Sunday, May 07, 2017

नागराज शर्मा री रामबाण दो व्यंग्य-पोथ्यां / डॉ. नीरज दइया


‘बरसां पैली तीन भायली हिन्दी, अंग्रेजी अर राजस्थानी घूमवां खातर खेतां में गई। अंग्रेजी आगै आगै चाल रैयी थी, कारण आज विस्व में उण रो ई बोलबालो है। हिंदी आपकी चाल में मस्त बच्चन री मधुसाला गुण गुणावती चाल रैयी थी। लेरिया-लेरिया बूढली राजस्थानी लंगडावती चालै ही। आगै एक खाडो थो। अंग्रेजी हिन्दी तो बचगी अर राजस्थानी धम्म देणी आंधै कुवै में पड़गी। खाडो खूब गैरो थो।’ (प्रिंस, कुरुक्षेत्र अर राजस्थानी : पेज- 22 )
    आं ओळियां रा लेखक नागराज शर्मा आपरी पोथी ‘एक अदद सुदामा’ में ‘दो शब्द’ लिखता लिखै- ‘म्हनै आजताणी बेरो ही कोनी कै म्हारी रचनावां में व्यंग्य कठै है। पण लोग बतावै है व्यंग्य है अर म्हे मानता आ रैया है।’ बां इण सूं पैली छपी ‘धापली रो लोकतंत्र’ में ‘सीधी अर सावळ बात’ में कैयो- ‘व्यंग्य कांई हुवै? साची कैवूं इण बहस में मैं कदी नई पड़्यो।’ इण नै कांई लेखक री अतिविन्रमता माना का हियै रो कोई मोटो साच। क्यूं कै आ बात बै आपरै पाठकां नै संबोधित कर रैया है। कांई आप मान सको कै लेखक नागराज शर्मा इत्ता भोळा है कै बां नै ठाह ई नीं हुवै कै रचना में व्यंग्य कठै है? इत्ता पाक्योड़ा लेखक अर संपादक है कै उड़ती चिड़िया नै देख’र बाता देवै कै कठै बैठसी। म्हैं तो अठै तांई कैवूं कै उड़ती चिड़िया ई नागराज जी रो कैणो करती कैवै जठै बैठ जावै। आ जरूर मान सकां कै बै व्यंग्य कांई हुवै, इण बहस में कदैई कोनी पड़्या। जे बहस में उळझ जाता तो उण बूढली री चिंता कुण करतो, जिकी आंधै कुवै सूं निकाळण खातर अजेस हेला करै।
    कवि-व्यंग्यकर अर संपादक नागराज शर्मा एक इसो नांव है जिण नै छोटै सूं छोटो अर मोटै सूं मोटो लेखक-कवि अर राजस्थानी पाठक-श्रोता जाणै-पिछाणै। इण जस रा दो कारण मानूं- एक तो बरसां आप चावा-ठावा मंचीय कवि रैया, दूजो ‘बिणजारो’ वार्षिक पत्रिका री जातरा मांय बिना किणी लाग-लपेट रै सगळै साहित्यकारां नै मंच दियो। छत्तीस बरसां री पत्रकारिता-जातरा अर इण सूं दूणी साहित्यिक-साधना नै म्हैं निवण करूं। बरसां सूं आप राजस्थानी रै विगसाव अर वातावरण-निर्माण में अजातशत्रु रैय’र मेहताऊ भूमिका सांभ राखी हो।
    नागराज शर्मा बरसां-बरस हास्य-कवि सम्मेलनां में जावतां अर मंच लूटता. आ बात तो जूनी हुयगी। अबै तो कवि सम्मेलन ई कमती हुयग्या अर घर-परिवार में रुधग्या कै कमती ई आवै-जावै। फेर ई जे किणी नै म्हारी इण ओळी माथै ऐतराज हुवै तो करावो कोई कवि-सम्मेलन अर बुलाओ मंच लूंटण नै कविराज नागराज शर्मा नै। जे आ सरधा नीं तो मान लो जिकी बात बता रैयो हूं। म्हैं ओलै-छानै री सगळी बातां राखूंला। थोड़ो खटाव राखो। बां रो फलाणचंदजी अर पूंछड़चंदजी नै लिख्योड़ो ओ कागद बांचो-
