Saturday, October 13, 2018

प्रख्यात साहित्यकार सांवर दइया की 70 वीं जयंती

सांवर दइया जयंती पर तीन किताबों का लोकार्पण
राजस्थानी के प्रख्यात साहित्यकार स्व. सांवर दइया की 70 वीं जयंती के अवसर पर 10 अक्टूबर को तीन पुस्तकों का लोकार्पण वरिष्ठ कवि-आलोचक डॉ. आईदान सिंह भाटी, कवि-विचारक डॉ. संजीव कुमार, पत्रकार-साहित्यकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ एवं कहानीकार-संपादक डॉ. मदन सैनी ने किया। साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था ‘मुक्ति’ द्वारा आयोजित कार्यक्रम में सांवर दइया के कहानी संग्रह ‘छोटा-छोटा सुख-दुख’ (संपादक बुलाकी शर्मा), डॉ. संजीव कुमार की कविताओं का राजस्थानी अनुवाद ‘घिर-घिर चेतै आवूंला म्हैं’ (अनुवाद डॉ. नीरज दइया) तथा ‘राजस्थानी कहानी का वर्तमान’ (संपादक डॉ. नीरज दइया) को लोकार्पित किया गया।
            कार्यक्रम के आरंभ में सांवर दइया के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उनका स्मरण किया गया। मुख्य अतिथि डॉ. आईदान सिंह भाटी ने कहा कि मुझे बेहद खुशी है कि स्व. सांवर दइया ने लोकभाषा में आधुनिकता का प्रवेश करवा समृद्ध किया उनकी कहानी-यात्रा में आज एक नया कहानी संग्रह ‘छोटा-छोटा सुख-दुख’ जुड़ रहा है। राजस्थनी कहानी में सांवर दइया ने आधुनिक युगबोध और नवीता का सूत्रपात किया उनके साहित्य में समाज और जीवन का अविस्मरणीय रूप झलका है। हम अगर व्यक्तिपरक लिखेंगे त़ो हमारा नाम बहुत दूर तक नहीं जाएगा। जबकि सांवरजी लोक-मन के कवि-कथाकार थे। डॉ. नीरज दइया ने युवा साहित्यकारों के सामने ‘राजस्थानी कहानी का वर्तमान’ देकर एक प्रतिमान प्रस्तुत किया है।
            कार्यक्रम में प्रख्यात रंगकर्मी और साहित्यकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने कहा कि सांवर दइया ने कहानी में नाटक के अनेक तत्वों का प्रयोग करते हुए कहानी की रूढ़ता को निरंतर दूर करते हुए संवेदनशील रचनाकार होने का परिचय दिया। डॉ. नीरज दइया की राजस्थानी भाषा में गहरी पकड़ को इस अनूदीत कृति में देखा जा सकता है, उन्होंने कविता को ठेठ राजस्थानी भाषा के मुहावरे में ढालने में सफलता अर्जित की है। आलोचना के क्षेत्र में डॉ. नीरज के कार्यों की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि वे पूरी समझ, सूझबूझ और दृष्टि के साथ कार्य कर रहे हैं।
    वरिष्ठ कहानीकार-संपादक डॉ. मदन सैनी ने कहा कि सांवर दइया आधुनिक गद्य साहित्य की धूरी थे। उनकी कहानियां अपने आप में एक मिशाल है। वे समाज के केंद्र में रखकर लिखते थे इसलिए आधुनिक साहित्य में अग्रिम पंक्ति के रचनाकार कहे जाते हैं। उनकी कहानी को लेकर सूक्ष्म दृष्टि अनुकरणीय है। नीरज दइया अपने पिता के पद्चिह्नों पर चलते हुए राजस्थानी-हिंदी साहित्य में ख्यातिप्राप्त रचनाकार के रूप में पहचाने जाने लगे हैं। उनकी दोनों भाषाओं में समान अधिकार के चलते डॉ. संजीव कुमार की कविताओं का उन्होंने बेहद पठनीय और उपयुक्त अनुवाद किया है। आलोचना के क्षेत्र में जो कमी है उसे डॉ. नीरज निरंतर अपने सृजन से पूरा कर रहे हैं। बुलाकी शर्मा ने सांवर दइया की दस अप्रकाशित कहानियों को प्रस्तुत कर सराहनीय कार्य किया है।
            व्यंग्यकार कहानीकार बुलाकी शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि सांवर दइया की कहानी कला अपने आरंभिक काल से युवाओं के लिए प्रेरक और प्रतिमान के रूप में पहचानी जाने लगी थी। उन्होंने राजस्थानी कहानी को आगे बढ़ाते हुए अनेक शैल्पिक प्रयोग किए। डॉ. नीरज दइया विविध विधाओं में लिखते हुए राजस्थनी के गौरव में अभिवृद्धि करने वाले युवा साहित्यकार है। शर्मा के कहा कि राजस्थानी कहानी का वर्तमान जैसी पुस्तक से राजस्थानी कहानी का यश दूर दूर तक फैलेगा।
    इस अवसर पर कवि डॉ. संजीव कुमार ने अपनी चयनित बोलते पत्थर, कौन कहता है, चुक जाता है एक दिन इत्यादि कविताएं सुनाकर दाद बटोरी तो वहीं मन के सूनेपन पर कविता ने सोचने के लिए विवश किया। डॉ. नीरज दइया ने संग्रह से अनूदीत कविताओं का पाठ किया तथा अपनी रचना-प्रक्रिया पर प्रकाश डाला। संस्था द्वारा कवि डॉ. संजीव कुमार, डॉ. आईदानसिंह भाटी, मधु आचार्य आशावादी, अनंगपाल सिंह चौहान, मनमोहन कल्याणी, सरल विशारद, मयंक पारीक आदि अतिथियों का संस्था द्वारा शॉल ओढ़ाकर सम्मान किया गया। इस अवसर पर डॉ. नीरज दइया ने अपने परिजनों और साहित्यकारों को पुस्तकें भेंट की।
            लोकार्पण समारोह में साहित्यकार हरदर्शन सहगल, सरदार अली परिहार, सरल विशारद, अनंगपाल सिंह चौहान, विद्यासागर आचार्य, डॉ. मुरारी शर्मा, ओम प्रकाश सारस्वत, चंद्र शेखर जोशी, सरजीत सिंह, अनिरूद्ध उमट, मंदाकिनी जोशी, मोनिका गौड़, लोकेश आचार्य, राकेश टी. कांतिवाल, सन्नू हर्ष, जाकिर अदीब, प्रो. अजय जोशी, सरल विशारद, मोनिका गौड़, मयंक पारीक, नंदलाल दइया, जेठमल सोलंकी, रवींद्र यादव, नगेंद्र किराडू, विनोद सारस्वत, हरीश बी. शर्मा, प्रमोद शर्मा, योगेंद्र पुरोहित, डॉ. नमामीशंकर आचार्य, डॉ. गौरीशंकर आचार्य आदि उपस्थित थे।
            स्वागत भाषण में कवि-कहानीकार राजाराम स्वर्णकार ने आगंतुकों का स्वागत करते हुए सांवर दइया को आधुनिक साहित्य का पुरोधा बताया। उन्होंने कहा कि बीकानेर में राजस्थानी लेखकों और किताबों की संख्या बढ़ती जा रही है। अंत में आभार कवि-कहानीकार नवनीत पाण्डे ने ज्ञापित किया तथा कार्यक्रम का संचालन कवि-कहानीकार राजेंद्र जोशी ने किया।

