साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली और
मुक्ति संस्था, बीकानेर के आयोजन में पठित पत्र / नीरज दइया
लोकथावां रै मायाजाळ सांम्ही
आधुनिक कहाणी नै ऊभी करण मांय सिरै कहाणीकार अन्नाराम सुदामा (1923-2014)
रो नांव हरावळ मानीजै। पैली पीढी रा कहाणीकार सुदामा बरसां पैली
आपरै पैलै कहाणी संग्रै- “आंधै नैं आंख्यां” (1971) री भूमिका में लिख्यो हो- “राजस्थानी में कहाणी
साहित्य री कमी है। है जिको घणखरो पुराणी खुरचण खा’र जीवै
इसो। बींनै अलग-अलग आदम्यां, न्यारा-न्यारा गाभा पैरा’र आप आपरै ढंग सूं सजावण री सस्ती चेष्टा करी है, मूळ
में कोई अंतर को आयोनी। केयां, संकलन अर संपादन, भूमिका में दो शब्द अर बीं में ही दो-दो पांती घाल, कथा
साहित्य रो खासो भलो उपकार कियो है पण ऐ आसार कीं सीमा तांई ही ठीक हुवै। वर्तमान
भी कठै न कठै, मोटो महीन चित्रित हुणो चाहीजै। बींरी पूर्ति
अतीत सूं थोड़ी ही हुसी....।” कहाणीकार अन्नाराम सुदाम
वर्तमान रै मोटो-महीन चित्रण अर अतीत सूं मुगती री बात उण दौर मांय करी जद
लोककथावां रै संकलन-संपादन रो काम घणो जोरां माथै हो। कहाणी-जातरां री संभाळ करतां
कहाणीकार अन्नाराम सुदामा री कहाणियां माथै बात करणी जरूरी लखावै। चाळीस बरसां सूं
बेसी सुदामा जी री कहाणी सिरजण-जतरा च्यार पोथ्यां- आंधै नैं आंख्यां (1971),
गळत इलाज (1984), माया रो रंग (1996) अर ऐ इक्कीस (2011) मांय जगमगावै।
“ऐ इक्कीस” राख्यो। किणी कहाणीकार री कहाणी-जातरा
बाबत बात करता आलोचना नै बगत अर कहाणीकार री दीठ माथै ध्यान देवणो चाइजै। बरस 1971 मांय कहाणी-संग्रै “आंधै नैं आंख्या” सूं सुदामा जी जिकी जातरा चालू करी बा जातरा 2011
तांई चालू राखी। राजस्थानी कहाणी अर लोककथा री संभाळियोड़ी पूरी भाषा नै बां आपरै
पैलै कहाणी-संग्रै “आंधै नैं आंख्यां” री
पांचू लांबी कहाणियां रै मारफत बदळ’र नुंवै ढाळै ढाळण री
तजबीज करी। फेल-पास री बात पछै पण परंपरा मांय आ नुंवी भाषा नै सोधण री खेचळ ही।
वयण सगाई अर वचनिका री खास बुणगट मांय जिण ढाळै हिसाब राखीजै, उणी ढाळै सुदामा री इण नुंवी भाषा मांय ओळी-ओळी भाव-साम्य भेळै ऊभा
बिम्बात्मक दीठावां रो पूरो हिसाब दीसै। आ रसभरी मनमोवणी भाषा किणी प्रयोग री
तजबीज ही सांम्ही ही। लखावै कै उण बगत कहाणीकार नै आपरी इण नुंवी भाषा मांय रचीजी
आं कहाणियां री गढत अर पूग माथै जरा’क अभरोसो रैयो हुवैला।
स्यात ओ ई कारण हुवैला कै भूमिका मांय आं कहाणियां पेटै कै कांई कैवणी चावै
कहाणीकार खुद आगूंच बां लिख्यो। इण पछै रा तीनूं कहाणी-संग्रै देख सकां जठै
कहाणीकार आपरी कहाणियां रा मायना भूमिका लिख’र प्रगट नीं
करिया।
ओ संजोग है कै आं च्यारू
पोथ्यां मांय इक्कावन कहाणियां है अर अन्नाराम सुदामा आपरै छेहलै कहाणी-संग्रै रो
नांव
“आंधै नैं आंख्यां”
