चावा-ठावा लेखक-कवि डॉ. मंगत बादल री रचनावां म्हैं बरसां
सूं बांचतो रैयो हूं। आपरी ओळखाण राजस्थानी, हिंदी अर पंजाबी रै सांवठै रचनाकार
रूप मानीजै-जाणीजै। तीन भासावां में बरोबर लिखणो अर उल्थै रो कारज करण साथै
महाविद्यालय रा विद्यार्थियां री भणाई-लिखाई पेटै ई कारज करणो सोखो काम कोनी। आप
महाकाव्य, खंडकाव्य अर छंदबद्ध-छंदमुगत कवितावां भेळै टाबरा खातर ई मोकळो सिरजण
करियो। गद्य विधावां री बात करां तो कहाणी, व्यंग्य अर निबंध आपरी रुचती विधावां
है। आपरी केई पोथ्यां साम्हीं आई पण आपनै घणो मान-सम्मान काव्य विधा पेटै मिल्यो।
‘मीरां’ प्रबंध काव्य नैं बरस 2010 रो साहित्य अकादेमी नई दिल्ली रो मुख्य पुरस्कार अर ‘दसमेस’ महाकाव्य
नैं 2006 रो
राजस्थानी भाषा साहित्य अेवं संस्कृति अकादमी बीकानेर रो सूर्यमल्ल मीसण शिखर
पुरस्कार इण ओळी री साख भरै। राजस्थानी ई नीं हरेक भासा री अबखाई है कै बा किणी
रचनाकार नैं सींव मांय बांध’र देखै-परखै। डॉ. बादल नैं लूठा कवि मानण वाळा नैं बां
रै गद्यकार रूप नैं ई देखणो-परखणो चाइजै। राजस्थानी मांय आपरो कहाणी संग्रै ‘कितरो
पाणी’ (2010), व्यंग्य
संग्रै ‘भेड़ अर ऊन रो गणित’ (2010), ‘जूण विरतांत’ (‘लीलटांस’ अंक- नवंबर 2018 - अप्रैल 2019 में प्रकाशित) अर तीन निबंध संग्रै ‘सावण सुरंगो ओसर्यो’ (2010) ‘बात री
बात’ (2012) अर ‘तारां
छाई रात’ (2015) साम्हीं
आयोड़ा अर चौथो निबंध संग्रै ‘सबदां रो सफर’ (2020) आपरै हेताळु हाथां मांय पूग रैयो है। गद्य
विधावां मांय राजस्थानी ई नीं केई पोथ्यां हिंदी-पंजाबी मांय ई छप्योड़ी है।
आधुनिक
राजस्थानी साहित्य री बात करां तो इक्कीसवीं सदी मांय कहाणी-कविता अर उपन्यास
विधावां मांय खासा पोथ्यां साम्हीं आई, खासो काम हुयो पण निबंध विधा बरसां लूखी
रैयी अर अजेस ई इण विधा पेटै काम करण री दरकार समझी जावै। निबंध रा केई-केई भेद-उपभेद
जाणीजै अर उण मांय कैयो जावै कै साहित्य रै लूखैपणै नै ललित निबंध दूर करै। धी
दांई गळागळ भासा अर दाखलां सूं आपां घणो कीं सीख सकां। मिनखपणै नैं नवी दीठ देवै
ललित निबंध। पण आपणै अठै तो निबंधकार ई गिणती रा अर ललित निबंधकार तो साव कमती,
पांच आंगणियां माथै गिणावां जित्ता ई कोनी। इण मनगत नैं ओळख-समझ’र डॉ. मंगत बादल
लगोलग ललित निबंध विधा मांय पोथ्यां लिख रैया है। अबार तांई छपी तीनूं पोथ्यां रै
निबंधां रो जोड़ करां तो इक्यावन बैठै। ललित निबंध लिखणो खुद अबखो काम मानीजै अर
राजस्थानी कानी देखां तो पत्र-पत्रिकावां कोनी अर निबंध छापणिया संपादक ई कोनी। प्रकाशकां
रो काळ तो सदा सूं रैयो ई है। लेखकां री आ आपरी भासा अर साहित्य पेटै लूंठी लगन अर
धुन है। लेखक बादल जी नैं घणा घणा रंग कै वै आ झाटी झाल’र इण विधा नैं थापित करण
रो अंजस जोग काम सांभ राख्यो है।
आगै कीं
बात करू उण सूं पैली कीं घरू सवाल ई जरूरी लखावै- ‘सावण सुरंगो ओसर्यो’ लिख्यो अर
लेखक नैं कांई मिल्यो? ‘बात री बात’ पोथी आई अर लेखकां-पाठकां री प्रतिक्रियावां