राजेंद्र जोशी
सचिव- मुक्ति













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डॉ. नीरज दइया की प्रकाशित पुस्तकें :

हिंदी में-

कविता संग्रह : उचटी हुई नींद (2013), रक्त में घुली हुई भाषा (चयन और भाषांतरण- डॉ. मदन गोपाल लढ़ा) 2020
साक्षात्कर : सृजन-संवाद (2020)
व्यंग्य संग्रह : पंच काका के जेबी बच्चे (2017), टांय-टांय फिस्स (2017)
आलोचना पुस्तकें : बुलाकी शर्मा के सृजन-सरोकार (2017), मधु आचार्य ‘आशावादी’ के सृजन-सरोकार (2017), कागद की कविताई (2018), राजस्थानी साहित्य का समकाल (2020)
संपादित पुस्तकें : आधुनिक लघुकथाएं, राजस्थानी कहानी का वर्तमान, 101 राजस्थानी कहानियां, नन्द जी से हथाई (साक्षात्कार)
अनूदित पुस्तकें : मोहन आलोक का कविता संग्रह ग-गीत और मधु आचार्य ‘आशावादी’ का उपन्यास, रेत में नहाया है मन (राजस्थानी के 51 कवियों की चयनित कविताओं का अनुवाद)
शोध-ग्रंथ : निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध
अंग्रेजी में : Language Fused In Blood (Dr. Neeraj Daiya) Translated by Rajni Chhabra 2018

राजस्थानी में-

कविता संग्रह : साख (1997), देसूंटो (2000), पाछो कुण आसी (2015)
आलोचना पुस्तकें : आलोचना रै आंगणै(2011) , बिना हासलपाई (2014), आंगळी-सीध (2020)
लघुकथा संग्रह : भोर सूं आथण तांई (1989)
बालकथा संग्रह : जादू रो पेन (2012)
संपादित पुस्तकें : मंडाण (51 युवा कवियों की कविताएं), मोहन आलोक री कहाणियां, कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां, देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां
अनूदित पुस्तकें : निर्मल वर्मा और ओम गोस्वामी के कहानी संग्रह ; भोलाभाई पटेल का यात्रा-वृतांत ; अमृता प्रीतम का कविता संग्रह ; नंदकिशोर आचार्य, सुधीर सक्सेना और संजीव कुमार की चयनित कविताओं का संचयन-अनुवाद और ‘सबद नाद’ (भारतीय भाषाओं की कविताओं का संग्रह)

नेगचार 48

नेगचार 48
संपादक - नीरज दइया

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"
श्री सांवर दइया; 10 अक्टूबर,1948 - 30 जुलाई,1992

डॉ. नीरज दइया (1968)
© Dr. Neeraj Daiya. Powered by Blogger.

आंगळी-सीध

आलोचना रै आंगणै

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