राजस्थानी
कहाणी री जड़ां मांय कठैई लोककथा परंपरा है का कोनी, इण सवाल सूं जुदा सवाल ओ है कै
कांई राजस्थानी कहाणी खातर ‘‘राजस्थानी-कथा‘‘ पद काम में लियौ जाय सकै है या कोनी
? आधुनिक कहाणी रूप मांय कांई औ वाजिब होवैला कै ’’कथा’’ पद मांय जिकौ जूनौ अरथ बरत-कथावां
री ढाळ माथै लियौ जावै वौ अंगेजां। कहाणी अर उपन्यास दोनूं विधावां री जे बात करां
तौ ‘‘कथा-साहित्य’’ पद रौ प्रयोग राजस्थानी-हिंदी दोनूं भासावां मांय देखण नै मिलै।
किणी रचनाकार रै नांव आगै कथाकार लिखण रौ अरथ औ पण होया करै कै रचनाकार कहाणी अर उपन्यास
दोनूं विधावां मांय लेखन करै। चावा-ठावा कथाकार मालचंद तिवाड़ी अर भरत ओळा दोनूं ई साहित्य
अकादेमी सूं पुरस्क्रत रचनाकार है। मालचंद तिवाड़ी नै कविता खातर अर भरत ओळा नै कहाणी
खातर साहित्य अकादेमी इनाम मिल्यौ। घणै हरख री बात कै साहित्य अकादेमी, नवी दिल्ली
आं रचनाकारां नै कहाणी-संकलन रै संपादन री जिम्मेदारी सूंपी।
लगै-टगै
तीन सौ पानां रै कहाणी-संकलन “साखीणी कथावां“ नै देख‘र हरख हुवै, पण साथै सवाल उपजै
कै इण संकलन रौ नांव “साखीणी कहाणियां“ क्यूं नीं राखीज्यौ ? जद कै इण संग्रै मांय
घणखरी तौ आधुनिक कहाणियां ई संकलित करीजी है ? पोथी रौ नांव राखण रौ काम संपादकां रै
जिम्मै होवै, वै जिकौ राख दियौ वौ ठीक। अठै सबद-प्रयोग “कथावां“, संपादकां री मनसा
नै दरसावै कै वै स्यात कहाणी नै “लोककथावां“ सूं जोड़ण रा जतन करता दीसै। कहाणी अर लोककथा
रै रिस्तै बाबत इण संग्रै री भूमिका मांय कठैई खुलासौ कोनी मिलै। ओ जरूर है कै संपादक
रचना री दीठ सूं लोककथा अर कहाणी नै जुदा-जुदा मानै। इण संग्रै रा संपादकां साखीणी
कथावां रै मिस राजस्थानी री प्रतिनिधि कहाणियां नै संकलित करण रौ जसजोग काम करîौ है।
“साखीणी
कथावां” रा संपादक मालचंद तिवाड़ी अर भरत ओळा रौ मानणौ है- “कुल मिलायनै राजस्थांनी
कथा री जातरा अेक ठावकै मुकाम माथै पूगी थकी धकली मजलां री सोय में है। लारलै दोय-तीन
दसकां री इण उल्लेख जोग सिरजणा नैं अंवेरता थकां अेक प्रतिनिधि कथा-संग्रै री जरूरत
मजसूस करी जाय रैयी है। पाठकां री जरूरत रै अलावा राजस्थांन रा जिका विश्वविद्यालय
में स्नातक अर स्नातकोत्तर स्तरां माथै राजस्थांनी साहित्य पढाईजै, वांरा पढेसरîां
सारू ई अेड़ै संग्रै री मांग बगत-बगत पर करीजती रैयी है।” (पेज-13)
भूमिका
रूप संपादकां री लिखी आं तीन ओळ्यां बाबत चरचा करां-
1. जद संपादकां रौ मानणौ है कै कथा री जातरा
अेक ठावकै मुकाम माथै पूगी थकी धकली मजलां री सोय में है तद इण संग्रै री भूमिका मांय
संपादकां रौ घणौ हेत फगत अर फगत विजयदान देथा अर सांवर दइया बाबत ई क्यूं दीसै ?
