केंद्रीय
साहित्य अकादेमी रो बरस 2015 रो पुरस्कार पोथी ‘गवाड़’ (मधु आचार्य
‘आशावादी’) नै अर्पित करीजैला। इण उपन्यास माथै आपनै राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति
अकादमी, बीकानेर रो ‘मुरलीधर व्यास राजस्थानी कथा-पुरस्कार’ आगूंच मिल्योड़ो। साहित्य
अकादेमी परामर्श मंडल रा सदस्य मधुजी 27 मार्च, 1960
(विश्व रंगमंच दिवस) नै विद्यासागर आचार्य रै आंगणै जलमिया। एम. ए. (राजनीति
विज्ञान), एलएल.बी. कर पत्रकारिता
और संपादक रै रूप रोजगार सूं जुड़िया मधुजी राजस्थानी मांय लांबै बगत सूं एक
नाटक-लेखक, अभिनेता, निर्देसक, पत्रकार, संपादक, समाजसेवी रै रूप मांय सक्रिय रैया।
बरस 1990 सूं विविध विधावां मांय लेखन अर ‘स्वतंत्रता आंदोलन में
बीकानेर का योगदान’ विषय माथै शोध चावो रैयो। लारलै बरसां
सूं आपरो नांव राजस्थानी अर हिंदी मांय खूब-खूब लेखन खातर घणी चरचा मांय है।
प्रकाशित
राजस्थानी साहित्य : ‘अंतस उजास’ (नाटक), ‘गवाड़’, ‘अवधूत’, ‘आडा-तिरछा लोग’ (उपन्यास) ‘ऊग्यो चांद ढळ्यो जद सूरज’, ‘आंख्यां मांय सुपनो’ (कहाणी-संग्रह), ‘अमर उडीक’ (कविता-संग्रह), ‘सबद साख’ (राजस्थानी विविधा) शिक्षा
विभाग, राजस्थान खातर संपादन। अर
हिंदी में ‘हे मनु!’, ‘खारा पानी’, ‘मेरा शहर’, ‘इन्सानों की मंडी’, ‘@24 घंटे’, ‘अपने हिस्से का रिश्ता’ (उपन्यास), अपना होता सपना (बाल उपन्यास), ‘सवालों में जिंदगी’, ‘अघोरी’, ‘सुन पगली’, ‘अनछुआ अहसास और अन्य कहानियां’ (कहानी-संग्रह), ‘चेहरे से परे’, ‘अनंत इच्छाएं’, ‘मत छीनो आकाश’, ‘आकाश के पार’, ‘नेह से नेह तक’, ‘देह नहीं जिंदगी’ (कविता-संग्रह), ‘रास्ते हैं, चलें तो सही’ (प्रेरक
निबंध), ‘रंगकर्मी रणवीर सिंह’ (मोनोग्राफ)
आद। अबार आप दैनिक भास्कर (बीकानेर) रा कार्यकारी संपादक रूप बीकानेर में कारज
संभाळै।
आप
सूं बंतळ करी राजस्थानी रा चावा कवि-आलोचक डॉ. नीरज दइया।
- संपादक
नीरज दइया : सब सूं
पैली तो ‘गवाड़’ रै पुरस्कृत हुवण री बधाई। ‘गवाड़’ री रचना-प्रक्रिया बाबत बताओ।
मधु आचार्य : गवाड़ नै मूळ रूप सूं एक लघु-उपन्यास
रै रूप में लिखण री पैली कोसीस करी। एक गवाड़ में बै सब चीजां मौजूद हुवै जिकी पूरै
देस में हुवै। हर गवाड़ जे देस रो प्रतिनिधित्व करै तो शायद देस री एकता अर अखंडता
वास्तै जिण ढाळै राजनेता लोग बात करै, बां नै इत्ती करण री जरूरत कोनी पड़ै। क्यूं कै प्रोत्साहन, सम्मान अर सैयोग आ
भावना मूळ रूप सूं गवाड़ सूं ई पनपै। गवाड़ री संस्कृति भोत पुराणी है। उण संस्कृति
रै लोप हुवण सूं ई घणी-सी समस्यावां खड़ी हुई। आं सगळी समस्यावां रो समाधान गवाड़ कर
सकै। ओ छोटो-सो कंसेप्ट दिमाग में हो, उण नै लेय’र एक गवाड़ रो चितराम राख मोटै परिपेख
में देस बणावण री कोसीस करी।
नीरज दइया : ‘गवाड़’
आपरै इण कलेवर रूप सूं बरसां पैली लघु-उपन्यास रै रूप में चेतन स्वामी री टैम
‘जागती जोत’ रै मारफत साम्हीं आयो। बरसां पछै विस्तार कर प्रकाशित करण री कांई
जरूरत लखाई?