    मानीता फलाणचंदजी / पूंछड़चंदजी
    आपनै आ बात जाण’र अचंभो होसी कै बिना जलमदिन मनायां ही म्हैं 19 मार्च1992 में पूरो साथ साल रो होय’र 61 वें में दाखिलो लेय रैयो हूं। आपसूं अरदास है कै आप इण 60 बरस रै बाळक नै आपणो आसीरवाद भिजवाणै री किरपा करो जी। आपरी तरफ सूं भेज्योड़ो आसीरवाद म्हारै वास्तै वरदान सिद्ध होसी। आपनै कष्ट तो हुवैल पण आगलो कष्ट अबै 2052 में ही दूंगो जद म्हैं 120 बरस रो मोट्यार होकर आपसूं आसीरवाद मांगूगो।
                                                                                थांरो
                                                                          नागराज शर्मा,
                                 हास्य कवि, संपादक बिणजारो, अर्थशास्त्र रो अध्यापक
    पड़दै री बात कै केई कैवणियां कैवै कै नागराज जी रो अर्थशास्त्र पक्को है, बांनै पत्रिका निकाळण में जोर कोनी आवै। लेखक-कवि रचनावां भेजै अर बै होळै-होळै सालभर में एकर छाप काढै। म्हारो कैवणो है कै ओ सौरो काम कोनी, आप ई संपादक बण’र देखो। लेखन अर संपादन में नागराज शर्मा आपरी आखी उमर गाळ दी। बै बरस एक सौ बीस तांई जवानी रो पूरो करार राखसी, ओ बां रो कौल दो सौ ठावै ठिकाणां सूं चिट्टी न्हांख’र करियोड़ो है। मांयली बात आ कै साहित्य नै बां अर बां नै खुद साहित्य काठो झाल राख्यो है। कदैई बै छोड़ण री करै तो साहित्य कोनी छोड़ै अर कदैई साहित्य छोड़ण री करै तो बै नट जावै। केई वेळा बोलै- छेहली सांस तांई राजस्थानी नै आंधै कुवै सूं बारै काढण रा जतन करूंगो। जतन कांई कुवै सूं बारै निकाळ’र ई सांस लेवैगा।   
    आप मान लो कै नागराज शर्मा री बरोबरी राजस्थानी में कोई नीं कर सकै। ‘बिणजारो’ खातर बरसां सूं विग्यापन रो बंदोबस्त कर रैया है। मंच लूटणो अर किणी चेलै नै हंसतै हंसतै मूंडणो सौरो काम कोनी। ओ एक जादू  है। राजस्थानी रो झंडो ऊंचो राखण नै नागराज जी बरसां-बरस सूं जादू चलवातां रैया है। अबै तो बै इण फील्ड में चोखा खिलाड़ी मानीजै। बरसां रै कारज सूं बां रा पग जमग्या अर गैरी पैठ मानीजै। आप कवि सम्मेलनां अर सेठ-साहूकारां नै गजब रै बतरस अर हास्य कवितावां-प्रसंगां सूं राजी राखता आया है। एक नै ई नाराज कोनी करियो।
    म्हैं याद करूं म्हारी जाण-पिछाण नागराज शर्मा सूं ‘बिजणारो’ पत्रिका रै मारफत हुई। म्हारी केई रचनावां मंगा मंगा’र ‘बिणजारो’ में बां छापी। आप इयां मानो कै म्हैं बिणजारो री बाळद में अजेस बरसां सूं भेळै हूं। आं उण टैम री बात है जद म्हैं इण आंगणै साव नवो हो। कांई आ मोटी खासियत नीं है कै बरसां सूं संपादक नागराज शर्मा बिणजारो खातर नवै-पुराणै रो भेद करिया बिना सगळा नै रचनावां खातर तेड़ा भेजता रैया है। जाणै कोई बिणजारो रै आंगणै जीमण