2. औ संग्रै बरस 2011 मांय प्रकाशित हुयौ है,
अर इण दीठ सूं लारलै दोय-तीन दसकां रौ अरथाव- इण संचै मांय बरस 1981-1990,
1991-2000 अर 2001-2010 री सिरजणा री अंवेर संपादकां करी हुवैला, तद केई कहाणियां बरस
1981 सूं घणी पैली री संग्रै मांय क्यूं सामिल करीजी है ?
3. विश्वविद्यालय में स्नातक अर स्नातकोत्तर
स्तरां माथै राजस्थांनी साहित्य पेटै आगूंच जिका संग्रै पाठ्यक्रम मांय है, वां नै
हटा परा इण पोथी नै सामिल करण खातर संपादकां री आ अणचाइजती मांग कांई अरथ मांय ली जावणी
चाइजै।
अबै
विगतवार बात करां, संपादकां रौ औ मानणौ है- “जिण वेळा विजयदांन देथा आपरी ‘बातां री
फुलवाड़ी’ रै सिरजण में लाग्योड़ा हा, उणी वेळा राजस्थांनी रा कीं लेखक कथा री हटौटी
वस में करण में खपै हा। अठै आप परंपरा रै मनोवैग्यानिक दबाव री सोय विजयदान देथा कांनी
सूं आपरी ‘फुलवाड़ी’ नैं दिरीज्यै थकै सिरैनांवै में देखौ- बातां री फुलवाड़ी। बिज्जी
इणनैं कथावां री फुलवाड़ी नीं कैयौ है, पण इणीं दिनां नृसिंह राजपुरोहित, अन्नाराम सुदामा,
मूलचंद ‘प्राणेस’, करणीदांन बारहठ, बैजनाथ पंवार, यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’, श्रीलाल
नथमल जोशी आद बाकायदा कथावां लिखै हा।” (पेज-9)
कांई
कारण रैया होवैला कै संपादकां रै मुजब बाकायदा कथावां लिखण वाळा लेखकां मांय मूलचंद
‘प्राणेस’ अर श्रीलाल नथमल जोशी री कहाणियां संकलित कोनी करीज सकी ? संपादकां आप री
सफाई मांय लिख्यौ है- ‘‘साखीणी कथावां’ में संकलित कथावां रौ क्रम कथाकारां री वरिष्ठता
रै आधार माथै नीं राखनै उणां रै नामानुक्रम (एल्फाबेट) मुजब राखीज्यौ है।” (पेज-13)
पण उल्लेखजोग है कै संचै मांय संकलित कथावां रौ क्रम नीं, कथाकारां रौ क्रम वर्णानुक्रम
सूं राख्यौ है। स्यात संपादकां री इण ओळी रौ औ मायनौ ई होवैला। सवाल ओ है कै कांई राजस्थानी
रा आं दोय कथाकारां मांय औ हौसलौ कोनी हौ कै वै राजस्थानी रै कथाकारां रौ क्रम, आपरी
दीठ सूं वरिष्ठता रै आधार माथै राख सकता ! वरिष्ठता रै आधार माथै जे राखता तौ श्रीलाल
नथमल जोशी अर मूलचंद ‘प्राणेस’ आद नै लारै राखता का आगै। अठै लिखण री जरूरत है कै कथा
साहित्य मांय उपन्यास विधा रौ श्रीगणेश “आभै पटकी” सूं श्रीलाल नथमल जोशी करîौ अर कहाणी
विधा री पोथी “मेंहदी, कनीर अर गुलाब” माथै सूर्यमल्ल मीसण पुरस्कार ई आपनै मिल्यौ।
संपादकां री इण भूमिका मांय इनाम अर इनामां री विगत री भरमार देखी जाय सकै। किणी रचनाकारा
री परख फगत इण दीठ सूं कोनी हो सकै। सवाल अठै ओ पण है कै कांई संपादकां रै मुजब परंपरा
रै मनोवैग्यानिक दबाव मांय बिज्जी बातां सबद बरत’र कोई गळती करी ? कांई संपादकां मुजब
बातां री फुलवाड़ी मांय कथावां रौ सिरजण बिज्जी करयौ है का लोककथावां रौ संकलन करयौ
है ?