संग्रै री भाषा मांय हास्य अर व्यंग्य सूं बांचणियां नै रस तो आवै
पण बिम्बां री भरमार सूं कहाणी री मूळ बात अर संवेदना कठैई दब-सी जावै। कहाणी जठै
दौड़णी निगै आवणी चाइजै बठै कहाणी डिगू-डिगू करती आगै बधै। कहाणीकार नुंवै गद्य री
सिरजणा मांय कहाणी विधा सूं घणी घणी आंतरै निकळ जावै। सुदामा री आं कहाणियां री
भाषा री आलोचना हुई अर आ पूरी भाषा-बुणगट सेवट मांय कहाणीकार दूजै रूप मांय सोधण
री तजबीज कर लेवै। सुदामा जी री कहाणी जातरा मांय सेवट भाषा सूं बेसी भाव, आदर्श, जीवण-मूल्य अर संस्कार मेहताऊ हुय जावै। भाषा
अर दीठ एक खास रंग-ढंग मांय लैण माथै जाणै ठेठ तांई पाटी पढावती निगै आवै।
उल्लेखजोग है कै आं पाटी पढावती कहाणियां रो मूळ सुर आदर्श री थरपणा है अर इण मांय
कहाणीकार आपरी सफलता दरसावै। लोक भाषा री सहजता-सरलता आं कहाणियां री मोटी खासियत
मानी जाय सकै। आं सगळी बातां रै उपरांत ई कहाणीकार रो भाषा-रूप पूरी इण पूरी जातरा
मांय ठैरियोड़ो-सो लखावै। प्रयोग अर इक्कीसवी सदी रै असवाड़ै-पसवाड़ै जिको बदळाव
राजस्थानी कहाणी मांय निगै आवै उण भेळै आं कहाणियां नैं कोनी राख सकां।
ग्रामीण जन-जीवण सूं जुड़ी
सुदामा जी री कहाणियां मांय सामाजिक सरोकार, जीवण-मूल्य,
संस्कार अर मिनखपणै री जगमगाट जाणै बगत नै दीठ देवै। आधुनिक कहाणी
परंपरा मांय आं कहाणियां री आपरी एक न्यारी ओळखाण करी जावैला। कोई कहाणीकार कहाणी
क्यूं लिखै? इण सवाल रा न्यारा न्यारा जबाब हुय सकै। कहाणीकार
अन्नाराम सुदामा बाबत विचार करां तो लखावै कै बां आखी उमर माइत बण’र कहाणियां चूळियै उतरतै मानवियां नैं लैणसर लावण री दीठ सूं करी। “गळत इलाज” (1984) संग्रै री कहाणियां सूं जिकी छवि
कहाणीकार री बणै उण सूं आगै री कहाणियां मांय बो मुकाम बणायो राखै। बै औस्था रै
बंघण सूं मुगत रैय’र ढळती उमर मांय लगोलग कहाणियां लिखता
रैया। जसजोग बात आ कै अन्नाराम सुदामा मान-सम्मान अर पुरस्कारां पछै ई लिखणो सदीव
चालू राख्यो। आकाशवाणी खातर बां केई कहाणियां लिखी जिकी लारला दोय कहाणी संग्रै
मांय देखी जाय सकै। सुदामा जी नै बां रा करीबी मास्टर जी कैया करता हा। मास्टर जी
री कहाणियां मांय ठेठ सूं एक आदर्श मास्टर किणी बडेरै दांई सीख सीखावतो-समझावतो
मिलै।
बगत रै साथै-साथै ग्रामीण
जीवण मांय शहर री हवा पूग्यां उण रै रूप-रंग मांय केई बदळाव हुया। सत-असत अर
आस्थावां माथै बगत रो हमलो हुयो। इण सूं अंतस मांय सत-असत नै तोलण रा हरेक का आपरा
नुंवा बाट बणग्या। कहाणी मांय जथारथ अर अंतस री दोधाचींत री पूरी पड़ताळ करीजण
लागी। मिनख री इण जूझ मांय केई चितराम आंख्यां अगाड़ी किणी कहाणी रूप सांम्ही आया।
मिनख रै मन मांयली जूझ रै उजळ पख रा केई केई चितरामां री ओळखाण सुदामा जी री
कहाणियां सूं हुवै। आज जूनी कहाणियां नैं बांचा तद कहाणी मांय जिकी रकमां बाबत