राख्योड़ो हुवै। लेखक-कवि इत्ता फूटरा कै बां रै तेड़ै नै उडीकै अर फेर ई रचना कोनी भेजै। बै दूसर-तीसर कागद माथै कागद लिखै तद आळस छोड़ै। नागराज जी बतावै कै वार्षिक पत्रिका में आं रो ओ हाल है जे छमाही-तिमाही करूं तो ठाह नीं कांई हाल हुवैला। आयै बरस होळी-दीयाळी आवै अर सगळै साहित्यकारां नै याद करण रो आपरो अनूठो तरीको देख सकां। पोस्टकार्ड या लिफाफै सूं व्यंग्य कविता का बै जगमग करता भेज्योड़ा आपरा दीवा, अजेस ई ओळूं मांय उजास करै।
    नागराज शर्मा री अपणायत कै बिणजारो रै हरेक साहित्यकार नै लखावै कै बै उण रा निजू है। बिणजारो (बरस 2000) रै एक अंक रो संपादन सैयोग म्हैं करियो, तद केई वेळा आप सूं मिलणो हुयो। इण मिलाजुली में केई बार बै म्हारै गांव काळू आया अर म्हैं पिलाणी गयो। आपरो हेताळू अर अपणायत भरियो सुभाव घणो मनमोवणो है। किणी प्रसंग रै पाण बात-बात माथै कोई मसखरी का व्यंग्य भरी इसी बात कैवणो आपरै सुभाव में सामल है कै सुण परा’र कान रस सूं भरीज जावै। नागराज शर्मा सदा मीठो-मीठो साच बोलणिया साहित्यकार है। बै हरेक साच नै हास्य अर प्रेम सूं जाणै मीठो-मीठो करण री कला में डिपलोमा हासिल कर राख्यो है। इसा गुणी  अर आत्मीय लेखक-संपादक नागराज शर्मा रै अभिनंदन ग्रंथ खातर जद भाई महेन्द्र मील म्हनै व्यंग्य पोथ्यां माथै आलेख लिखणो रो नूंतो दियो तो म्हैं राजी हुयो। लिखण री सोची अर व्यंग्य पोथ्यां नै पाछी बांची। पण लिखण री मनगत नीं बणी। नागराज जी आदत खराब कर राखी ही, केई दिनां-महीनां पछै तगादै माथै तगादा हुयग्या अर आज ओ जोग बण्यो है। साची बात तो आ है कै आळस आज ई म्हनै छोड़ियो है।
    नागराज जी अर म्हारै मांय केई बातां कोमन है। जियां कै म्हां दोनां री राशि एक है। नांव रै सरुवात में दोनूं डॉक्टर री ढाल राखां। नागराज शर्मा नै डॉक्टर री डिग्री जालौर रै साहित्यकारा श्रीमंत कुमार व्यास सूं अर म्हनै अजमेर विश्वविद्यालय सूं मिल्योड़ी है। ऊमर री बात करां तो बांरै अर म्हारै में घणो फरक कोनी। आंक तो सागी है, अबार बै 84 बरसां रा है अर म्हैं 48 बरसां रो हूं। ओ फरक कोनी बस उलटा-पुलटा जसपाल भट्टी री कहाणी है। आगै लिखूं बा मजाक री बात कोनी, साची है कै गुरुजी नागराज जी अर म्हारी टाट नै ई आप एक जोड़ राख सको। गुरुजी बरसां-बरस टाबरां नै भणाया अर म्हैं भणावण मांय हाल रुधियोड़ो हूं। बै साची में गुरुजी जिसा दीखै अर म्हैं दीखण री खोड़ खुड़ावूं। ग्यान री बात कैवूं साची मानो आ म्हां दो गुरुवां रै ग्यान री ओळी नीं गोळी है, घोट’र पी जावो कै जीवण में हंसणो भोत जरूरी है। अब तो हंस दो, अर नींतर बस थोड़ा’क मुळको तो।