संपादकां
री पैली अर छेहली पसंद बिज्जी है। छौ होवै, अठै संपादकां री पसंद-नापसंद माथै सवाल
कोनी। सवाल ओ है कै आखै देस मांय जाणीजता मानीता कथाकार यादवेंद्र शर्मा बाबत संपादकां
रौ ओ सोच विचारणजोग लखावै- “यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’ हिंदी में ई राजस्थांन सूं उभरिया
थका अेक चावा-ठावा कथाकार गिणीजता अर वांरौ घणौ कांम ई हिंदी में साम्हीं आयौ। अेक
तरै सूं आपां कैय सकां के आंरा प्रतिमान हिंदी रा रैया अर राजस्थांनी में वै आपरी मदरी
जबान रै रिण सूं उऋण होवणै रै भाव सूं ई लिख्यौ। आ गौर करण री बात है कै चंद्रजी नैं
राजस्थांनी कथा-संग्रै ‘जमारो’ माथै साहित्य अकादेमी रौ इनांम मिळयौ जियां के हिंदी
रा लेखक मणि मधुकर नैं आपरै अेक मात्र राजस्थांनी कविता-संग्रै ‘पगफेरौ’ माथै साहित्य
अकादेमी इनांम हासिल होयौ।”(पेज-10)
कांई
संपादकां रै मन रौ काळौ अठै उजागर कोनी हुवै ? यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’ हिंदी में ई
राजस्थांन सूं उभरिया राजस्थानी कथाकार मानीजै जिका हिंदी जगत मांय राजस्थान रै रूप
री ओळखाण कराई। ठाह नी संपादकां क्यूं यादवेंद्र शर्मा चंद्र अर मणि मघुकर री अकारथ
तुलना अठै पोळावै। किणी नै किणी सूं सवायौ साबित करण खातर दोय तरीका होया करै, अर आं
दोनूं तरीका रौ प्रयोग बतौर संपादक मालचंद तिवाड़ी अर भरत ओळा करîौ ई’ज है पण तीजौ तरीकौ
ई अठै ईजाद करीज्यौ है।
विजयदान
देथा रै काम मांय ‘‘कथावां री फुलवाड़ी’’ सामिल कोनी, वां री फुलवाड़ी रौ नांव ‘‘बातां
री फुलवाड़ी’’ हैै। संपादकां तौ ई वां रौ जस गावण मांय आपरौ गळौ बैठा लियौ, अर इण सूं
ई वां नै संतोस कोनी हुयौ तौ बिज्जी रै चोळै रै गूंजै नै खासौ बड़ौ कर’र उण मांय सूं
निकळणौ कबूल कर लियौ। अठै आं संपादकां आप-आपरी मा, भासा का भौम बाबत दर ई सोच्यौ कोनी।
संपादकां री अै ओळîां किणी नै सवायौ साबित करणौ रौ तीजौ तरीकौ कैयौ जाय सकै-‘‘लारलै
दिनां जोधपुर में किणी कथा-पोथी रै लोकार्पण रै टांणै अेक नांमी राजस्थांनी कथाकार
साच ई कैयौ के जिण तरै दोस्तोयव्स्की आ कबूल करी के म्हारै समेत म्हारी पीढी रा सगळा
लेखक गोगोल रै ‘ओवर कोट’ रै गूंजै मांय सूं निकळîोड़ा हां, बियां ई म्हे आ कबूल करणी
चावां के कम सूं कम म्हे तो विजयदांन देथा उर्फ बिज्जी रै चोळै रै गूंजै मांय सूं निकळयोड़ा
हां।‘‘(पेज-6) संपादक जोधपुर मांय होयै लोकार्पण रै टांणै उण नांमी राजस्थांनी लेखक
रै साच बाबत तौ बतावै पण उण नांमी राजस्थानी लेखक रौ नांव लुको’र राखणौ चावै। कांई
वौ नांमी लेखक कहाणियां कोनी लिखै ? वौ महान लेखक फेर कदैई किणी टांणै कोई दूजी बात