विवरण लिखीज्या बै जूना अर अणखावणा हुयग्या। पइसा-टक्का री बातां सूं कहाणी रै
रचाव रै बगत रो संकेत मिलै। आजादी पछै अमीरी-गरीबी अर सेठ-सहूकारां-किसानां रा
जिकी जूझ काल ही बा आज नुंवै रूप मांय मिलै। दौड़ काल की मोळी ही अर आज स्सौ कीं
दौड़ मांय सामिल हुयग्यो।
नवी पीढी अर जूनी पीढी रै
आंतरै नैं कहाणी “फेट में आयोड़ो” मास्टर अर उण रै पढायोड़ै चेलै रै
मारफत राखै। कहाणी दोय स्थितियां सूं आ बात सांम्ही राखै कै जिको बालक स्कूल मांय
घणो इमानदार रो बो आपरै जीवण मांय रोजगार लाग्या बा इमारदारी बिसरा देवै। इण कहाणी
मांय जिको भूखो छोरो दस पइसा रा चिणा खावण खातर जणै जणै सांम्ही हाथ पसारै अर आं
सगळी बातां नैं देखण विचारण आळो मास्टर ई उण नैं दस पइसा री मदद नीं कर सकै क्यूं
कै उण री जेब में कोनी। महीनै रा लारला दिन है अर उण छोरै नै दस रिपिया रो मैलो सो
लोट लाध जावै जिको बो हैडमास्टर नै जमा करावै। लोट रो असली मालिक मजूर ई ठाडो
इमानदार निकळै अर उण री परख पछै हैडमास्टर उण नै उण रो लोट देय देवै। आ परख
करावतां कहाणीकार मास्टर री जेव मांय दस पइसा री कंगाली दरसावै अर हैडमास्टर दस
रिपिया रो नुंवो लोट जेब मांय सूं तुरत निकाळणो बांचणियां रै हियै सवाल ऊभो करै।
पचास बरसां रै नैड़ै पूगतै कहाणीकार री मनगत विचारां तो कैयो जाय सकै कै कहाणी मांय
सामाजिक उद्देश्य नै लियां ई “रोग रो निदान” जिसी कहाणी रै मिस इमानदारी रै पइसै अर बेइमानी रै पइसै मांय आंतरै रो पाठ
पढायो जाय सकै।
आजादी पछै किसान अर गाय री
बात करां तो चावा-ठावा कथाकार प्रेमचंद री ओळूं आवै। राजस्थानी कहाणी रै सीगै घणा
कहाणीकारां गांव,
किसान, काळ, बिखो अर
समाजू-रूढियां नै लेय’र कहाणियां लिखी है। अन्नाराम सुदामा
री कहाणियां अलग इण खातर मानीजै कै आं री कहाणियां मांय सगळी तकलीफां रै उपरांत
मिनख री हूंस बधावण री विचारधारा मिलै। किसान रै जीवण मांय गाय री लालसा री कहणी
है- “ढळै डूंगर : फळै चट्टान”। “बोध” कहाणी मांय गांव री जूनी जमीन मूळ मांय है अर “आंधै नैं आंख्यां” प्रतीकात्मक कहाणी है। इणी ढाळै
आगै चाल’र जीव-जगत सूं जुड़ी “सह-अस्थित्व”
जिसी कहाणी सुदामाजी लिखी तो काळ अर जीवण री हूंस नै परोटतां “अटूट” कहाणी ई लिखी। ऐ कहाणियां हियै तांई पूगै अर
मरम नै परस करै। संजोग री करामत सूं सजी आं कहाणियां मांय केई कहाणियां इत्ती सरल
अर सहज है कै आं नैं बाल-कहाणियां भेळै ई राख सकां, जियां कै
अणजाण बटाऊ अर मौत रा पग पाछा आद।
अन्नाराम सुदामा प्रगतिशील
अर जूनी मानसिकता रा एकठ कहाणीकार है। सेठ-साहूकारां रै सोसण अगाड़ी गरीबां री
पुकार आं री कहाणियां मांय साफ सुणी जाय सकै। “गळत इलाज” री कहाणियां मांय जठै समाजिक जथारथ दीसै बठै ई भावुकता अर ब्राह्मणवाद री
सींव ई देख सकां। अंधार-पख रै सांम्ही ऊजळ-पख नै पोखतै मिनखां री कहाणियां लिखी
