साहित्य मार्ग की सहयात्री- संजू श्रीमाली जी / डॉ. नीरज दइया
राजस्थान ही नहीं अगर हम भारतीय और वैश्विक स्तर पर भी बात करें तो महिलाएं अधिक कला-प्रेमी होने के उपरांत भी साहित्य में संख्यात्मक रूप से कम हैं। तुलनात्मक रूप से वे स्वयं सौंदर्य की प्रतिमूति कही गई हैं और उनकी दृष्टि निसंदेह देश-समाज और काल को देखने में पुरुष-दृष्टि से काफी भिन्न है। यह भी कहना उचित होगा कि स्त्रियां अधिक संवेदनशील होती हैं। आवश्यकता इस बात की है कि कला, सौंदर्य और संवेदना से परिपूर्ण यह वर्ग प्रथम कोटि में स्थान प्राप्त करे। साहित्य मार्ग की एक सक्रिय सहयात्री हैं- संजू श्रीमाली जी, जो विविध विधाओं में राजस्थानी और हिंदी दो भाषाओं में लगातार समान रूप से सक्रिय है।
हम कविता के विषय में अब भी कोई एक सर्वमान्य परिभाषा कुछ पंक्तियों में नहीं दे सकते हैं और यह भी रेखांकित किया जाता रहा है कि परिभाषा प्रत्येक दौर में परिवर्तनशील रहेगी। रचनाकार की अपनी अभिनव दृष्टि होती है और वह कविता ही नहीं साहित्य की विधाओं को और हर शब्द को भी अलग अलग समय अपनी दृष्टि से देखता अथवा कहें कि रचता है। कवयित्री संजू श्रीमाली जी के इस संग्रह में जीवन को देखने के साथ कुछ रचने का भाव भी प्रमुखता से देखा जा सकता है। यहां विचार के साथ सघन संवेदनाओं के बिंब हैं, जिनमें एक स्त्री का सुकोमल चेहरा झिलमिलता है।
अपने आस-पास के जीवन और संबंधों को देखते-परखते हुए कवयित्री संजू श्रीमाली जी कहीं भी किसी पर कोई दोषारोपण नहीं करती हैं वे बस उन भावनाओं को कविता के माध्यम से हमारे अंतस में आकार देते हुए हमें विचारवान बनने का आह्वान करती हैं। कविता में बहुत कुछ कहे जाने के बाद भी अब भी बहुत कुछ अव्यक्त है, यह अव्यक्त को व्यक्त करने का एक प्रयास है।
कवयित्री संजू श्रीमाली जी की संवेदनशीलता है कि वे सामान्य जीवन स्थितियों में भी मर्म को उद्घाटित करने में सक्षम है। इस संग्रह में सर्वाधिक प्रभावित करने वाली बात इन कविताओं के रूप में किसी पूर्ववर्ती कवि के किसी चेहरा अथवा अंश का नहीं झांकना है। ये कविताएं स्वयं कवयित्री द्वारा निर्मित एक ऐसी काव्य-वीथी है जो अपनी भाषिक सरलता और सहजता से प्रभावित करती है। दुनिया की आधी आबादी के विषय को अधिक गंभीरता से देखने की आवश्यकता पर बल देती इन कविताओं का स्वागत है। संग्रह ‘खुला आसमां’ संजू श्रीमाली जी के एक संवेदनशील रचनाकार के साथ-साथ प्रयोगधर्मी कवयित्री होने का प्रमाण है।
- डॉ. नीरज दइया
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