पुस्तक चर्चा / डॉ. श्रीलाल मोहता
कविताओं में ईश्वर की पहचान करवाने का उपक्रम
हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि, पत्रकार-संपादक, अनुवादक श्री सुधीर सक्सेना साहित्य में अपनी एक अलहदा पहचान रखते हैं। उनकी कविताओं का अपना एक अलग रंग-मिजाज है। उनके कविता संग्रह ‘ईश्वर : हां, नीं... तो’ में संग्रहित छत्तीस कविताओं को राजस्थानी के चर्चित हस्ताक्षर डॉ. नीरज दइया ने राजस्थानी में अनुसृजित किया है। किसी कविता का अनुसृजन बेहद कठिन कार्य होता है, किंतु नीरज दइया ने उसे एक चैलेंज के रूप में लिया है। उन्होंने हिंदी, पंजाबी, गुजराती और अन्य भारतीय भाषाओं से चयनित कवियों की चुनिंदा कविताओं का राजस्थानी में अनुसृजन ‘सबद-नाद’ में किया है। अनुसृजन और अनुवाद में किंचित अंतर होता है। अनुवाद में तो शब्द के समानांतर शब्द-शब्द अनुवादक रखता है किंतु अनुसृजन में शब्द के साथ-साथ उसकी भाव-भंगिमा का भी बहुत महत्त्व होता है। नीरज इस दृष्टि से एक सफल अनुसृजक है। इस संग्रह में सुधीर सक्सेना की विचार और दर्शनिक भाव-भंगिमाओं की कविताएं हैं। इन कविताओं में कवि और अनुसृजक जैसे ईश्वर की मानव जीवन की समस्याओं से उसके सामने खड़े होकर कभी तो किसी समस्या का प्रत्युत्तर मांगते हैं और कभी उस की लाचारी को प्रस्तुत करते हैं और कभी उसे बहुत तीखे शब्दों में उपालंभ देते हैं। संग्रह की प्रत्येक कविता के केंद्र में ईश्वर है। कविताओं से गुजरने के बाद पाठक को लगता है कि कवि ना तो आस्तिक है और ना ही नास्तिक। कविता संग्रह का शीर्षक ही जैन दर्शन के स्यादवाद का स्मरण करता है, इस दर्शन में अंध-हस्ति न्याय से एक हाथी की पहचान होती है कि हाथी ऐसा होता है। इसी प्रकार कवि का अपनी कविताओं में ईश्वर की पहचान करवाने का उपक्रम है। कविता संग्रह के शीर्षक से मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि ईश्वर है या नहीं है, इसके होने और नहीं होने के अनेक प्रसंग जो हमारे संसार से जुड़े हुए हैं, उनकी सूत्रात्मक व्याख्या इन कविताओं में हुई है। इसी प्रसंग के माध्यम से जीवन की वे सभी समस्याएं आ जाती हैं जो कवि को विचलित करती हैं। इस संग्रह में कवि मूल सुधीर सक्सेना और राजस्थानी अनुसृजक नीरज दइया को बहुत बहुत बधाई कि इस सुंदर समन्वय से राजस्थानी के पाठकों को एक नए कविता-परिदृश्य से परिचित होने का अवसर मिला है। पुस्तक को सूर्यप्रकाशन मंदिर बीकानेर ने प्रकाशित किया है।
- डॉ. श्रीलाल मोहता
0 टिप्पणियाँ:
Post a Comment