जावणी चाइजै पण फगत एक री बात करियां काम कोनी चाल सकै। आं कहाणियां मांय हरेक
मनगत नै कहाणीकार एक रूढ भाव सूं देखण-परखण री बाण पोखै। “माया
रो रंग” अर “ऐ इक्कीस” कहाणी संग्रै आं बातां नै पुखता करै।
“सागी पगां” कहाणी मांय राजपूतां रो छोरो लकड़्यां बेच’र परिवार
रो गाड़ो गुड़कावै तो उण सांम्ही कहाणीकार समाज रै सेठ-सेठाणी अर गुरुजी रै मिस
न्यारै न्यारै वर्गां री मनगत दरसावै। ओ सागण जथारथ कहाणी “गुनैगार”
मांय गाडो आळै रसूल रै मारफत दूजै रूप मांय सांम्ही आवै। अठै गरीब
आदमी री इमानदारी अर अमीर आदमी री बेइमानी दीसै। दोनूं ई कहाणियां री पीड़ मरम नै
परस करै- राजपूत छोरै रै बाप री मौत अर रसूल री भांणजी री मौत भला ई साच मांय हुई हुवैला
पण आं कहाणियां री भावुकता लखावै। असल मांय आं कहाणियां रो जथारथ बदळतै समाज रो
जथारथ तो है, पण कहाणीकार बरस 1984
मांय छप्यै इण कहाणी-संग्रै मांय जाणै कठैई बिसाई खावतो-सो जावै। असल मांय ओ दीठ
अर बुणगट पेटै ठहराव है जिको आगै रै दोनूं संग्रां मांय देख सकां। कहाणी “सुलतान नेकी रो सम्राट” मांय ईमानदारी लूंठो दरसाव
है। कहाणी मांय खरै मिनखां नै जीवण सूं नित जूझ मांडता देखां तद सावल उपजै कै उण
नै रो ओ भोगणो-भुगतणो नित रो क्यूं पांती आवै? कहाणियां मांय जीवण री त्रासदी
झेलता यादगार पात्रा मांय एक गोपी म्हाराज है जिका रो धन खाय’र “गळत इलाज” कहाणी मांय
सेठाणी रै मरियां बां नै गूंग चढ जावै। कहाणीकार कैवणी चावै कै समाज मांय इण ढाळै
री बीमारियां रा सगळा इलाज गळत ई हुया करै। इणी ढाळै कहाणी “सूरज
री मौत” दोलड़ी-कथानक री कहाणी मांय सेठ अर गाड़ै आळै हुसैनियै
रै मारफत कहाणीकार पूरी व्यवस्था माथै सवाल उठावै- गरीब अर अमीर मांय फरक क्यूं?
गरीब नै सेवट मरणो क्यूं पड़ै?
कहाणी “सूरज री मौत” री
एक ओळी है- “सेठ बरस चाळीसेक रो हुवैला। मोटो पेट,
जाडी साथळां, ओछी पींड्यां, भारी बूकिया अर रंग रो टेलीफून।” कवि-आलोचक अर्जुन
देव चारण आपरी पोथी “राजस्थानी कहाणी : परंपरा-विकास”
(1998) मांय इणी प्रसंग पेटै लिख्यो है- “सेठ
नै काळौ नीं कैय टेलीफोन कैय लेखक स्यात् सोचियौ होवैला कै वो एक सांतरी उपमा
सोधी है पण वो आ बात भूलग्यौ कै आजकाल केई रंग रा टेलीफोन बाजार में आयगिया है इण
सारूं कहाणी पढणियौ इण सबद नै पढतां ई उणरै सीधै अरथ नै पकड़ नीं सकैला।” इणी ओळी पेटै राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति
अकादमी सूं प्रकाशित आधुनिक कहाणी रै प्रतिनिधि संकलन “उकरास”
(1991) री भूमिका पेटै संपादक सांवर दइया रा विचार है- “अठै रंग रो टेलीफून लेखक रै उणी पुराणै मिजाज री याद दिरावै। ठीक है,
टेलीफून रो रूढ रंग काळो ई हुवै अर काळो रो ई अरथ देवै, पण आजकाळै तो भांत भांत रै रूपाळै रंगांवाळा टेलीफून कोनी बापरग्या कांई?”