कांई आई? ‘तारां छाई रात’ कुण-कुण बांची अर कठै-कठै इण री समीक्षावां छपी? बियां आ
सूगला सवालां नैं जे आपां अठै छोड़ देवा तो भलै मांय रैसां। कांई सार है आं बातां
मांय? ठावो पडूत्तर फगत ओ हुवैला कै आ लेखक री जिद है कै जी म्हारी भासा मांय ललित
निबंध कोनी आ बात कोई मैणै रूप ना कैवै। दस-बारै बरसां सूं डॉ. मंगत बादल इणी मैणै
नै दूर करण मांय लाग्योड़ा है। मानीता निबंधकार डॉ. किरण नाहटा आधुनिक राजस्थानी
साहित्य री न्यारी न्यारी विधावां रै विगसाव पेटै हियै मांय पीड़ राखता हा।
‘राजस्थानी साहित्य अेवं संस्कृति जनहित प्रन्यास, बीकानेर’ री थरपणा इणी मिसन सूं
हुई कै साहित्य मांय छूटती विधावां नैं जन जन तांई पूगावण रो काम हुवै। ओ संजोग
कैयो जावलै कै डॉ. मंगत बादल रा तीनूं निबंध संग्रै सूं इणी जनहित प्रन्यास सूं
प्रकाशित हुया। आपणी बीकानेर अकादमी रै नांव मांय तीन सीगा भेळा भाळ सकां। भासा अर
साहित्य पेटै तो कीं काम हुयो पण संस्कृति पेटै काम कमती हुयो। निबंध अर ललित निबंध
मांय भासा, साहित्य अर संस्कृति रा लूंठा रंगां नैं देख-समझ सकां। डॉ. मंगत बादल
रै ललित निबंधां मांय राजस्थानी रो सांस्कृतिक वैभव उजागर हुयो है।
ललित
निबंध विधा मांय लेखक जद पैली ओळी मांडै तद आ तय कोनी हुवै कै आगै कांई कियां
लिखणो है। हां आ जरूर हुवै कै लगैटगै तीन-च्यार कै पांच पानां मांय आवै जित्ती
ओळ्यां तो लिखणी ई है तद ई कोटो पूरो हुवैला। पानां री आ सींव ई कोई पक्को असूल
कोनी पण अमूमन इण विधा मांय इण ढाळै रो नेम देखीजै। डॉ. मंगत बादल राजस्थानी,
हिंदी अर पंजाबी री मोकळी पोथ्यां बरसां बांची-लिखी अर बरसां तांई कोलेज रै टाबरां
नैं भणावता है। आप न्यारै न्यारै विसयां माथै केई शोध आलेख अर आलोचनावां-समीक्षावां
ई लिखी तो अनेक पोथ्यां री परख ई मांडी। अठै आ सगळी विगत गावण रो अरथाव ओ है कै आं
ललित निबंधां मांय लेखक रो अध्ययन, मनन अर चिंतन मूड़ै बोलै। अबार तांई साम्हीं आया
अर आं निबंधां नैं बांच्यां ठाह लागै कै लेखक खन्नै साहित्य री लूंठी हेमाणी है।
बै आपरै निबंधां में लोक साहित्य, सबदां रै जलम अर न्यारी-न्यारी कैवतां-ओखाणा टाळ
साहित्यिक रचनावां अर रचनाकारां रो बगतसर सटीक दाखलो आं निबंधां मांय राखै। ग्यान
हुवणो अेक बात है पण उण ग्यान रो मोकैसर उपजणो अर बरतणो दूजी बात है, तो अठै
मोकैसर केई-केई इसी बातां आपां नैं बांचण नै मिलै कै मूंड़ै आंगळी दबावां कै हरेक
निबंध मांय इत्ती ठावी टाळवीं बातां अर विगत लेखक नैं कियां चेतै आवै।
आ कोई
ऊपर-छापर बात कोनी, दाखलै रूप बात करां तो आपरै अेक ललित निवंध रो सिरैनांव फगत अेक
‘ट’ (संग्रै ‘तारां छाई रात’ में) है। अब आप विचार करो कै कोई लेखक अेक वरण ‘ट’
माथै कांई कांई मांड सकै। पण जद ओ निवंध निजरां मांय सूं निकाळोला तद आपनै लखावैला
कै म्हारी बातां कूड़ी कोनी। बात सूं बात परोटो लेखक अेक निरवाळै गद्य री सिरजणा