    आज जद आपां च्यारूंमेर अबखयां अर दरद रै दरियावां सूं घिरियोड़ा हा, तद जूण खातर कोई हंसी-सुखी री रामबाण दवा जरूरी है। साहित्य-बजार में केई कंपनियां व्यंग्यकार रो चोळियो धारण कर’र हंसी-सुखी अर गिलगिलिया करण री दवावां बेचै, पण इण सीगै बिणजारो प्रकाशन रा डॉ. नागराज शर्मा री दो रामबाण दवावां- ‘धापली रो लोकतंत्र’ (2005) अर ‘एक अदद सुदामा’ (2010) घणी गुणकारी नै सिरै बाजै। बरसां री साधना सूं ऐ दो व्यंग्य-पोथ्यां साम्हीं आई, अर म्हनै लागै तीजी व्यंग्य-पोथी बरस 2020 में आसी। ओ गणित है कै दो हजार पांच में पैली आई, दस में दूजी अर पन्द्रा में तीजी आवणी ही। कोनी आई तो अबै दो हजार बीस नै उडीको। म्हारी आ कामना है कै व्यंग्यकार नागराज शर्मा व्यंग्य सतक पूरो करै। बरस 2052 तांई आखै जगत नै व्यंग्य विधा में डूबो’र अबोट कर देवै। तीजी पोथी ई छपू-छपू करै। चावा-ठावा कवि डॉ. भगवतीलाल व्यास लिखै- ‘कदै-कदै तो म्हारो मन करै कै वां रो नागराज शर्मा री जागा व्यंग्यराज शर्मा लिखणो सरु कर दूं।’ साची बात कै पांच रो जोड़ बधियां व्यंग्यराज शर्मा रो इण क्रीच माथै सतक हुवैला। राजस्थानी में व्यंग्य-सतक पूरो करणिया म्हारी दीठ सूं फगत व्यंग्यराज शर्मा ई एकला एक व्यंग्यकार है। ताळियां।
    व्यंग्यकार नागराज शर्मा कदैई साहित्य मांय राजनीति कोनी करी पण देस-परदेस अर प्रांत री राजनीति माथै खूब व्यंग्य लिख्या। इण रो पुखता प्रमाण है- ‘धापली रो लोकतंत्र’ व्यंग्य पोथी। पोथी रो सिरै नांव व्यंग्य पंचायती राज अर लुगायां माथै है। इण में रिजर्व सीटां अर नवा काण-कायदा माथै करारो व्यंग्य करीज्यो है। ओ व्यंग्य बगत रै साथै बदळतै समाज री पोल खोलतो कैवै कै लोकतंत्र साव पोलो है, जिण मांय केई तीणा अर बगारा है। देस में कोई कायदो-कानून कांई करै जद चोर रस्तो निकाळण में घणा तेज है। व्यंग्यकार कैवणो चावै कै इतिहास बणती घटनावां में धापली जिसी गांव री पांचवी-सातवीं पास लुगायां, जिकी नै सौ टका हक मिलणो चाइजै बै च्यार आना हक लेय’र ई हरखीज रैयी है।
    इण पोथी रै दूजा व्यंग्यां माथै विचार करां पण आगूंच दूजी पोथी ‘एक अदद सुदामा’ रै सिरै नांव व्यंग्य बाबत बात करां। व्यंग्यकार नागराज शर्मा भारत देस रै एक नवै सुदामा री कहाणी नै इण व्यंग्य मांय मांड’र कैवै। इण व्यंग्य में जुगा जूनी सुदामा री कथा नै नवै संदर्भां में सिरजता आज रै जुग री व्यथा-कथा परोटी है। ‘सुदामा रै पछै हजारां सुदामा होगा, जण री न्यारी न्यारी कहाण्यां बण सकै है जे कोई बणावणियो चावै तो। द्वापर में एक सुदामा री बात अवै तो कलजुग में लाखां सुदामा भेळा दिखा सका हां।’ व्यंग्य अबार री सरकारी योजनावां पेटै हुवण वाळी चोर-बजारी कानी सैन करतो थको मित्रतां-धर्म सूं विमुख हुवतै मोटै मिनखा रो ओछोपणो ई उजागर करै। आपरै व्यंग्य-साहित्य पेटै गिणावणजोग खासियत कै मीठै मीठै व्यंग्य री मार बांचणियां नै सोचण-समझण माथै मजबूर करै। 