(पेज-14) दोनू बातां आपरी जागां ठीक है पण
कहाणी माथै उण रै रचाव, रचनाकाल अर लेखक री दीठ सूं विचार
करिया कैयो जाय सकै कै उण बगत फगत एक काळै रंग रो टेलीफोन चलस में आयो हो। बियां
तो आ तुलना ई खोटी है, किणी पण मिनख रो रंग इत्तो काळै नीं
हुवै अर इण ढाळै री तुलना अतिश्योक्ति ई कैयी जावैला।
ठूंठ कहाणी मांय मालण डोकरी
रै पोतै भेळै पढतै छोरै रो लगाव प्रगट हुवै पण ओ लगाव जित्तो जूनी पीढी री डोकरी
संभाळ राखै उत्तो नुंवी पीढी रो डाकधर कोनी राखै। अरथ री आ दौड़ इण बगत रो जथारथ है
अर कहाणी मांय डोकरी रो जिको मोह बोलै बो आज लारै छूटग्यो। ओ आज रै बगत रो सांच
है। इण कहाणी रै मारफत कहाणीकार इण सूं न्यारी बात कैवै कै ओ मोह याद रैवणो चाइजै
हो। साची आ धन री दौड़ आंधी है। आज रै जुग रो सांच है- डोकरी वाळै जूनै मोह नै बिसर
जावणो। अन्नाराम सुदामा कहाणी जातरा मांय इणी खातर याद करिया जावैला कै बां
मिनखपणै री केई बातां समझावण रो जतन करियो।
अन्नाराम सुदामा री कहाणियां
रै केंद्र मांय- बाल-विवाह,
सुगन-विचार, जीव-दया, छुआ-छूत,
स्वाभिमान, आत्म-सम्मान, ईमानदारी, पाड़ौस-धर्म, अंध-भगती,
जबान रो मोल, दया, संस्कार,
संबंध, स्वार्थ आद मिलै। कहाणीकार रै पात्रां
मांय घणखारा पचास रै आसै-पासै रा पात्र है। आपसी सम्पत अर सद्भाव सूं मेळ-मुलाकाती
आं पात्रां रो सोच लूंठो है। जियां कै आगूंच जिण धन री आंधी दौड़ री बात करी उण
पेटै कहाणीकार री आ थरपणा सरावणजोग है कै आज रै जुग मांय धन ई स्सौ कीं नीं हुवणो
चाइजै। दोय उल्लेखजोग कहाणियां री चरचा जरूरी है। कहाणी “सूझती
दीठ” मांय दूध अर “अखंड जोत” मांय धी नै बेचण री बात है। आज रै जुग मुजब हरेक खुद रो नफो विचारै। कीं
बेसी धन मांय खुद रो लाभ विचारण रै इण जुग सांम्ही आं कहाणियां रा पात्र दूध अर घी
रै बेच्या पछै उण रै उपयोग नै विचारता नफो करता जाणै घाटै नै अंगेजै। तुळछी रो
हवेली रै बारकर दूध री कार निकाळण नै दूध का मीरां बाई रो सेठ चूनीलालजी रै रामशरण
हुयां घी नै अंखड़ जोत करण खातर नटणो घणो अबखो काम है। आज ओ रूप कठैई देखण नै कोनी
मिलै। ओ रूप अर सोच हुय सकै आ दरसावणो कहाणीकार री लांठी सोच है। दूध-घी मिनखां
खातर है इण ऐळो गवाण सूं कांई सरै। इण ढाळै री आं कुरीतियां रो छेड़ो कोनी।
सुदामा री खासियत आ कै हरेक
कहाणी मांय याद रैवण जोग कथानक है। हरेक कहाणी री आपरी कहाणी है। कहाणी रो प्रभाव
इत्तो कै उण मांय पूग्या पछै जाणै कीं बातां हियै रै आंगणै सदा खातर मंड जावै।
कहाणी रा पात्र-वातावरण अर संवाद चाहे बिसर जावां पण मूळ मुद्दो जिको कहाणी कैवै बो