मधु आचार्य : ‘जागती-जोत’ पत्रिका री
आपरी एक सींव ही। कमती पानां में लिखणो उण बगत पत्रिका री मांग ही जद लिख्यो। उण
मांय पूरी गवाड़ लिखीज कोनी सकी। केई पात्र गवाड़ रा बकाया रैयग्या। इण खातर जद
पत्रकारिता सूं कीं फुरसत मिली तद उण नै दस-बारै बरसां पछै सावळ कंसीव कर’र
लिख्यो।
नीरज दइया : मूळ
मांय आप री पैठ नाटककार रूप मानीजती रैयी, आप रंगमंच सूं लांबै बगत तांई जुड़िया
रैया। नाटक ‘अंतस-उजास’ बरस 1995 में छप्यो। आपनै उपन्यासकार रूप मांय
आवण री कांई कोई प्रेरणा मिली?
मधु आचार्य : असल में गद्य रै बणी-बणाई
लीक देखी अर नरेशन उण मांय बेसी हुवै, पण राजस्थानी गद्य में रोचकता मूळ रूप सूं जियां कैवूं कै सांवर नीरज
दइया जी जिण ढाळै कहाणी मांय संवादां सूं सरू करी। जिकी कहाणी री सींव नै छोटी करण
री कोसीस ही, संवाद कहाणी री लैंथ छोटी करै अर डेफ्त नै बड़ी ऊंडै तांई लेय जावै।
कारण कै संवाद पांच लाइन रै नरेसन नै एक ओळी मांय बात नै पूरी प्रगट कर सकै। बां
री संवाद-कहाणियां सूं म्हैं घणो प्रभावित हो अर म्हैं बां री कहाणी रो नाट्य-मंचन
ई करियो। उण शैली नै अंगीकार करतै थका
विचार करियो कै नाटक रो उपयोग कथा में करियो जावै तो स्यात अभिव्यक्ति बेसी
असरकारक हुवैला। आ सोचता म्हैं गद्य विधा पासी आयो। हालांकि नाटक म्हारी मूळ विधा
अर कर्म रैयो। नाटक में काम करण रो अर समझण रो फायदो कथा-साहित्य रै रचाव मांय
मिल्यो। म्हैं समझूं इणी खातर ‘गवाड़’ उपन्यास नै घणी सरावणा मिली। नरेशन कम अर
संवाद बेसी हुवण रै कारण।
नीरज दइया :
राजस्थानी मांय लोककथा परंपरा पछै आधुनिक कहाणी आवै। इण जातरा मांय गवाड़ रो गद्य
आपरी पूरी परंपरा सूं न्यारो-निरवाळो लखावै। अपां रै अठै बांचण-सुणण अर सुणावण री परंपारा
मांय गवाड़ रो ओ प्रयोग सावचेती सूं सोच-समझ करियोड़ो माना का अनायास ही इयां
हुयग्यो?
मधु आचार्य : राजस्थानी रा जित्ता
उपन्यास हा, बै म्हारै बांच्योड़ा हा। घणा-सा’क कथानक माथै घणो लिख्यो जा चुक्यो
हो। जरूरत ही नवी बुणगट मांय नवै कथानक नै उपन्यास रूप रचण री। तद ई कोई बात बेसी
प्रभावी हुय सकै। ओ उपन्यास लिखती वेळा चेतन स्वामी अर पछै डॉ. अर्जुनदेव चारण सूं
ई बंतळ हुई। बां रो ई ओ कैवणो हो कै कोई नवो प्रयोग विधा में हुवणो चाइजै जिण सूं
रूढिगत परंपरा जकी चालती आय रैयी ही उण रो आपरो मोल है अर बो कम कोनी। पण उण मांय
नवै रचाव री बात अंगेजणी ही। गवाड़ मांय एक नवाचार री दीठ बेसी रैयी।
नीरज दइया : गवाड़
मांय जिकी कोलाज री सैली है बां आपरै आगलै उपन्यास मांय कोनी। ‘अवधूत’ में आप कथा
नै प्रयोग पछै उणी परंपरागत बुणगट मांय पाछा लावो। क्यूं?