    बकौल नागराज शर्मा- ‘आप म्हारी आ पोथी पढ नै यदि इण नै बहस लायक समझो तो कर सको हो, थानै खुली छूट है।’ गुणीजण री खासियत हुवै कै बै बहस करै। बहस में आवळ-कावळ कीं कैवै, पण म्हैं तो सदा सावळ-सावळ कैवूं। इण रो ओ मतलब कोनी कै म्हैं गुणी कोनी। ओ म्हारो गुण नीं ओगुण है कै जे सावळ कैवतां कोई इसी-बिसी कावळ निकळ ई जावै तो आगूंच खुली छूट रो प्रमाण-पत्र म्हारी हूंस बधावै। नागराज शर्मा जिसा व्यंग्यकार कमती है, बै इण ढाळै री खुली छूट देवै। व्यंग्यकार जद खुद अर खुद री आखी जमात माथै ई व्यंग्य करण सूं कोनी चूकै तद बगसैला किण नै ओ विचारणो ई बिरथा।
    व्यंग्यकार किणी नै कोनी बगसै, नागराज शर्मा राजस्थानी साहित्यकारां रै साहित्य रै पेटै गंभीर नीं हुवण री बात नै ‘म्हैं राजस्थानी में क्यूं लिखूं’ में उठावै। ‘इण भासा में तौ पोल ई पोल है। अतः आपां नै इण में आपणौ लेखकीय जलम सफळ करणो चायै। आ ही सोचकर म्हैं राजस्थानी में लिखणौ सरू कर दियौ।’ इण ओळियां सूं पैली व्यंग्यकार लिखै कै बै पैली अंग्रेजी में अर पछै हिंदी में लिख्या करता हा, आ साव कूड़ी बात है। कारण ओ है कै कोई हिंदी पत्रिका रो संपादक नागराज जी राजस्थानी में कागद कियां लिख सकै! ‘प्रिय लेखकजी, थांनै भोत मीणत करणी पड़सी। अबार ताणी तौ थांनै सिरजण रौ क-ख ही कोनी आवै। सो भाई, पैली अध्ययन करौ, पछै लिखणौ सरू करौ। इण साधना में थांनै दस-पन्द्रा साल तौ लागैला ही। अतः मीणत करौ।’ असल में नागराज जी खुद मीठी-मीठी बातां करणिया है अर आ खारी बात बा राजस्थानी रै लेखकां नै हिंदी रै संपादक सूं साठ-गांठ कर’र लिखा दी।
    व्यंग्यकार नागराज शर्मा री व्यंग्य-साधना में न्यारै न्यारै पोत रा व्यंग्य मिलै। बां री भासा में निजू आंट समूळै गद्य मांय देख सकां। बै लोकभासा नै शेखावाटी ठसकै साथै बरतै। इण बोलचाल रै गद्य री सहजता-सरलता जठै एक खासियत रूप देखां बठै ई इण नै व्यंग्यकार री सींव ई मान सकां। ओ गद्य मनमोवणो अर आपरो सो लागतो थका ई एकरसता री सींव बध्योड़ो रैयो है। प्रवाहमयी कथात्मक गद्य री घणी घणी ओळियां में नागराज शर्मा खुद जाणै बोलता लखावै। जठै कठै व्यंग्य में संवाद अर सूचना आवै बठै व्यंग्यकार शर्मा रंजकता रो पूरो पूरो ध्यान राखै। आप किणी सबद सूं कदैई कोई परहेज भासा में कोनी राख्यो, तत्सम-तद्भव, औकारांत-ओकारांत, देसी अर परदेसी सबद रूपां साथै गद्य री बा भासा है जिकी बै सदा खुद बोलै-बतळावै।
