Saturday, June 04, 2022

‘जय हो’ की नाराजगी / डॉ. नीरज दइया


मोबाइल टनाटनाया तो स्क्रीन पर नाम चमकने लगा। मन में सोचा यह क्यों फोन कर रहा है? बिना काम के और बिना मतलब के फोन उठाने में मेरी रुचि नहीं रहती। मेरी इस रुचि और अरुचि का संभवत उन्हें मालूम नहीं था, फिर से फोन बज रहा था और नाम भी वहीं था। आर. के. जोशी आखिर क्या बात करना चाहते हैं? कुछ लोग गजब की पिंडी पकड़ होते हैं, हमें सोचना चाहिए कि सामने वाले ने एक बार फोन नहीं उठाया, दोबारा फोन नहीं उठाया... तो फिर तीसरी बार फोन क्यों कर रहे हैं? मैंने फोन उठाया और बहुत मधुर स्वर में कहा- भाई साहब प्रणाम। कहिए...
- कब से फोन किए जा रहा हूं, आप फोन क्यों नहीं उठा रहे हैं? फोन उठाने का भी कोई खर्चा आता है क्या...? ऐसे अवसरों पर झूठ हमारी बड़ी सहायता करता है। दूर बैठे आदमी को बस सुनाई सुनाई देता है, दिखाई नहीं देता है। इसलिए मैंने कहा- भाई साहब मैं ड्राइविंग कर रहा था और ट्रैफिक बहुत था। क्षमा चाहता हूं इसलिए फोन नहीं उठा पाया। हुकुम करिए आप क्या कह रहे थे?
- नहीं पहले यह बताओ, अब भी गाड़ी चला रहे हो या रुके हो कहीं पर...?
कहने वाले ने झूठ थोड़े ही कहा है- एक झूठ को सच बनाने के लिए हजार झूठ बोलने पड़ते हैं। मैंने कहा- गाड़ी को साइड में लगा कर रोक लिया है, आपसे बात करने के लिए...।
- चलो तो फिर कोई बात नहीं, फिर बात करेंगे। जब आप फ्री हो तो फोन कर लेना...।
- ऐसा भी क्या है भाई साहब, अब बता भी दीजिए... गाड़ी रोक ली है और साइड में लगा ली है। मुझे गुस्सा आ रहा था कि जब इतना जरूरी काम नहीं था तो फिर घंटी पर घंटी क्यों किए जा रहे थे।
जोशी भाई साहब ने कहा- मैंने तो इसलिए फोन किया था कि मैं जानना चाह रहा था कि मैंने ऐसी क्या गलती कर दी, जिससे आप नाराज हो गए हैं।
इसे कहते हैं किसी की शराफत पर लट्ठ मारना। मुझे बातों में ऐसी जलेबिया पसंद नहीं है। अपने गुस्से को काबू में रखते हुए मैंने उत्तर दिया- मैं भला आपसे क्यों नाराज हूं। मैं नाराज हूं, ऐसा आपको किसने कहा? आपके और हमारे संबंध तो बरसों पुराने हैं और घर जैसे हैं। आप दूसरों की बातों में नहीं आए।
- दूसरे किसी ने नहीं कहा है यह तो साफ-साफ दिखती बात है!
- भाई साहब ऐसे समझ में नहीं आ रहा है, आप सीधे-सीधे बताइए बात क्या है?
- पिछले तीन-चार दिनों से देख रहा हूं कि आप फेसबुक में मुझे टैग नहीं कर रहे हैं।
मैंने मन ही मन कहा- खोदा पहाड़ निकली चूहिया। पर प्रत्यक्ष में बोला- तो यह जरूरी बात है...।
- हां तो मुझे टेंशन हो गयी कि ऐसा मैंने क्या कर दिया, कह दिया या कहीं कुछ लिख दिया कि आपने मुझे टैग करना बंद कर दिया है!
- ठीक है भाई साहब मैं आपको घर जाकर सभी पोस्ट में टैग कर दूंगा। अब मैं उनको समझाने की स्थिति में नहीं था कि फेसबुक आदि अपने तो रोज के धंधें हैं, कोई टैग हो गया तो ठीक नहीं हुआ तो ठीक। अपने दोस्ती दुश्मनी देखकर टैग नहीं करते जी। जो हाथ में जाए उसे ही टैगिया देते हैं। ये जोशी भाई साहब मेरी हर पोस्ट पर केवल एक ही बात लिखते हैं- जय हो। मैं किसी के मरने की खबर लगा दूं या जन्मदिन की बस इनका कॉपी-पेस्ट हर जगह ‘जय हो’ ही होता है। मैंने तो इनका नाम ही जय हो निकाल दिया है। तो जनाब जय हो ने सवाल किया- वह तो ठीक है। नहीं, पर कारण तो बताओ ना ऐसा क्या हुआ? पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ।