मधु आचार्य : ‘गवाड़’ पछै दो उपन्यास
‘अवधूत’ अर ‘आड़ा-तिरछा लोग’ साम्हीं आया। दोनूं री बुणगट तो आप न्यारी ओळख सको। परंपरागत उपन्यास रो रूप तो ‘अबधूत’
में मिलैला, पण कीं-कीं डायरी-विधा रो प्रयोग
ई देख सको। हां इण बात नै मानूं कै उण मांय म्हैं पूरो सफळ कोनी हुय सक्यो। पण डायरी
स्टाइल में लिखण री कोसीस ‘आड़ा-तिरछा लोग’ मांय है। असल मांय हरेक प्रयोग ओ देखणो
हुवै कै पाठक उण नै स्वीकारै या कोनी?
जिण में सफलता मिलसी उण नै देखतां-समझतां थका राजस्थानी में घणा उपन्यास लिखण री
मन मांय राखूं।
नीरज दइया : आप नाटक
लिख्या, उपन्यास लिख्या अर कहाणियां पछै कवि रूप ई साम्हीं आया हो। आपरी खुद रै
लेखन री मूळ विधा किण नै मानो?
मधु आचार्य : लेखक री लेखन पेटै बगत-बगत माथै मनगत बदळती
रैवै। कैवण नै कैय सकां पैली म्हैं नाटककार रूप जाणीजतो, आज उपन्यासकार रै रूप
मांय ओळख मिली है। म्हारो मानणो है कै कोई रचनाकार फगत रचनाकार हुवै... मूळ बात
सिरजण री हुया करै अर सिरजण चायै किणी विधा मांय हुवै। लिखतो रैवणो किणी लेखक खातर
घणो जरूरी हुया करै।
नीरज दइया :
राजस्थानी रै समकालीन सिरजण पेटै आपरा कांई विचार है?
मधु आचार्य : राजस्थनी रो साहित्य किणी
पण भासा सूं कमती कोनी। केई केई भासावां सूं तो भोत आगै है पण तकलीफ री बात कै
मूल्यांकन कोनी हुय रैयो। इण रो मूळ कारण आलोचकां री कमी मानूं।बेसी आलोचक अर आलोचना सूं राजस्थानी साहित्य रो
अलग अलग रूप-रंग कूंत’र आपां साम्हीं एक पूरो दीठाव आवतो। दूजी भासावां तांई आपां
री बात पूगै तो बां नै ई ठाह पड़ै कै आपाणो साहित्य कित्तो कांई अर किसो’क है। आपां
रै सिमरध साहित्य री बात म्हैं मानूं। ओ घणै गीरबै अर मान रै लायक है। आज जरूरत है
आलोचना अर अनुवाद रै जरियै इण नै दूर दूर तांई पूगावां।
नीरज दइया :
राजस्थानी रा केई लिखारा हिंदी में ई लिखै अर बां रै लेखन में मूळ किसी राजस्थानी
री रचना अर किसी हिंदी री ठाह कोनी लागै। घणो घाळमेळ निजर आवै पण आप हिंदी में आं
बरसां खूब लिख्यो अर इण ढाळै रो भेळसेळ कोनी करियो। म्हारो सवाल है कै आप रचनाकार
रूप एक सूं बेसी भासा मांय लिखो जद किणी रचना पेटै भासा रो चुनाव कियां हुवै?