    नागराज शर्मा री रामबाण आं दो व्यंग्य पोथ्यां री सगळा सूं लूंठी खासियत कै कोई पण व्यंग्य किणी खास का टाळवै मिनख माथै हुवतां थका, उण री प्रवृतियां अर आचरण माथै केंद्रित है। जिको कोई चरित्र बै व्यंग्य मांय उठावै बो एक बानगी रूप साम्हीं राखै। इण कला सूं बै चोट बठै ई करै जठै जरूरत हुवै। व्यंग्यकार रूप बै कळमस मांय फसती आत्मा नै ऊजळी करण री सांतरी सीख देवै। जसजोग बात आ कै व्यंग्य विधा नै बै इण ढाळै साध चुक्या कै किणी पण विषय सूं व्यंग्य रचण रो आंटो आयग्यो। मोटी बात आ कै ऐ व्यंग्य किणी एक सबद सूं चालू कर परा उण में पूरै देस अर आखी मिनखाजूण नै लपेटै मांय लेय लेवै। नागराज शर्मा रा घणा व्यंग्य तो साची घटनावां माथै मिलै। चरित्र आसै-पासै रा देख्योड़ो-सुणियोड़ा अर भोग्योड़ा हुवण सूं प्रमाणिकता साथै प्रगट हुवै। हरेक व्यंग्य में लेखक री अध्ययनशीलता सूं मौकैसर फबती बात करण रो हुनर ई मोटी खासियत मानीजैला।
    ‘बोझ’ व्यंग्य री दाखखै रूप बात करां। ‘बोझ नै भार कैवै अर भार नै बोझ। पण ऐ दोन्यूं शब्द न्यारी न्यारी जगां काम में आवै। देस रो भार नौजवानां रै कांधा पर है। रामलाल पर पूरै परिवार रो बोझ है। एक ही बात पर न्यारा न्यारा शब्द काम आवै इण वास्तै दोन्यूं शब्द महताऊ है। म्हारो शरीर टाबरपणा से ही झुक रैयो है। जवानी में अइलंको होगो’कै झुककर चालणै री आदत होगी। आपणां शिक्षाशास्त्री काफी स्याणा अर दूरदरसी है। जिका प्राइमरी क्लास रै छोरां नै इतणी किताब कापी दे दे जिको एक कुली जितरो बोझो हुवै।’ आ एक बानगी है कै गद्य में नागराज शर्मा कोई शब्द का ओळी सूं बात उठा’र ठावै मुकाम तांई लेय जावणो रो हुनर राखै। ‘बोझ’ री आ बानगी दिखतै अर अणदिखतै बोझ तांई लेय’र जावै- ‘एक आदमी नै सारा भार वहन करना पड़ै। ऐ तो सब दिखाऊ भार है। कुछ अदृश्य भार भी है जो दिखाई कोनी दे। बो है टेंसन। टेंसन रो भार कोझो। इण भार सूं शरीर में बीपी, शूगर, गुरदा सब प्रभावित हुवै। इण रोगां री दवाई भी मैंगी मिलै, इण वास्तै ओ भार तगड़ो हुवै। दवायां सूं बेसी भार भैम रो हुवै।’
    ओ गुणकारी आलेख ‘बोझ’ आ सीख देवै कै आपनै कोई टेंसन राखणो कोनी। ऐ ओळियां बांच’र ई म्हैं लिखता-लिखता बिना टेंसन आलोचना लिखण लागग्यो अर आप सूं ई अरज कै थे ई बांचता-बांचता कोई टेंसन ना राख्या। केई साहित्यकार आलोचना अर आलोचक सूं टेंसन राखै। जे बै नागराज शर्मा री व्यंग्य पोथ्यां बांच लेवै तो सगळै टेंसन सूं मुगत हुय सकै। आ नवै रचनाकारा खातर सीखण री बात है कै किणी ढाळै आपरै किणी व्यंग्य में नागराज शर्मा फगत एक सबद सूं बात नै बै उठा’र कियां देस-दुनिया री केई केई बातां नै जोड़ता थकां बांचणियां नै कठै सूं कठै तांई लेय जावै। भूख, थप्पड़, बोली, फोन, मायत, परिवर्तन, डर, डाकी, ताबीज, छपास, वापसी, खोजी, रूखाळा, कढी बिगाड़, भारत रत्न आद कित्ता ई व्यंग्यां रा नांव गिणाया जाय सकै जिण मांय व्यंग्यकार कला गीरबैजोग कैयी जावैला। व्यंग्य विधा में बां सबदां अर बुणगट नै लेय’र केई जसजोग प्रयोग ई करिया है।
