले चले । घर नहीं ले जाएं तो क्या तेरे साथ भेज दें ? हें ! नाहक बात करता है । |
हरीश - | हां-हां, मेरे साथ ले चलिए । हमारे पास उम्र रीचार्ज करने की ऐजेंसी है । हम बाबा की उम्र बढ़ा देंगे । |
एक आदमी - | उम्र बढ़ा देंगे ! क्यों बेहूदा मजाक कर रहे हो मेरे भाई । बाबा के पास तो अब रहे ही पांच मिनिट है । |
हरीश - | आप लोग चलिए तो सही । बैठ कर ऑटो में चलना ही तो है…। चलो । अब देखो… ले चलो । |
( ऑटो की आवाज… रास्ते का शोर-शराबा- मोटर-गाड़ियों के होर्नों की पों-पों) | |
हरीश - | यह लीजिए यहां तो जाम लग गया है । हे भगवान जाम खोलो… मुझे उम्र का रीचार्ज करना है । अरे कोई तो खुलवाओ… (पों…पों…पों…) अरे पांच मिनिट तो यहीं पूरे हो गए…… । |
एक आदमी - | बाबा तो स्वर्ग सिधार गए । चलो अब तो घर ही ले चलते हैं । आया बहुत तीस मार खां, उम्र का रीचार्ज करने वाला । चल बहुत हुआ… अब उतर जा ऑटो से …चल निकल । |
हरीश - | अरे ! धक्का तो मर दीजिए । मैं उतर ही रहा हूं …… । |
( ऑटो स्टार्ट होने की ध्वनि… घर जाता हुआ) | |
(हरीश दुकान पर आता है ।) | |
अशोक - | अरे, ऐसे कैसे सुस्त सुस्त सा कहां से चला आ रहा है …। बता तो सही आखिर हुआ क्या ? किसी से मार-पीट हुई क्या ? |
हरीश - | मार-पीट तो क्या होती… लेकिन एक ग्राहक ला रहा था । पांच मिनिट ही बचे थे उसके पास ! |
अशोक - | फिर क्या हुआ ? |
हरीश - | होना क्या था … हम लोग आ ही रहे थे । मरने में पांच मिनिट ही बाकी थे । |
अशोक - | फिर हुआ क्या ? |
हरीश - | होना क्या था… आ तो रहे थे कि चौक पर जाम लग गया । जाम में फंसे क्या कि पांच मिनिट पूरे हो गए । बूढ़े ने विदाई ले ली । |
अशोक - | ले यह अनिल भी आ गया । अरे, कैसे ? कोई ग्राहक लाया क्या ? |
अनिल - | ग्राहक तो भला ही था पर निकले कि कार पंचर हो गई और हवा निकल गई । उसकी उम्र के पंद्रहा मिनिट ही शेष थे । पंचर निकलवाते वक्त ही सेठ पिछली सीट पर लम्बा हो गया । |
तीनों - | अब क्या करें … ऐसे तो हम बरबाद हो जाएंगे । सोचो… कुछ तो सोचो (सोचते हैं……। फिर चुटकी बजाते हुए) हूं SS……। |
अशोक - | अरे मूर्खों सुनो ! एक आईडिया आया है मेरे दिमाग में । आप क्या है कि डेमू रखो पास । हाथोंहाथ रीचार्ज कर दिया करना । और वहीं पेमैंट ले लिया करना । |
अनिल, हरीश - | (दोनों) हां… हां…। यह ठीक रहेगा । लाओ हमे एक एक डेमू सिम दे दो । अर हजार हजार मिनिट की सांसों का री-चार्ज भी डाल देना । |
अशोक - | यह लो……तैयार । |
(दोनों जाते हैं । दृश्य : दो समाप्त) | |
दृश्य : तीन | |
हरीश - | आज तो हर हाल में री-चार्ज करूंगा ही । और मुंह मांगी रकम भी लूंगा । दुकान पर जा कर आधे ही कहूंगा । उसे क्या पता कि आधे रुपए तो मैं डकार गया । |
(एक घर में जाता है) | |
दूसरा आदमी - | पाप हिम्मत ना हारें । डॉक्टर साहब ने कहा है कि गंगानगर पहुंचने पर बात बन जाएगी । एक-डेढ़ घंटे में गंगानगर हम पहुंच जाएंगे । |
हरीश - | लीजिए चिंता की कोई बात नहीं है जी । आप कहें तो उम्र रीचार्ज कर देता हूं । |
दूसरा आदमी - | उम्र रीचार्ज ! यह कैसे संभव है ? |
हरीश - | हम यही काम करते हैं । हमारे पास उम्र रीचार्ज की ऐजेंसी है । |
दूसरा आदमी - | क्या लेंगे ? कैसे करते हैं ? |
हरीश - | एक हजार रुपए एक मिनिट के लगेंगे । |
दूसरा आदमी - | एक हजार रुपए एक मिनिट के ! यह कुछ अधिक नहीं मांग रहे आप । कुछ तो कम कीजिए । |
हरीश - | भाई साहब… यह तो मैंने कम ही मांगे हैं । थोड़े दिनों बाद तो ब्लेक चलेगी । बोलिए …… बोलिए कितने मिनिट का कर दूं ……। |