अंतस मांय बैठ जावै। “बेटी रो बाप” कहाणी मांय बेटी रो बाप सगै नै पूछै- “जान में मालकां आदमी अंदाजै कित्ताक हुयज्यासी?” अर
बेटै रो बाप जान री गिणती अस्सी-नब्बै सूं चालू करै फेर बात दोय सौ पन्द्रै माथै
आय’र टिकै। हुवै आ कै जान बधती बधती इण आंकड़ै नै पार कर’र डौढसै नेड़ा बेसी बध जावै। आयी जान सूं बेटै रो बाप किण नै पाछो भेजै अर
आपरी शान मांय विचारै कै बेटी रो बाप मत्तैई ढीलो हुसी। उल्लेखजोग है कै बेटी रो
बाप आपरी बात माथै अडिग रैवै। उण री हिम्मत इणी बात माथै जान नै पाछी करी। हुय सकै
ओ सांच गळै कमती उतरै। मूळ बात आ है कै ब्यांव-सावा मांय मिनख नै खुद री बात री
लाज अर सगै री पागड़ी री चिंता करणी चाइजै। आ कहाणी मिनखां बिचाळै आपरी बात री आण
राखण री पाटी पढावै।
अन्नाराम सुदामा री कहाणियां
सांस्कृतिक मोल नै कहाणी मांय आब दांई संभाळै। भारतीय संस्कृति मांय गाय पूजनीक
मानीजै अर गाय नै लेय’र इणी मनगत री कहाणी “आंख्यां खुलगी” मांय बेटो छियां बैठी बूढ़ी गाय रै लात मारै तद उण नै उण रो पूरो विगत मा
बतावै अर बेटै री आंख्यां खुल जावै। जीव-दया अर गाय रै पूजनीक भाव मांय कहाणी जीवण
अर जूझ सूं जुड़ नीं पावै जद कै नृसिंह राजपुरोहित री कहाणी “ओळमौ”
रो अंत आदर्शवादी हुयां रै उपरांत ई पूरी कहाणी डोकरी अर बूढ़ी गाय
री जूझ नै बदळतै लोक-व्यावहार भेळै जाणै सजीवण कर देवै। आं कहाणियां रा सतवादी
पात्र आपरै चरित्र अर व्यवहार रै पाण साख मांडता निगै आवै। कहाणी “ऊंची अर अटूट” मांय टाबरां नै बोरियां देय’र लाड लडावती मालण डोकरी आपरै सत माथै अडिग रैवै। बाट भलाई भाठै रै
ढगळियां रा हुवै पण बै खरा अर खरा सूं ई सवाया लाधै। कमाई अर जीवण रो मरम बखाणती
कहाणी सेवट पाठ पढावै अर पाठ पढावणो कहाणी रो कोई दोस कोनी। “चालतो-चालतो सोचै हो, कांई लुगाई है अटूट अर ऊंची,
कंगाली सैंदे ईं रै ओरियै आगै आई खड़ी है पण बा ईं रै काळजै री
दातारी कांनी देखली, ओरियै में बड़नो तो अळगो, बींरी थळी पर पग राखण री हिम्मत नीं जुटा सकै। आप लूखो दळियो, बो ही सायत खुरचण हुयोड़ो अर आयोड़ै नै दूध री गिलास? देणै
में इसो सुख, न किरोड़पति ही ले सकै अर न कोई धजाधारी मैंत
ही।” (पेज-81)
असल मांय आपां राजस्थानी
कहाणी जातरा मांय एक धारा रै रूप मांय आं कहाणियां नै बखाण सकां। मा, टाबर अर दूध री कहाणी “मोह-भंग” सीधी-सीधी बात समझावै कै मा जे खुद रै दूध सूं टाबर नै दूर दोनूं नैं
नुकसाण है। टाबर कमजोर रैवैला अर मा नै स्तन कैंसर हुवैला। रूप रै जाळ मांय आधुनिक
समाज इण ढाळै काळीधार मांय डूब जावैला। कहाणी “गळतो गरभ”