मधु आचार्य : राजस्थानी में लिखण पेटै
अठै री संस्कृति अर सभ्यता री बात देखूं, जिकी रचना रै विचार पेटै इण ढाळै रो लखाब
हुवै उण नै घणो रचा-बसा’र घणै बगत पछै धीजै सूं राजस्थानी में लिखूं अर राजस्थानी में लिखणो घणै आनंद री बात इण खातर मानूं कै
आपां री भासा घणी सिमरध है। मुहावरा-कहावतां अर जिकी भासा री मठोठ राजस्थानी मांय
मिलै बां हिंदी में कोनी। साची कैवूं राजस्थानी करता भासा रै मामलै मांय हिंदी ओछी
अर पोची है। आपां रै राजस्थानी समाज रा संस्कार अर संस्कृति पेटै जिका रंग अर जिकी
अपणायत है बा हिंदी भासा अर समाज मांय कोनी मिल सकै। म्हैं मानू इणी खातर राजस्थानी
में लिखणो मन री बात है। हिंदी म्हरै काम-काज, ब्यौपार अर रोजगार री भासा है इणी
खातर हिंदी मांय ई लिखतो रैवूं। दोनूं लेखन न्यारा-न्यारा मानूं अर ध्यान राखूं कै
किणी एक रो प्रभाव दूजै माथै नीं आवै। राजस्थानी रो आंचलिक रंग हिंदी में काम
लेवूं जिण सूं हिंदी रो कैनवास मोटो हुवै।
नीरज दइया :
राजस्थानी मान्यता री बात पेटै आपरा कांई विचार है? कांई आपां सरकारी मानता रै
नजीक मानां?
मधु आचार्य : मानता मिलणी चाइजै इण
मांय कोई दोय राय कोनी। पण ओ फैसलो पूरो पूरो राजनीति रै हाथां मानूं। सतावां निजू
लाभ अर स्वार्थ रै कारण भासावां नै मान्यता देवै। मानू ओ दबाब कमजोर है का पूरो
कोनी जित्तो हुवणो चाइजै कै राजस्थानी री मान्यता री बात ना तो राजस्थान सरकार
पूरी गंभीरता सूं लेवै अर ना केंद्र री सरकार। मानता आंदोलन नै दलीय भावना सूं ऊपर
उठ पूरो संरक्षण देवण सूं कोई बात बण सकैला नींतर म्हनै तो अजेस इण मांय खासी जेज
लागै।
नीरज दइया :
केंद्रीय साहित्य अकादेमी नै राजस्थानी रा दोय रचनाकार मानीता नंद भारद्वाज अर
अंबिकादत्त जद पाछा कर दिया, उण टैम आपरै पुरस्कार री घोसणा हुवणी अर इण पूरी बात
नै आप कियां लेवो?
मधु आचार्य : म्हनै डॉ. आईदान सिंह भाटी री बात घणी घणी सावळ
लखावै कै साहित्य अकादेमी फगत एक बो मंच है जिको राजस्थानी नै मानता देय राखी है
अर आयै बरस पुरस्कार-प्रोत्साहन देवै। सो पुरस्कार लौटाणो म्हनै तो ठीक कोनी लागै। पण जिण मोटै कारण नै लेय’र ओ सगळो
जिकी कीं हुयो उण सूं म्हारो कोई विरोध कोनी, बां री आपरी दीठ, धेय अर सोच है।
राजस्थानी नै मान-सम्मान देवण वाळी अकादेमी रै पुरसकार नै म्हैं म्हारै लेखन री
मोटी उपलब्धि समझूं। राजस्थानी खातर पुरस्कार लौटावण नै म्हैं सही कोनी मानूं
क्यूं कै आ भासा रै सम्मान री बात है।
नीरज दइया :
राजस्थानी में पत्र-पत्रिकावां रो तोड़ो देखां, पोथ्यां कमती छपै-बिकै, प्रांत री
अकादमी ठप्प पड़ी है। इण पूरै दीठाव पेटै आपरो कांई कैवणो है?