कैवैला अर आपां रा संपादक फेर कोई साच कबूल करैला। आ तौ चोखी बात होई कै मालचंद तिवाड़ी
अर भरत ओळा फगत खुदो खुद नै ई गूंजै सूं जलमिया बताया नींतर दोस्तोयव्स्की री होड़ा-होड़
वै आपरै समेत पूरी पीढी बाबत ई आ बात कैय सकता हा।
नामी कथाकार मालचंद तिवाड़ी अर भरत ओळा रा साहित्य
मांय पग हाल इत्ता काचा है कै वै आपरी पसंद रा लेखकां रा परचम हेठा राखै ई कोनी। आं
री पसंद रा लेखकां बाबत भूमिका मांय मंगळ-आरत्यां रा बेजोड़ तीन दाखला देखण जोग है-
“ओ वो दौर है जिणमें मुरलीधर व्यास ‘राजस्थांनी’ ‘बरसगांठ’ अर नानूराम संस्कर्ता ‘ग्योही’
री कथावां लिख रैया हा। म्हारी दीठ में अै दोनूं राजस्थांनी कथा रा वै कारीगर है जिकां
री लगायोड़ी नींव माथै आज विजयदान देथा आपरौ बेजोड़ भारतीय कथाकार रौ वाजिंदौ जस लियां
ऊभा है।”(पेज-6) “चंद्रप्रकास देवल राजस्थांनी रा सिरैनांव कवि है, पण बिचाळै-बिचाळै
कीं कथावां ई मांडता रैया है। वांरी ‘बस में रोझ’ कथा नै ‘कथा’ संस्था रौ इनांम मिळîौ
अर वा राजस्थांनी री घणी सराईजी थकी कथावां में सामिल है।”(पेज-11) “ओ संजोग मात्र
नीं है के डिंगळ रै छंद-रूप नैं बरतनै आजादी रै परभातै जन-क्रांति रौ गीत रचण वाळा
रेंवतदांन चारण रा जाया-जलम्या अर्जुनदेव चारण आधुनिक राजस्थांनी रंगमंच रै पर्याय-रूप
देस-भर में ओळखीजै अर वां रा नाटकां रौ मुख्य स्वर है लुगाई रै अस्तित्वगत सवालां सूं
उपज्योड़ी पीड़।”(पेज-9)
मुरलीधर व्यास ‘राजस्थांनी’ अर नानूराम
संस्कर्ता नै राजस्थांनी कथा री नींव रा कारीगर तौ संपादक स्वीकारै, पण बात फगत कंगूरा
री करै अर वां री ‘‘बातां‘‘ नै कथा मानै ! राजस्थांनी रा सिरैनांव कवि चंद्रप्रकास
देवल ‘कथा’ संस्था सूं पुरस्क्रत आद री विगत पोथी रै छेकड़ला पानां कहाणीकारां रा परिचै
खातर अंवेर राखणा हा, पण पोथी मांय संकलित कहाणीकारां बाबत परिचौ, पोथ्यां, पुरस्कारां
अर संपर्क बाबत जाणकारी छेकड़ रा पानां माथै कोनी। साहित्य अकादेमी नै चाइजतौ कै आपरै
पैलड़ै राजस्थानी रै संपादित कहाणी संग्रै दांई इण संचै मांय कहाणीकारां रा परिचै आद
दिया जावणा री आगूंच भोळावण संपादन सूं पैली संपादकां नै पूगती होवती। पोथी ‘‘साखीणी
कथावां’ अन्नाराम सुदामा री कहाणी ‘‘बेटी रौ बाप’’ सूं चालू होवै अर हरमन चौहान री
कहाणी ’’लांबा फाबा वाळौ आदमी’’ माथै पूरी होवै। तीजै दाखलै पेटै कैवणौ है कै कहाणी
ना तौ रेंवतदांन चारण लिखी ना वां रा जाया-जलम्या अर्जुनदेव चारण। हां, अर्जुन री कहाणी
आलोचना पोथी जरूरी छप्योड़ी है, अर उण मांय सूं कीं दाखला संपदकां नै इण पोथी मांय लेवणा
हा जिका वां लिया कोनी।
पूरी
भूमिका मांय फगत अर फगत सांवर दइया बाबत ई संपादकां रौ आकलन कै वांरी पसम मगसी पड़ती