दूसरा आदमी - | चलिए पहले तो सौ मिनिट का कर दीजिए जल्दी से । हमें जल्दी गंगानगर पहुंचना है । बाकी का बाद में देखेंगे । |
हरीश - | लीजिए अभी कर देता हूं । |
(नम्बर मिलाता है । मोबाइल नम्बर मिलाने की आवाज- लाईफ टाईम स्वर्ग-नर्क के बीच यमराज-मार्ग पर आपका स्वागत है । इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं । कृपया लाइन पर बने रहें या थोड़ी देर बाद फिर से कॉल करें । …… ) | |
हरीश - | क्या हुआ इसे । अभी होना था, हे भगवान … अबकी बार तो जरूर लग जाना । |
(री-डायल करता है । री-डायल की आवाज आती है ।) | |
दूसरा आदमी - | बापू SS … आप हमें छोड़ कर चले गए । हमने तो बहुत ही प्रयास किया । देखो आपकी उम्र का रीचार्ज करने भरसक प्रयास कर रहें हैं…। बापू… लाइनें ही व्यस्त थी … बापू…… । |
(दृश्य : तीन समाप्त) | |
दृश्य : चार | |
तीसरा आदमी - | नेताजी को पर्चा भरने जाना है और इधर हार्ट अटेक हो गया, अब क्या करें । कुछ समझ में नहीं आता । |
अनिल - | क्या बात है भाई । सभी चिंताग्रस्त क्यों दिखाई दे रहे हो ? |
तीसरा आदमी - | क्या बतलाएं भाई । पर्चा भरने जाना का समय है सवा ग्यारह बजे का और नेता जी को हार्ट अटेक आ गया । क्या करें । |
अनिल - | तो डर किस बात का है । हमारे पास है उम्र रीचार्ज करने का सिम । मैं यहां बैठे-बैठे ही नेता जी की उम्र का रीचार्ज करवा देता हूं । |
तीसरा आदमी - | अच्छा यह बात है । तो फिर जल्दी से करो भाई । |
(अनिल नम्बर डायल करता है …… मोबाइल से आवाज आती है- इस रूट की सभी लाइने व्यस्त हैं , आप लाईन में हैं…। आप लाईन में हैं …। फिर मिलाता है… सुनाई देता है- …… द डायल नम्बर डज नोट एग्जिस्ट । प्लीज चैक द नम्बर ।) | |
तीसरा आदमी - | अरे… भागो… डॉक्टर … अरे ऐम्बूलेंस मंगवाओ…… नेताजी का तो राम नाम सत हो गया……। |
अनिल - | (मन ही मन) बेटा अब तो यहां से भाग जाने में ही भलाई है । नहीं तो यह नेताजी का चमचा कहीं मेरा ही रीचार्ज करवा देगा । |
( दृश्य : चार समाप्त) | |
दृश्य : पांच | |
अशोक - | आ जाओ, आ जाओ । जल्दी करो । लाओ दिखाओ कितना कितना रीचार्ज कर के आए हो । रुपए तो पीछे रिक्से में आ रहे होंगे । क्यों कि इतने रुपए तुम जैसे मरियल उठा के थोड़े ही चल सकते हैं । |
हरीश, अनिल - | (दोनों) कैसे रुपए ! एक भी रीचार्ज नहीं हुआ । सारी लाइनें ही खराब हैं । या फिर नेटवर्क बीजी । हम तो हमारी जान बचाकर यहां भागते हुए आएं हैं, वह भी बड़ी मुश्किल से । |
अनिल - | ऐसे कैसे हो सकता है । यह तो सरासर धोखा है भगवान । भगवान आप ही ने तो हमे उम्र रीचार्ज करने का चार्ज दिया था । |
( दृश्य : पांच समाप्त) | |
दृश्य : छः | |
(अशोक पलंग पर सोया दिखाई देता है, पास में स्टूल रखा है ।) | |
नींद में बोलते हुए : यह नहीं हो सकता । हम भगवान है तो क्या हुआ उपभोक्ता अदालत में खींच लेंगे । कैसा अंधेर है । वरदान दे दिया और …फिर…। | |
औरत - | (हाथ में चाय का गिलास ले कर आती है । कंधा पकड़ कर) अरे ! आज उठना नहीं है क्या ? दुकान नहीं जाना है क्या ? अब जल्दी से खड़े हो जाओ… । यहां चाय रखती हूं । ठंडी हो जाए तो फिर मुझे मत कहना…। |
(चली जाती है ।) | |
अशोक - | हें……। |
( दृश्य : छः समाप्त) |
plz give it in original rajasthani !!
ReplyDelete"रि-चार्ज" के प्रकाशक हैं-
ReplyDeleteबोधि प्रकाशन, एफ-77, करतारपुरा औद्योगिक क्षेत्र, बाईस गोदाम, जयपुर
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