पुस्तक चर्चा / डॉ. नीरज दइया
हिंदी और राजस्थानी भाषा में विगत चालीस से भी अधिक वर्षों से समान रूप से लिखने वाले ख्यातिप्राप्त व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा का तीसरा राजस्थानी व्यंग्य संग्रह ‘आपां महान’ अपने शैल्पिक और भाषिक प्रयोगों के कारण से उल्लेखनीय कहा जाएगा। भारतीय जनमानस में अपनी परंपरा की महानता को थामे रहने और वर्तमान समय में भी मूलभूत समस्याओं का जस के तस बने रहने पर शीर्षक रचना में करारा व्यंग्य किया गया है। संग्रह में व्यंग्य विधा के अंतर्गत विविध शैलियों को अजमाने का सुंदर सफल प्रयास किया गया है, जैसे- डायरी शैली में ‘म्हारी डायरी रा कीं टाळवां पानां’, प्रश्नोत्तर शैली में ‘खुद सूं मुठभेड़’, पत्र शैली में ‘मूड सूं लिखणियो लेखक’ तथा फंटेसी ‘सुरग में साहित्यिक सभा’ आदि रचनाएं साक्ष्य हैं। बुलाकी शर्मा के पात्रों की भाषा में जहां बीकानेर शहर की स्थानीयता है वहीं वे समग्र रूप से धाराप्रवाह कथारस से भरपूर भाषा द्वारा अपने पाठकों को बांधे रखने का हुनर रखते हैं।
संग्रह में कोरोनाकाल में लिखी रचनाओं में वर्तमान समय की त्रासदी और विद्रूपताओं को चिह्नित किया गया है तो अपने साहित्यिक अनुभवों से लक्ष्य वेधन करते समय स्वयं को भी नहीं छोड़ा है। किसी भी व्यंग्य की सफलता उसके लक्ष्यबद्ध होने में निहित होती है और बुलाकी शर्मा अपने लक्ष्य हेतु लक्षणा और व्यंजना का बखूबी प्रयोग करते हैं। ‘मदर्स-डे’ में आधुनिक जीवन शैली, ‘मींगणां री माळा’ में साहित्यकारों के दोहरे चरित्र को देखते हैं वहीं ‘कविता रो दफ्तर-टैम’ में लापरवाही के साथ व्यक्ति का मिथ्या अहंकार उभारा गया है। भाषा में सहजता के साथ वक्रता का निर्वहन करना हल्की हल्की चोट से व्यक्ति मन की व्याधियों का उपचार करने जैसा है।
संग्रह की सभी व्यंग्य रचनाओं में मूलतः मानव मन के विचित्र व्यवहार को केंद्र में रखते हुए वर्तमान समय की विसंगतियों के साथ हमारी कथनी-करनी के भेद के साथ पाखंड को प्रमुखता से उजागर किया गया है। अपनी मातृभाषा राजस्थानी की पैरवी करने वालों का रूप ‘मायड़ भासा रा साचा सपूत’ व्यंग्य में तथा पदलोलुपता को ‘करो लंका लूटण री त्यारी’ जैसी रचनाओं में प्रमुखता से रेखांकित किया गया है। बुलाकी शर्मा के पास बात बात में बहुत संजीदा ढंग से गहरी से गहरी बात को सामान्य ढंग से कह देने का हुनर है जो सतही तौर पर देखने में सरल प्रतीत होता है किंतु उसे साधना और बनाए रखना बहुत कठिन है। संग्रह के आरंभ में आलोचक कुंदन माली लिखते हैं- ‘समकालीन व्यंग्य परिवेश में बहुत लंबे समय के बाद बुलाकी शर्मा के व्यंग्य संग्रह का आना ताजा हवा का झोंका है, और इस सौरम का स्वागत है।’ संग्रह किताबगंज प्रकाशन गंगापुर सिटी से प्रकाशित हुआ है।
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