डॉ. नीरज दइया के साद्य प्रकाशित राजस्थानी कविता-संग्रह
“पाछो कुण आसी” की चार कविताओं का हिंदी अनुवाद
कवि परिचय नीरज दइया
जन्म 22 सितम्बर, 1968 राजस्थानी के
कवि-आलोचक और अनुवादक। साहित्य अकादेमी,
राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, नगर विकास न्यास आदि से पुरस्कृत।
संपर्क : सी-107, वल्लभ गार्डन, पवनपुरी,
बीकानेर- 334003
डॉ. नीरज दइया की
प्रकाशित पुस्तकें
1. भोर
सूं आथण तांई (लघुकथा संग्रह) 1989
2. साख (कविता संग्रह) 1997
3. देसूंटो (लांबी कविता) 2000
4. कागद अर कैनवास (अमृता
प्रीतम की पंजाबी काव्य-कृति का राजस्थानी अनुवाद) 2000
5. कागला अर काळो पाणी
(निर्मल वर्मा के हिंदी कहाणी संग्रह का राजस्थानी अनुवाद) 2002
6. ग-गीत (मोहन आलोक के
राजस्थानी कविता संग्रह का हिंदी अनुवाद) 2004
7. मोहन आलोक री कहाणियां
(संचयन : नीरज दइया) 2010
8. कन्हैयालाल भाटी री
कहाणियां (संचयन : नीरज दइया) 2011
9. आलोचना रै आंगणै
(आलोचनात्मक निबंध) 2011
10. जादू रो पेन (बाल
साहित्य) 2012
11. सबद नाद (भारतीय भाषावां
री कवितावां) 2012
12. मंडाण (राजस्थानी के 55 युवा
कवियों की कविताएं) संपादक : नीरज दइया 2012
13. देवां री घाटी (भोलाभाई
पटेल के गुजराती यात्रा-वृत का राजस्थानी अनुवाद) 2013
14. उचटी हुई नींद (हिंदी
कविता संग्रै) 2013
15. बिना हासलपाई (आलोचना) 2014
16. पाछो कुण आसी (कविता
संग्रह) 2015
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राजस्थानी कविताएं
मूल : नीरज दइया
अनुवाद : नवनीत पाण्डे
वापस
कौन आएगा....
तुम्हारे छोड़-छिटका
देने से
चार दिन बाद में
मरते
मर जाएंगे चार
दिन पहले...
कहने वालों को
कौन टोकता है
बात-बात में
मीन-मेख निकालना अच्छी बात नहीं
पूर्व की हवाएं
पश्चिम को आए-जाए तो दोष किसका?
आज तक आपके
मुताबिक
आपके पसंदीदा गीत
गाए
और बस गाते ही
रहे हम!
करने को तो बहुत
कुछ किया जा सकता है
एक घेरा छोड़ कर घुस
सकते हैं दूसरे में
जरूरी नहीं कि
सदा हम रहे घेरों में ही
मरने से पहले कहा
जा सकता है कोई सत्य!
और क्यूं करे कोई
मरने की प्रतीक्षा...
समझ क्यूं नहीं ले
सत्य वचन में ही जीवन का है सार।
वह जो तुम्हें-
पसंद जो था मैं
अब हो गया है
प्रेम उड़न-छू
रह गया है जो कुछ
शेष
सब मुरझाया और
बेकार-सा
क्या भूला दी है
सच में
अच्छे दिनों की
सारी स्मृतियां
अगर कहना ही है
तो, कुछ घुमा-फिर कर नहीं
साफ-साफ कहिए न!
सच अगर है भीतर कलेजे
में कहीं छुपा
कह कर मुक्त
क्यों नहीं हो जाएं....
कल रचेगा विश्वास
यही सत्य
प्रेम है इस
दुनिया से
मगर यहां खण्डित नहीं
होगी जरा सी कोर भी
अगर मैं मर ग्या चार
दिन पहले...
वापस कौन लौटता
है
अगर यही है सच्ची
बात
तो कर लेते हैं
हिसाब
अब जो बचे हैं दो
दिन शेष
इन दो दिनों को कर
देते हैं मुक्त
आनंद से जीवन
जीने के लिए
पकड़ कर अंगुली
चलेंगे कब तक
मेरी तरफ यूं प्रश्नाकुल-व्यथित
निगाहों से मत देखो...