मांय मास्टर री आ मनगत विचारण लायक है, इण
मांय आजादी पछै हवेली अर झोंपड़ी रो आंतरो कहाणीकार बखाणै-“हूं
बीं हवेली में पढ़ावण जांवतो। जीवण सागै जूझतै ईं समूह नैं सरसरी अर उड़ती निजर सूं
नहीं आंख्यां गडो’र काई ताळ देखतो अर फेर चालतो-चालतो आंरी
उळझी अवस्था अर टूटती-संधती दिनचर्या पर सोचतो कै छात तो खैर आंरै पांति नीं आई
हुसी, चालो टाळ सही पण आंरी आंतां नै आटो अर कीं लगांवण,
फाटेसर गाभो अर मैल निचोंवण नैं कोई साबण री किरची तो मिलणी ही
चाइजै? इसो आं कांई अपराध कियो है, जीं
खातर आंनै आ अणचाई कैद भोगणी पड़ै।ई देस में जाया-जलम्या, गंगा-जमना
री सरसता आंरै खून सागै दौड़ै, बद्री-रामेसर अर आखै हिमाचळ रो
हेत आंरी चेतना पर उछळै, आंरी राय जद संसद अर विधानसभा तांई
आंकीजै तो बीं राज-राष्ट्र में आंरो कीं हक नीं बणै? ऐ रोटी
नहीं रोजी चावै, घर नहीं जाग्यां चावै अर चावै वादा नहीं,
ऊंचो आंवतो साच। गळती तो कठै न कठै है ही पण बींनै समझै कुण,
अर कुण बींनै सुधारै?” (पेज-53) कहाणीकार री आ टीप बां री भावनावां नै प्रगट करै। काम करण आळा नित खाड़ो
खोद’र पाणी पीवण वाळा ई जीवण रै तोल-मोल मांय इत्ता लांठां
कै ठाकर दांई कमतरिया ई धरमादो रो भार कोनी लेवै।
|
अन्नाराम ‘सुदामा’ |
“माया रो रंग”
अर “ऐ इक्कीस” री
कहाणियां जाणै बूंदी रो किणी लाडू दांई है। लाडू मांय हरेक दाणो एक सरीखो नाप रो
हुवै, उणी ढाळै इण पोथ्यां री कहाणियां मीठी गुटक अर एक नाप
री बुणगट मांय रचीजी है। हरेक कहाणी किणी सीख नै पोखण आळी है। ऐ कहाणियां आपरी
संभवानावां राखै कै आं सूं कीं सीख’र इण कळजुग मांय मिनख-जूण
संस्कारवान बणै। सींव ई आं कहाणियां री है कै इण ढाळै री कहाणियां रो चलन किणी एक
बगत तांई हो। लगै कै बरसां पैली लिख्योड़ी सुदामा जी री ऐ जूनी कहाणियां घणी पछै
पोथी रूप सांम्ही आयी हुवै। कहाणी जातरा मांय आज रै दिन कैयां सरैला कै कहाणीकार
बगत परवाण कहाणी नै उण रै नुंवै रूप मांय ढाळ नीं सक्यो। इण बात माथै किणी नैं कोई
संका नीं हुवैला कै कहाणी जातरा मांय सुदामा जी री आं कहाणियां री महताऊ ठौड़ है।
- नीरज दइया
राजस्थानी साहित्य में आलोचना का जिम्मा रचनाकार लें
बीकानेर। ‘राजस्थानी साहित्य में हर विधा पर बहुत
सृजन हो रहा है पर उसकी तटस्थ और सही आलोचना नहीं हो रही। आलोचना के इस महत्त्वपूर्ण कार्य को अब रचनाकार को ही करना होगा। आलोचना के अभाव में सृजन
का सही मूल्यांकन ही नहीं हो पा रहा है’। यह कहना है राजस्थानी कवि आलोचक और
नाटककार डॉ. अर्जुन देव चारण का। साहित्य अकादमी, दिल्ली और मुक्ति संस्थान की ओर से होटल