करै जठै गद्य भेळै कविता चालै। गद्य रो काव्यात्मक हुवणो ललित निवंध री खासियत
मनीजै। इणी ढाळै इण संग्रै रो पैलो निबंध ‘नाम’ बांचां तो ठाह लगै कै नाम सिरैनाम
सूं लेखक कित्तो कांई जाणै अर अपानै जाणी-पिछाणी अर अणजाणी बातां विगत रूप बांचता
घणो रस आवै। ललित निवंध सरस हुवै तद बांचणिया कोड करै अर कोडाया-कोडाया बांचता
जावै। निवंधां री पठनीयता रो गुण तद ई आवै जद गुणी लेखक चतराई सूं अेक सलीकै साथै
बात मांय सूं बात निकाळ’र आ सावचेती राखै कै किसी बात कद और कियां पाठक नैं पुरसणी
है। सेक्सपीयर कैयो कै नाम में कांई राख्यो है पण मंगत जी रो निवंध बांच’र लखावै
कै नाम री घणी महिमा हुवै। इण निवंध सूं ओ दाखलो बांचो- “स्री
राम जद पाणी माथै पाथर तिरता देख्या तो बां नै बड़ो अचरज हुयो। बां थोड़ी दूर जायनै अेक
पाथर उठाय’र होळै सी’क पाणी माथै धरियो तो बो डूबग्यो। हनुमानजी दूर खड़िया ओ तमासो
देखै हा। कनै जाय’र बोल्या, “प्रभु! आ तो आप रै नाम री महिमा है जिकै सूं पाथर
पाणी माअथै तिरै। आप जिकै नै हाथ सूं छोड़ दियो बो तो डूबैलो ई।”
फगत ओ
नीं इसा दसूं-बीसूं दाखला पोथी मांय मिलै जिका आपां नै उण विसय रै अंतस मांय लेय
जावै अर आपां सबदां अर कथावां रै रस मांय जाणै डूबतां-तिरतां जावै। जरूरी कोनी कै
डॉ. मंगत बादल कोई नांव कै सिरनांव सूं निबंध रचै, बां इण पोथी मांय अेक निवंध रो
सिरैनांव ई राख्यो है- ‘बिना सिरैनांव’। अबै जे कोई भाव-विचार का सवद सिरैनांव
पेटै लेय’र लेखक लिखै तो बात जमै कै हां इण दिस मांय लिख्यो जावैला। जद सिरैनांव ई
‘बिना सिरैनांव’ लिख दियो जावै तद उण निबंध नैं कियां लिखैला रो दाखलो ओ संग्रै
राखै। इणी निबंध सूं ओ दाखलो देखो- “दरअसल रचनाकार अेक हुंसियार
दरजी री भांत हुवै। हुंसियार दरजी जियां रंग-बिरंगी अळगी-अळगी कातरां नै जोड़’र
गाभै नै अैड़ो सरूप दे देवै कै उण रो सौंदर्य बध जावै। बो जोड़ेडी कातरां कोनी लागै।
विचार, भाव, इतिहास अर कथा तत्व आद नै बो इण भांत अेकमेक कर गूंथ देवै कै उण में
कोई संधी या जोड़ नजर कोनी आवै। बो काल्पनिक है तो भी सांच लागै।” इणी ढाळै
री बात इण पोथी पेटै कैयी जाय सकै कै न्यारै न्यारै रंगां सूं इण मांय जाणै
इंदरधनख आपां नैं निजर आवै। जद आपां अेक दो निबंध बांच लेवां तो लिखारै रो जादू
आपां माथै चढ़ जावै अर आपां उण लय मांय अेक पछै अेक निबंध बांचता रैवां। आ पोथी
बांचण रो अरथाव आपां नै केई केई नवी अर खरी जाणकारी भेळै अेक हेमाणी मांय सीर
हुवणो है। राजस्थानी लोक साहित्य अर साहित्य संसार मांय केई केई बातां जाणी-पिछाणी
अर अणजाणी है। आ पोथी बांच’र आपां मौकेसर बात कैवण सारू केई बातां चेतै कर सकालां।
‘थोड़ो
सो’ ललित निबंध तो इत्तो प्रेरक बणग्यो है कै इण नैं बांच्यां हियो हूंस सूं भरीज
जावै अर लखावै कै साचाणी मिनख खातर इण जूण मांय कोई काम अबखो कोनी। इण निबंध री
भासा अर बात-विचार री विगत इण ढाळै फिट बैठी है कै किणी सूनै मिनख नै जे ओ
बंचा-सुणा देवां तो बो चेतन हुय जावै।
