सांवर दैया ने राजस्थानी कहानियों के लिए तैयार की नई जमीन: डॉ. जोशी
बीकानेर। अनुवाद विधा ने भारतीय ही नहीं विश्व की भाषाओं के बीच सेतु का कार्य किया है। आज भी अनुवाद एक महत्वपूर्ण विधा है। जिसके माध्यम से ही हम अन्य भाषाओं के रचेे साहित्य को पढ़ समझ सकते हैं और हमारे साहित्य को अन्य भाषाओं के पाठकों के बीच ले जाने का सार्थक उपक्रम इसी विधा के माध्यम से कर सकते हैं।
कवि कथाकार एवं व्यंग्यकार सांवर दैया की रचनाओं का विभिन्न भारतीयों भाषाओं में अनुवाद वाचन होना अपने आप में नव-पहल है। यही केन्द्रीय भाव शनिवार को नालंदा पब्लिक सी. सै. स्कूल के ‘सृजन-सदन’ में प्रज्ञालय संस्थान एवं राजस्थानी युवा लेखक संघ द्वारा आयेाजित ‘अवरेख’ कार्यक्रम की 8वीं कड़ी में सामने आए। कार्यक्रम संयोजक कथाकार कमल रंगा ने बताया कि समारोह में राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल नई दिल्ली संयोजक मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने कहा कि सांवर दैया बहुविधाविद् तो थे ही साथ ही उन्होंने राजस्थानी हिन्दी के साहित्य के भंडार को समृद्ध किया। आलोचक डॉ. बृजरतन जोशी ने कहा कि सांवर दैया जहां राजस्थानी कहानी की नई जमीन तैयार करते हैं और एक परंपरागत ढांचे का अतिक्रमण करते है। कवि आलोचक डॉ. मदन सैनी ने कहा कि सांवर दैया कि भाषा की मठोठ और शिल्प की बेजोड़ घड़त ने उनकी रचनाओं को एक जुदा और महत्वपूर्ण पहचान दी। प्रारंभ में सांवर दैया के व्यक्तित्व और कृतित्व पर टिप्पणी की। इस मौके पर प्रेेम नारायण व्यास, सरदार अली, सरल विशारद डॉ. नीरज दैया, मौनिका गौड़, बुलाकी शर्मा, राजेन्द्र जोशी सहित दर्जनाें लोग मौजूद रहे।
दैया की कविताओं का कई भाषाओं में वाचन किया
कार्यक्रम में सांवर दैया के राजस्थानी हाइकू का हिन्दी में अनुवाद कवयित्री डॉ संजू श्रीमाली, हिन्दी कविता का उर्दू में अनुवाद वाचन जाकिर अदीब, अंग्रेजी अनुवाद का वाचन युवा कवि बी.डी हर्ष, सिंधी भाषा की कविता का अनुवाद कवि मोहन थानवी, कविता का पंजाबी अनुवाद पुखराज सेालंकी, संस्कृत भाषा में अनुवाद कवयित्री ईला पारीक ने की। राजस्थानी व्यंग्य का उर्दू में वाचन लेखक ईसरार हसन कादरी ने किया। हिन्दी कविता का राजस्थानी अनुवाद का अनुवाद कवि गिरिराज पारीक ने किया।
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