राजमल में आयोजित ‘आधुनिक राजस्थानी कहानी’ विषय परिसंवाद में
उन्होंने यह विचार व्यक्त किए। इस परिसंवाद में राजस्थानी
के 20 कहानीकारों के अलावा युवा महिला रचनाकारों के सृजन पर चर्चा हुई।
उद्घाटन करते हुए
कथाकार भंवरलाल भ्रमर ने कहा कि स्वानुभूतियों का संवेदनात्मक सृजन ही कहानी है। राजस्थानी कहानी के गंभीर
मूल्यांकन की अब भी जरूरत है। साहित्य अकादमी के
प्रशासनिक अधिकारी शांतनु गंगोपाध्याय ने स्वागत भाषण दिया। संयोजकीय वक्तव्य राजेन्द्र जोशी ने दिया। आभार रंगकर्मी सुरेश हिन्दुस्तानी ने जताया।
पहला सत्र
इस सत्र में डॉ.
नीरज दइया ने मीठेश निर्मोही, भंवरलाल भ्रमर, अरविंद आसिया, डॉ. मदनगोपाल
लड्ढ़ा कहानियों की समीक्षा की। डॉ. चेतन स्वामी ने रामस्वरूप कसान, रामेश्वर गोदारा, सत्यनारायण सोनी और डॉ. भरत ओळा के कथा संसार की पड़ताल की। अध्यक्षीय उद्बोधन
में कवि मोहन आलोक ने कहा कि कथाकारों को स्वयं अपना विश्लेषण करते रहना चाहिए, सृजन में इससे सुधार आएगा।
दूसरा सत्र
इस सत्र में
कवि-कथाकार मीठेश निर्मोही ने मालचंद तिवाड़ी, मदन सैनी, मनोहरसिंह राठौड़
और माधव नागदा की कहानियों पर समीक्षा पत्र पढ़ा। कथाकार बुलाकी शर्मा ने नन्द भारद्वाज, मधु आचार्य ‘आशावादी’, डॉ. चेतन स्वामी
और रामपालसिंह के कथा साहित्य की समीक्षा
की। अध्यक्षीय संबोधन में रामस्वरूप किसान ने कहा हर रचनाकार को स्वयं के विचारक आलोचक को सचेत रहते हुए कहानी लिखनी चाहिए।
तीसरा सत्र
परिसंवाद के इस
अंतिम सत्र में मालचंद तिवाड़ी ने बुलाकी शर्मा, सीपी देवल, श्याम जांगीड़
प्रमोद कुमार शर्मा के कथा साहित्य की समीक्षा की। राजेन्द्र जोशी ने राजस्थानी के युवा महिला कहानी लेखन पर पत्र पढ़ा।
अध्यक्षीय उद्बोधन में मधु आचार्य ने कहा कि कहानी
पहले लेखक अपने मन में लिखता है और उसके बाद कागज पर उतारता है।
होटल राजविलास में
आयोजित परिसंवाद कार्यक्रम ‘अैनाण’ में बोलते साहित्य अकादमी में राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल के संयोजक डॉ.
अर्जुनदेव चारण।
ये रचनाकार रहे
साक्षी
नवनीत पांडे, सुमन बिस्सा, आनंद कौर व्यास, मोनिका गौड़, शंकरसिंह राजपुरोहित, रचना शेखावत, पीआर लील, ओपी शर्मा, मोहियुदीन माहिर, कमल रंगा, आनंद वि आचार्य, नमामी शंकर, शमीम बीकानेरी, डॉ. मेघना शर्मा, सत्यनारायण, रवि पुरोहित, जयकिशन केशवानी, रमेश भोजक समीर, सुनील गज्जानी, हीरालाल हर्ष, हजारी देवड़ा आदि परिसंवाद के साक्षी रहे।
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