इणी ढाळै ‘नूंतौ’ अर ‘बटाऊ’ ललित निबंधां मांय आं सबदां सूं
लेखक बात टोरै पछै उण नै सिरै लेय जावै। किणी छोटै अर जाबक सरल सै दिखतै सबद मांय
सूं लांबी-चौड़ी विगत काढ़’र आपरै हेताळु बांचणिया खातर राखणो आं निबंधां री खासियत
कैयी जावैला।
पतझड़ भी
जिंदगी रो जथारथ है इण बात नै ओळखता डॉ. बादल ललित निबंध लिख्यो- ‘पतझड़ माथै कुण
लिखै’ अर कैवणो चाइजै कै इण ढाळै रो निबंध राजस्थानी में ई नीं भारतीय भासावां
मांय नीं मिलैला। इणी ढाळै ‘कातीसरौ’ मांय लोकरंगां अर धरती सूं हेत री निरवाळी
बानगी देखण नैं मिलै। ‘सबदां रो सफर’ सिरैनांव निबंध मांय सबदां अर भासा रै विगसाव
पेटै जोरदार चिंतन मिलै। अेक निबंध कैवण नै अेक है पण उण मांय अणगिणती रा दाखला अर
इसी इसी बातां मिलै कै बां माथै न्यारी न्यारी केई केई बातां करी जाय सकै। आं सगळी
बातां री असलियत आपनै तद ई ठाह लागैला जद आप आं नै बांचोला।
राजस्थानी
भासा मोटै काळजै वाळी भासा तद ई बाजैला जद आपां आज रै बगत नैं सांगोपांग सिरजण
करांला। तत्सम अर तद्भव दोनूं भांत रा सबद लेखक आपरै सुभीतै सूं काम लेवै। केई
दूजी भासावां रा सबदां नैं ई परोटणा पड़ै तो बेजा बात कोनी। भासा असल में आपां रै
हियै मांयलै भावां नै पूगावण रो कारज सारै। वर्तमान जे तत्सम सबद नैं वरतमान लिखण
मांय कोई आंट कोनी अर जे मनैगनै वरतमांन नैं खरो मानै अर लिखै तो बो ई खोटो कोनी।
फगत जरूरत इण बात री है कै लेखक री खुद री कोई अेक विचारधारा सबदां पेटै हुवणी
चाइजै। मोटै नगर-महानगर मांय रैवणियै मिनख री भासा अर ठेठ गांव रै मिनख री भासा
जुदा हुवणी लाजमी है। भणियै-गुणियै मिनख अर अनपढ़ मांय आंतरो उण री भासा सूं ई समझ
आवै। इण पोथी मांय आधुनिक राजस्थानी समाज जिको हिंदी-अंग्रेजी मांय पढ़ै-लिखै अर
आपरी जड़ां सूं खुद जुड़ै अर आपरै समाज नैं ई जड़ां सूं जोड़ण रो जतन करै उण ढाळै री
भासा मिलैला। भासा रै मामलै मांय आ लेखक री सावचेती कैयी जावैला कै बै नगरीय भासा
मांय सरल सहज भासा रो प्रयोग करता थका मोकळी जगां केई केई सबदां ओखाणा अर कहाणियां
रै मारफत आपां नै आपां री भासा अर संस्कृति नैं संभाळ’र राखण री भोळावण ई देवै।
घर रा
जोगी जोगणा अर आन गांव का सिध आळी बात हुवै, मंगत जी आपणा है अर बै आपरै हेताळु
बरताव सूं आ लागण ई कोनी देवै कै बै कोई घणा मोटा अर टंणका लिखारा है। साथी सायना
अर छोटा सूं अणमाप हेत राखणियां मंगत जी असल मांय घणा मोटा अर टाळवा लिखारा है
जिका री कलम सूं केई अमर रचनावां निकळी है। इण पोथी रा अर लारली पोथ्यां रा केई
केई निवंध ललित निबंध विधा रा उल्लेखजोग निबंधां रै रूप मांय कूत्यां जावैला।
म्हनै पतियारो है कै जे आप मंगत बादल रा ललित निवंध अेकर बांच लेवोला तो म्हारी इण
बात री साख भरोला। नवी पोथी रै प्रकाशन माथै म्हैं घणी घणी मंगळकामनावां साथै अंजस
करतो आभार जतावूं कै म्हनै अठै म्हारी मनगत दरसावण रो मौको मिल्यो।
- नीरज दइया
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