    साहित्य माथै केई व्यंग्य आं पोथ्यां मांय मिलै। ‘अड़क कवि- सड़क कवि’ में कवि अर कविता रै गिरतै स्तर माथै तो व्यंग्य है, साथै साथै साहित्यकारां रै संवेदनहीण हुवण माथै ई व्यंग्यकार व्यंग्य करै। ‘इंटरव्यू पुरस्कार प्रसाद पारीक सूं’ में पुरस्कारां रै गिरतै स्तर अर रचनाकार रै कबाड़ी हुवण माथै चोट करीजी है। ‘स्याणो संपादक’ पत्रकारिता रो मैलो आंगणै दरसावै तो ‘म्हैं क्यूं लिखूं?’, ‘कस्बाई कवि कुरड़ाराम रो लिफाफो’, ‘ओ मूळसिंघ कुण है’, ‘छपास’ आद साहित्य-समाज री लापरवाही, अगभीरंता माथै बेबाक हुय’र लिखण रा दाखला है।
    जिण समाज में साहित्यकार रैवै उण सामाज रा दुख-सुख, रीत-रिवाज अर रूढियां सूं ई केई व्यंग्यां रो जलम हुयो है। ‘पितरां मिलाई’ मांय सामाजिक परंपरावां अर रूढियां माथै कलम चाली है तो ‘बकरीवाद’ में आम आदमी री मजबूरी अर लाचारी रो लूंठो दरसाव देख सकां। इणी खातर चावा-ठावा व्यंग्यकार-कहाणीकार बुलाकी शर्मा नागराज शर्मा नै व्यंग्य विधा रा रेफरी कैवतां लिखै- ‘श्री नागराज शर्मा री रचनावां में ई नीं बात-बंतळ में ई हास्य-रस झरतो रैवै। हास्य रस सूं लबरेज ‘एक अदद सुदामा’ री व्यंग्य रचनावां आपरी निजू ओळखाण करावै। हास्य रो पुट देय’र बै इसा व्यंग्य-बाण मारै कै सामलो मुंहडो भींच्या पीड़ सैंवतो रैवै। श्री नागराज शर्मा सोद्देश्य लिखै, समसामयिक जीवण री झलक आं री रचनावां में है अर पैला हंसावै, फेरूं आपांरै-पाठकां रै मन में करुण अर रीस रा भाव जगावै। मानसिक बदळाव री सरुआत इयां ई होवै।’ 
    चावा-ठावा व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा तो अठै तांई कैवै कै ‘म्हारी दीठ में राजनीति री अनीत माथै तीखैपण सूं लगोलग चोट करणिया वै राजस्थानी रा एकूका व्यंग्यकार है।’ साची बात कै नागराज शर्मा रै लेखन नै राजस्थानी रै सीगै देखां तो बां राजनीति माथै सगळा सूं बेसी व्यंग्य लिख्या है। केई व्यंग्य में तो घटनावां री तारीख महीनै साथै लिख्योड़ी मिलै पण बरस गयाब है। राजनीति रै बदळतै रंगां माथै लिखणो अबखो काम है अर ओ काम नागराज जी करियो है पण बगत रै साथै केई संदर्भ जूना हुय जाया करै अर बेबगत में बां रो मोल ई कमती हुय जावै।
    खबरां नै व्यंग्य रै आंटै परोटणा बगतसर अर मौकैसर तो ठीक लखवै पण देस अर प्रांत री राजनीति बदळै तद केई नवी बातां जलमै। किणी नेता कै मंत्री-मुख्यमंत्री रै नांव सूं रचनावां लिखती रैयी है, आं मांय फिल्मी कलाकार अर दूजा नामी लोगां नै ई सामिल कर सकां जिका माथै लिख्योड़ी रचनावां व्यंग्य रै मूळ मुद्दै नै कमजोर करै। जियां कै आंगूच लिख्यो कै नागराज शर्मा बरसां सूं हास्य-कवि सम्मेलन में जावतां रैया अर बरसां सूं ‘बिणजारो’ खातर विग्यापन रो बंदोबस्त ई करता रैया है। बां में बा कला है कै आपरी बात में रस बणायो राखण रो बै जस लिखा’र लाया है।