- तो ठीक है भाई साहब फोन अब रखें। मैं अभी यहीं रुका हुआ तो हूं, अपने काम पर बाद में जाऊंगा। आपको फेसबुक पर सभी पोस्टों पर पहले टैग कर देता हूं।
- नहीं मेरा मतलब यह नहीं है, आपको जहां जाना है वहां पहले जाओ। बाद में जब फ्री हो तो मेरी बात पर सोचना।
- जी भाई साहब फोन रखता हूं। और मैंने फोन काट दिया। मन ही मन एक गंदी सी गाली निकाली। जिसे यहां लिखना ठीक नहीं।.... कितना खून पी गाया। फोन मेरा, फेसबुक मेरी, डाटा पैक मेरा, पोस्ट मेरी, तो मैं किसी टेग करूं और किसे नहीं करूं... यह मर्जी भी मेरी चलेगी या तुम्हारी।
कुछ लोग टैग करने पर परेशान हो जाते हैं और यह जनाब है कि टैग नहीं करने पर इतने परेशान हो लिए। समझदार लोग ठीक कहते हैं कि फेसबुक, व्हाट्सएप, टि्वटर और सोशल मीडिया के दूसरे विकल्प आदमी का समय बहुत खाते हैं। इनकी चकरी चढ़े तो फिर दो घड़ी सुख चैन से बैठ नहीं सकते हैं। कब कहां से किस की घंटी बज जाए कहा नहीं जा सकता। यह घंटियां और बिप-विप दिन देखती है, ना रात और ना ही दोपहर। कोई सो रहा है, कोई पढ़ रहा है, कोई कुछ खा रहा है, कोई कुछ भी कर रहा है, कोई कुछ बात कर रहा है या किसी काम में व्यस्त हैं... पर साहब यह सब कुछ फ्री है। यह हमारी आजादी है कि हम इनके बंधनों में बंध कर इनके गुलाम हो चुके है। बिना इन सब के अब तो सांस भी अच्छे से नहीं आती है। इस फ्री सेवा में कोई टेंशन ले तो टेंशन सर्वाधिक फ्री है।
जोशी भाई साहब टेंशन ले रहे हैं इसलिए मैं अपनी सभी फेसबुक पोस्ट को पहले उन्हें टेग कर देता हूं। फिर आपसे आगे की बात कभी करूंगा क्योंकि पहले तो टैग करने में समय लगेगा और उसके बाद टैग करके ‘जय हो’ को सूचित भी करना पड़ेगा कि भाई साहब आपको टैग कर दिया है। लिख दो अब आप ‘जय हो’।
मेरा निवेदन है कि आपको भी यदि टैग करवाने में रुचि हो तो प्लीज फोन नहीं करें, इस काम के लिए बस मैसेज ही काफी है।

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कविता संग्रह : उचटी हुई नींद (2013), रक्त में घुली हुई भाषा (चयन और भाषांतरण- डॉ. मदन गोपाल लढ़ा) 2020
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संपादित पुस्तकें : आधुनिक लघुकथाएं, राजस्थानी कहानी का वर्तमान, 101 राजस्थानी कहानियां, नन्द जी से हथाई (साक्षात्कार)
अनूदित पुस्तकें : मोहन आलोक का कविता संग्रह ग-गीत और मधु आचार्य ‘आशावादी’ का उपन्यास, रेत में नहाया है मन (राजस्थानी के 51 कवियों की चयनित कविताओं का अनुवाद)
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अंग्रेजी में : Language Fused In Blood (Dr. Neeraj Daiya) Translated by Rajni Chhabra 2018

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अनूदित पुस्तकें : निर्मल वर्मा और ओम गोस्वामी के कहानी संग्रह ; भोलाभाई पटेल का यात्रा-वृतांत ; अमृता प्रीतम का कविता संग्रह ; नंदकिशोर आचार्य, सुधीर सक्सेना और संजीव कुमार की चयनित कविताओं का संचयन-अनुवाद और ‘सबद नाद’ (भारतीय भाषाओं की कविताओं का संग्रह)

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