Saturday, February 20, 2021

पुस्तक चर्चा / डॉ. नीरज दइया

महानता के मुखौटों को उजागर करते धारदार व्यंग्य

हिंदी और राजस्थानी भाषा में विगत चालीस से भी अधिक वर्षों से समान रूप से लिखने वाले ख्यातिप्राप्त व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा का तीसरा राजस्थानी व्यंग्य संग्रह ‘आपां महान’ अपने शैल्पिक और भाषिक प्रयोगों के कारण से उल्लेखनीय कहा जाएगा। भारतीय जनमानस में अपनी परंपरा की महानता को थामे रहने और वर्तमान समय में भी मूलभूत समस्याओं का जस के तस बने रहने पर शीर्षक रचना में करारा व्यंग्य किया गया है। संग्रह में व्यंग्य विधा के अंतर्गत विविध शैलियों को अजमाने का सुंदर सफल प्रयास किया गया है, जैसे- डायरी शैली में ‘म्हारी डायरी रा कीं टाळवां पानां’, प्रश्नोत्तर शैली में ‘खुद सूं मुठभेड़’, पत्र शैली में ‘मूड सूं लिखणियो लेखक’ तथा फंटेसी ‘सुरग में साहित्यिक सभा’ आदि रचनाएं साक्ष्य हैं। बुलाकी शर्मा के पात्रों की भाषा में जहां बीकानेर शहर की स्थानीयता है वहीं वे समग्र रूप से धाराप्रवाह कथारस से भरपूर भाषा द्वारा अपने पाठकों को बांधे रखने का हुनर रखते हैं।

संग्रह में कोरोनाकाल में लिखी रचनाओं में वर्तमान समय की त्रासदी और विद्रूपताओं को चिह्नित किया गया है तो अपने साहित्यिक अनुभवों से लक्ष्य वेधन करते समय स्वयं को भी नहीं छोड़ा है। किसी भी व्यंग्य की सफलता उसके लक्ष्यबद्ध होने में निहित होती है और बुलाकी शर्मा अपने लक्ष्य हेतु लक्षणा और व्यंजना का बखूबी प्रयोग करते हैं। ‘मदर्स-डे’ में आधुनिक जीवन शैली, ‘मींगणां री माळा’ में साहित्यकारों के दोहरे चरित्र को देखते हैं वहीं ‘कविता रो दफ्तर-टैम’ में लापरवाही के साथ व्यक्ति का मिथ्या अहंकार उभारा गया है। भाषा में सहजता के साथ वक्रता का निर्वहन करना हल्की हल्की चोट से व्यक्ति मन की व्याधियों का उपचार करने जैसा है।

संग्रह की सभी व्यंग्य रचनाओं में मूलतः मानव मन के विचित्र व्यवहार को केंद्र में रखते हुए वर्तमान समय की विसंगतियों के साथ हमारी कथनी-करनी के भेद के साथ पाखंड को प्रमुखता से उजागर किया गया है। अपनी मातृभाषा राजस्थानी की पैरवी करने वालों का रूप ‘मायड़ भासा रा साचा सपूत’ व्यंग्य में तथा पदलोलुपता को ‘करो लंका लूटण री त्यारी’ जैसी रचनाओं में प्रमुखता से रेखांकित किया गया है। बुलाकी शर्मा के पास बात बात में बहुत संजीदा ढंग से गहरी से गहरी बात को सामान्य ढंग से कह देने का हुनर है जो सतही तौर पर देखने में सरल प्रतीत होता है किंतु उसे साधना और बनाए रखना बहुत कठिन है। संग्रह के आरंभ में आलोचक कुंदन माली लिखते हैं- ‘समकालीन व्यंग्य परिवेश में बहुत लंबे समय के बाद बुलाकी शर्मा के व्यंग्य संग्रह का आना ताजा हवा का झोंका है, और इस सौरम का स्वागत है।’ संग्रह किताबगंज प्रकाशन गंगापुर सिटी से प्रकाशित हुआ है। 




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डॉ. नीरज दइया की प्रकाशित पुस्तकें :

हिंदी में-

कविता संग्रह : उचटी हुई नींद (2013), रक्त में घुली हुई भाषा (चयन और भाषांतरण- डॉ. मदन गोपाल लढ़ा) 2020
साक्षात्कर : सृजन-संवाद (2020)
व्यंग्य संग्रह : पंच काका के जेबी बच्चे (2017), टांय-टांय फिस्स (2017)
आलोचना पुस्तकें : बुलाकी शर्मा के सृजन-सरोकार (2017), मधु आचार्य ‘आशावादी’ के सृजन-सरोकार (2017), कागद की कविताई (2018), राजस्थानी साहित्य का समकाल (2020)
संपादित पुस्तकें : आधुनिक लघुकथाएं, राजस्थानी कहानी का वर्तमान, 101 राजस्थानी कहानियां, नन्द जी से हथाई (साक्षात्कार)
अनूदित पुस्तकें : मोहन आलोक का कविता संग्रह ग-गीत और मधु आचार्य ‘आशावादी’ का उपन्यास, रेत में नहाया है मन (राजस्थानी के 51 कवियों की चयनित कविताओं का अनुवाद)
शोध-ग्रंथ : निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध
अंग्रेजी में : Language Fused In Blood (Dr. Neeraj Daiya) Translated by Rajni Chhabra 2018

राजस्थानी में-

कविता संग्रह : साख (1997), देसूंटो (2000), पाछो कुण आसी (2015)
आलोचना पुस्तकें : आलोचना रै आंगणै(2011) , बिना हासलपाई (2014), आंगळी-सीध (2020)
लघुकथा संग्रह : भोर सूं आथण तांई (1989)
बालकथा संग्रह : जादू रो पेन (2012)
संपादित पुस्तकें : मंडाण (51 युवा कवियों की कविताएं), मोहन आलोक री कहाणियां, कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां, देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां
अनूदित पुस्तकें : निर्मल वर्मा और ओम गोस्वामी के कहानी संग्रह ; भोलाभाई पटेल का यात्रा-वृतांत ; अमृता प्रीतम का कविता संग्रह ; नंदकिशोर आचार्य, सुधीर सक्सेना और संजीव कुमार की चयनित कविताओं का संचयन-अनुवाद और ‘सबद नाद’ (भारतीय भाषाओं की कविताओं का संग्रह)

नेगचार 48

नेगचार 48
संपादक - नीरज दइया

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"
श्री सांवर दइया; 10 अक्टूबर,1948 - 30 जुलाई,1992

डॉ. नीरज दइया (1968)
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