    नागराज जी रै आपरै गजब रै बतरस सूं सेठ-साहूकारां अर हास्य कवितावां सूं कवि सम्मेलनां में जादू करता रैया है। ओ जादू ई है कै सरल हियै रा अजातशत्रु नागराज शर्मा बरसां सूं राजस्थानी रो झंडो उठा राख्यो है। बां नै देखै तो हरेक रो निवण करण रो जीव करै। आपरो व्यंग्य विधा रो सिरजण घणो मेहताऊ है अर हरेक रचना माथै बात करी जाय सकै पण बात थोड़ै में अठै पूरी करणी जरूरी इण खातर जरूरी है कै स्सौ कीं म्हैं ई आं बाबत लिख देसूं तो दूजा कैसी कीं तो राख देणो हो म्हां खातर ई। लो घणो कीं राख दियो आप खातर पण जे थे ओ राख्योड़ो नीं अंगेजोला तो म्हैं दूजै किणी आलेख मांय बाकी रैयो स्सौ कीं परोट लेवूंला।
    सेवट नागराज शर्मा नै बां री साहित्य-साधना माथै प्रणाम भेळै अरज करूं कै लंगडावती बूढली राजस्थानी जिकी आंधै कुवै में पड़गी नै बारै काढां जित्तै टाबरां माथै आसीस राख्या।



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हिंदी में-

कविता संग्रह : उचटी हुई नींद (2013), रक्त में घुली हुई भाषा (चयन और भाषांतरण- डॉ. मदन गोपाल लढ़ा) 2020
साक्षात्कर : सृजन-संवाद (2020)
व्यंग्य संग्रह : पंच काका के जेबी बच्चे (2017), टांय-टांय फिस्स (2017)
आलोचना पुस्तकें : बुलाकी शर्मा के सृजन-सरोकार (2017), मधु आचार्य ‘आशावादी’ के सृजन-सरोकार (2017), कागद की कविताई (2018), राजस्थानी साहित्य का समकाल (2020)
संपादित पुस्तकें : आधुनिक लघुकथाएं, राजस्थानी कहानी का वर्तमान, 101 राजस्थानी कहानियां, नन्द जी से हथाई (साक्षात्कार)
अनूदित पुस्तकें : मोहन आलोक का कविता संग्रह ग-गीत और मधु आचार्य ‘आशावादी’ का उपन्यास, रेत में नहाया है मन (राजस्थानी के 51 कवियों की चयनित कविताओं का अनुवाद)
शोध-ग्रंथ : निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध
अंग्रेजी में : Language Fused In Blood (Dr. Neeraj Daiya) Translated by Rajni Chhabra 2018

राजस्थानी में-

कविता संग्रह : साख (1997), देसूंटो (2000), पाछो कुण आसी (2015)
आलोचना पुस्तकें : आलोचना रै आंगणै(2011) , बिना हासलपाई (2014), आंगळी-सीध (2020)
लघुकथा संग्रह : भोर सूं आथण तांई (1989)
बालकथा संग्रह : जादू रो पेन (2012)
संपादित पुस्तकें : मंडाण (51 युवा कवियों की कविताएं), मोहन आलोक री कहाणियां, कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां, देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां
अनूदित पुस्तकें : निर्मल वर्मा और ओम गोस्वामी के कहानी संग्रह ; भोलाभाई पटेल का यात्रा-वृतांत ; अमृता प्रीतम का कविता संग्रह ; नंदकिशोर आचार्य, सुधीर सक्सेना और संजीव कुमार की चयनित कविताओं का संचयन-अनुवाद और ‘सबद नाद’ (भारतीय भाषाओं की कविताओं का संग्रह)

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