गई सामीं आवै, बाकी रचनाकारां री परख खातर संपादकां चसमौ क्यूं उतार दियौ ? “साखीणी
कथावां” रा संपादक मालचंद तिवाड़ी अर भरत ओळा रौ मानणौ है- “सांवर दइया री कथा ‘गळी
जिसी गळी’ छपतां ई राजस्थांनी कथा रै आभै में अेक नुंवौ इजाफौ होंवतौ लखावै। सांवरजी
रै ‘अेक दुनिया म्हारी’ कथा-संग्रै माथै साहित्य अकादेमी इनांम घोसित होयौ। निस्चौ
ई राजस्थांनी कथा रौ ओ अेक अपूर्व अर निरवाळौ दीठाव हौ। आ और बात है के सांवरजी आपरी
केई कथा-रूढियां रा सिकार होंवता गया अर बेहिसाब दुसराव रै कारण वांरी पसम मगसी पड़ती
गई। सांवरजी रौ असमय काल-कवलित होवणौ राजस्थांनी कथा रै सीगै अेक लूंठौ नुकसांण हो।
वै अेक ऊरमावांन लेखक हा अर जीवता रैवता रो अवस आपरी रूढ परिपाटी नै तोड़नै कीं नुंवौ
रचण में खपता।” (पेज-10) अर इण पछै संपादकां री आ ओळी- “सांवर दइया रै सागै अेक पूरी
ऊरमावांन कथा-पीढी लिखणौ सरू कर चुकी ही।” (पेज-10) अर इण ओळी री साख मांय पंद्रा कथाकारां
रा नांव देख’र लखावै कै संपादकां नै कोई टीखळ सूझी है। सांवर दइया रै साथै लिखण वाळा
रा नांवां मांय साव नुंवा कथाकारां रा नांव है। जद सांवर दइया अेक कथाकार रूप चावौ-ठावौ
मुकाम हासल कर चुक्या हा, उण बगत तांई आं मांय सूं केई कथाकार जियां कै माधव नागदा,
मदन सैनी, बुलाकी शर्मा, ओमप्रकाश भाटिया, दिनेश पांचल, माधोसिंह इंदा, रामेश्वर गोदारा,
सत्यनारायण सोनी, रामसरूप किसान आद कथा-दीठाव में कठैई कोनी हा। अठै तांई कै इण संचै
रा संपादकां मालचंद तिवाड़ी अर भरत ओळा री कथा-जातरा सांवर दइया सूं खासी पछै चालू होवै।
भूमिका
मांय संपादकां रौ घणौ हेत फगत अर फगत विजयदान देथा अर सांवर दइया बाबत ई दीसै, अेक
री वै अणथाग जयजयकार करै अर दूजै री भरी-पूरी कथा-जातरा नै नकरण री कोसिस। संपादकां
नै सूचना देवणौ धरम है कै संचै मांय सामिल ‘गळी जिसी गळी’ (सांवर दइया) कहाणी ‘‘धरती
कद तांईं घूमैली‘‘ बरस 1980 सूं संकलित करी है, बा जागती जोत मांय डॉ. तेजसिंह जोधा
रै संपादन मांय बरस 1974 में छपी अर ‘अलेखूं हिटलर’ बातां रौ गुटकौ बरस 1984 मांय।
संपादक आपरी भूमिका मांय इण ‘बात’ रौ खुलासौ कोनी करîौ कै जिण नै बिज्जी कथावां री
फुलवाड़ी नीं कैयौ अर ‘‘अलेखूं हिटलर‘‘ नै ई बिज्जी बातां रौ गुटकौ कैयौ, तौ कांई बातां
ई कथावां है ? लोककथा अर कथा बिचाळै कीं ग्यान देवण री दरकार हुवतां संपादकां मून राख्यौ।
संपादकां री ठौड़ अठै संपादक सबद बरतां तौ ठीक रैवैला, क्यूं कै अेक संपादक ई भूमिका
लिखी है अर दूजै संपादक तौ मून रैय घांटकी हिलाई होवैला।
लारलै
दोय-तीन दसकां रै सिरजण री अंवेर करण री बात तौ संपादक करै पण बरस 1981 सूं पैली री
केई कहाणियां संग्रै मांय सामिल करीजी है। तगादौ (1972) भंवरलाल ‘भ्रमर’, बुद्धिजीवी