मधु आचार्य : अकादमी सरकार की
प्राथमिकता में बिलकुल कोनी। अकादमी रै बंद हुवण रै कारण आं सगळा सीगा माथै कमजोरी
देख सकां। राजस्थानी पोथ्यां रै बिकण रा पुखता इंतजाम हुवणा चाइजै। जियां केंद्र
सरकार राजभासा हिंदी खातर आदेस कर राख्यो है कै हिंदी पोथ्यां बेसी खरीद करो बजट
सूं। ठीक बियां ई प्रांत री सरकार नै राजस्थानी पोथ्यां खरीदण पेटै आदेस करणो
चाइजै कै पूरै बजट सूं साठ-सितर परसेंट री बंधी राजस्थानी भासा खातर करणी जरूरी
हुवै। हरेक सरकार आपरै छेहलै टैम अकादमी नै संभाळै। पाठक संस्कृति रै विगवास खातर
अकादमी पत्रिका काढै, पोथ्यां नै सैयोग देवै, संपादित-पोथ्यां छापै, न्यारा-न्यारा
आयोजन करै। आं सगळा सूं साहित्य रो एक माहौल बणै। रचना अर आलोचना नै मारग मिलै।
अबार तो सगळा मारग बंद पड़िया है। अकादमी दो बरस काम करै अर तीन बरस ठप रैवै।सरकारी
री आ भासा, साहित्य अर संस्कृति बाबत लापरवाही अर उपेक्षा है। कैवण नै तो घणी योजनावां बणा दी पण असलियत में आ दुख
री बात है, इण खातर अबै समाज नै जागरूक हुवण री दरकार है। जद ई सरकार रा कान
खुलसी।
नीरज दइया : आज लेखन
माथै मीडिया री मोटी चुनौती मानीजै। इण पेटै आपरा कांई विचार है?
मधु आचार्य : लेखन तो खुद हरेक दौर में
चुनौति रैयो है अर रैसी। मीडिया रै आयां पछै ई आज सबद री महता नै आपां सगळा मानां
क्यूं कै आखै देस मांय जिको काम बड़ा-बड़ा राजनैतिक दल कोनी कर सक्या बो काम कुछ
लेखकां रै पुरस्कार लौटावण री बात माथै हुयो। इण रो अरथ ओ है कै सत्ता सबद रै
महत्त्व नै आज ई स्वीकारै। सबद आपरो रूप बदळ’र क्रांति रै रूप मांय आवै तद इतिहास
गवाह है कै बो चोखी-चोखी सत्तावां नै हिलावै। मीडिया तो प्रोफेसन है आ बात लोगां
साम्हीं आयगी पण लेखन में प्रतिबद्धता अर समाजिक सरोकार है। मीडिया अर सबद रा आपरा
करम अर धरम न्यारा-न्यारा है। इण मांय ताळमेल हुवणो जरूरी है। म्हैं मीडिया नै सबद
रै साम्हीं कोई चुनौती कोनी मानूं।
नीरज दइया : आज री
कहाणी मांय परलीका रै कहाणीकारां री न्यारी ओळ देखां, इण ओळ अर कथेसर कहाणी आंदोलन
बाबत आपरी कांई राय है?
मधु आचार्य : परलीका री टीम अर कथेसर
अबै पूरी राजस्थानी दुनिया मांय कहाणी रै सीगै हरावळ मानीजै। कहाणी पेटै परलीका रै
कहाणीकारां अर कथेसर सूं जिण ढाळै नवै सूं नवो काम हुयो बो गीरबैजोग मानूं। कथेसर
केई नवा कहाणीकारां नै मंच दियो, बां री प्रतिभा साम्हीं आई। इण जसजोग काम खातर म्हारी
मंगळकामनावां।
नीरज दइया : कथेसर
रै मारफत नवै लिखारां नै आप कांई बात कैबणी चावो।
मधु आचार्य : बस फगत इत्तो ई कै खूब
पढो अर खूब लिखो। बेसी पढियां सूं चोखी समझ आसी अर चोखै लेखन सूं ई पाठक राजस्थानी
सूं जुड़सी। नूवै लेखन अर लेखकां सूं ई राजस्थानी आगै बधसी-बधासी।
मधु मधु
आचार्य ‘आशावादी;
कलकत्तिया
भवन, आचार्यां का चौक, बीकानेर
(राजस्थान)
ई
मेल : ashawaadi@gmail.com / मो. 9672869385
डॉ. नीरज नीरज दइया,
सी-107, वल्लभ गार्डन, पवनपुरी, बीकानेर (राजस्थान)
ई-मेल : neerajdaiya@gmail.com / मो. 9461375668
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