(1974) मोहन आलोक अर ‘गळी जिसी गळी’ (1974) सांवर दइया आद कहाणियां री ठौड़ आं रचनाकारां
री इण पछै री साखीणी कहाणियां संकलन मांय ली जाय सकै ही।
जे
संपादक खुद री कथावां लेवण रौ मोह त्याग’र आं कहाणीकारां मांय सूं कथावां रौ चयन करता
तौ साखीणी बात होवती- मुरलीधर व्यास ‘राजस्थांनी’, नानूराम संस्कर्ता, लक्ष्मीकुमारी,
मूलचंद प्राणेश, श्रीलाल नथमल जोशी, जनकराज पारीक, मेहरचंद धामू, विनोद सोमानी ‘हंस’,
हनुमान दीक्षित, राम कुमार ओझा, कृष्ण कुमार कौशिक, निशांत, आनंदकौर व्यास, मनोज कुमार
स्वामी, कन्हैयालाल भाटी, रतन जांगिड़, मदन गोपाल लढ़ा, दुलाराम सारण, श्याम जांगिड़ आद।
संचै
मांय कथाकारां री पूरी कथा-पीढियां री अंवेर नीं करीज सकी है। पूरी कथा जातरा री चरचा
री ठौड़ बीजी-बीजी गंगरथ भूमिका मांय बेसी मिलै। अेक ठौड़ तौ संपादक बिसादै दांई आपरी
कहाणी ‘‘सुपनौ’’ री गंगरथ गावण ढूकै तौ थमै ई कोनी ! फेर समझवान संपादक इण री चरचा
मांय लिखै-’’आज देस में अनिवार्य पढाई अर उणरै मातृभासा में होवण रौ कानूंन री चरचा
है। राजस्थांन सरकार साम्हीं ओ सवाल है कै वै राजस्थांन रै लोगां री मातृभासा किणनै
मानै ? राजस्थांन रा पढाई-लिखाई मंत्री मातृभासा बाबत आपरै अेक निहायत ना-समझ बयान
रै कारण मीडिया रै मारफत पूरै राजस्थांन रै लोगां री भूंड झेल रैया है।‘‘ (पेज-8) कांई
इण संकलन री इण ढाळै री ओळîां थकां संपादकां री चावना मुजब राजस्थान सरकार आपरी कॉलेजां
रै राजस्थानी पाठ्यक्रम मांय आ पोथी राखैला ? राजस्थानी री पूरी-पूरी हिमायत करतां
थकां अठै पूरजोर सबदां मांय लिखणौ पड़ैला कै संपादकां री आ निहायत ना-समझी है कै इण
ढाळै री चरचा कथा-पोथी री भूमिका मांय करै। संपादक री ओळ्यां मामूली बदलाव साथै लिखणी
चावूं- मालचंद तिवाड़ी हिंदी में राजस्थांन सूं उभरिया थका अेक चावा-ठावा कथाकार गिणीजै
अर वांरौ घणौ कांम हिंदी में साम्हीं आयौ। अेक तरै सूं आपां कैय सकां के आंरा प्रतिमान
हिंदी रा रैया अर राजस्थांनी में वै आपरी मदरी जबान रै रिण सूं उऋण होवणै रै भाव सूं
ई लिख्यौ।
छेकड़
मांय अेक गैर वाजिब सवाल पाठकां रै हित मांय साहित्य अकादेमी सूं करणै चावूंला- जे
पोथी मांय फोंट टाइप छोटौ कर कीं पानां कम कर दिया जावता तौ स्यात कीमत ई दो सौ पचास
रिपिया कम हो सकती ही। इण संचौ मांय 38 कहाणियां है अर बोधि प्रकाशन सू छपी राजस्थानी
री आधुनिक 35 कहाणियां री कीमत फगत पचास रिपिया है। कांई पोथी मांय पानां बेसी होयां
संपादकां नै साहित्य अकादेमी सूं मानदेय बेसी मिल्या करै है का बिक्री बेसी होया करै
?
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