जब बदल ही की है
निगाहें
तब देखो वह जो मन
भाए तुम्हारे
उतरने के बाद मन
से
किसलिए ये
दिखावटी संबंधों के प्रपंच?
न सही आप, दूसरे तो हैं ही मार्ग में साथ
नमस्कार बोलना तो
आता ही है....
रास्ते में मिल
ही जाएगा कोई राहगीर साथी
अब जीने दो, दो घड़ी खुलकर हंसने दो
बात-बात में मत अटकाओ
टांग
इन्हें संभाल कर
रखो यात्रा के लिए
जरा सी हंसी पर
मेरी दिखा रहे हो आंखें क्यूं
कहा.. अगर सत्य
हो गया भर आएंगीं यही आंखें
अंतत्वोगत्वा
पत्थर नहीं हो तुम
हो तो आदमी ही,
मेरे अग्रज!
अरे भले आदमियों!
तुम्हारी नफरत और
लापरवाही में पलती
सेंधों के साथ मैंने
निभाया है अथाह अपनापा
और थोड़ा-सा प्रेम
भी छुपाए हूं अपने भीतर अंतस में
तुम अपनी बंदिशों
में रहो... अच्छे से!
बहुत भले हो तुम
स्वजन!
ना मालूम किस मिट्टी
से बने हो
नहीं बोलते जीवन
की किसी बात पर
साधे हो मौन मृत्यु
के सवाल पर भी!
अच्छा है... चार
दिन बाद में मरने से
मर जाएं चार दिन
पहले
करते हुए यह
प्रार्थना-
रहना अमर तुम!
मरना नहीं कभी!
संभाले रखना
प्रेम मेरा
...और कुछ नहीं तो
बना देना एक घेरा
प्रेम को केंद्र
में रखते उसके इर्द-गिर्द
लोक दिखावे के
इसी तुम्हारे प्रेम को लिए
चला जाऊंगा मैं
दूर कहीं
मेरे साथ.. मेरे
हिस्से जो जितना भी आए
पर क्या यह सुख कम
है....
नहीं कोई उलाहना
तुम्हें
जो कुछ भी मिला
तुम से
कर लूंगा संतोष उसी
में
नहीं पूछूंगा
तुमसे
धैर्य जीवन का
धर्म अपना
क्यूंकि वापस कौन
लौटता है...
यह जान लें कि
कोई नहीं बचेगा
कौन किसे है छोड़ेनेवाला
छीन लेगी ये
दुनिया तमाम हसरतें
हां, सच कहता हूं-
छीन लेगी ये
दुनिया सभी कुछ
सभी कुछ... माने
सभी कुछ....
और इस छीना- झपटी
में स्मृति कहां जाएगी..... ?
००००
मैं कविता की प्रतीक्षा में हूं
ढूंढ़ने से नहीं
मिलती कविता
अयानास ही दीखती
है
जब भी करना चाहता
हूं संवाद
तो नहीं मिलता
कोई ठीक-ठाक प्रश्न
प्रश्न यह है कि कोई
कवि क्या पूछे कविता से
क्या किसी कविता
से पहचान के बाद भी जरूरी होता है प्रश्न
प्रश्न कि समय
क्या हुआ है?
प्रश्न कि बाहर
जा रहे हो कब लौटोगे?
प्रश्न कि खाना
अभी खाएंगे कि ठहर कर?
प्रश्न कि चाय
बना देती हूं पिएंगे क्या?
प्रश्न कि नींद आ
रही है लाइट कब ऑफ करोगे?
प्रश्न कि इन
किताबों में सारे दिन क्या ढूंढते रहते हो?
प्रश्न कि कोई
पैसे-टके का काम क्यूं नहीं करते?
प्रश्न..
प्रश्न... प्रश्न ? शेष है
प्रश्न-प्रतिप्रश्न?
किंतु सिर्फ
प्रश्नों से क्या बन सकता है?
क्या सभी
प्रश्नों को इकठ्ठा कर रच दूं कोई कविता?
पर क्या करुं-
अभी-अभी आया है
जो प्रश्न आपके संज्ञान में
इसीलिए तो मैंने
सर्वप्रथम लिखा था-
ढूंढने से नहीं
मिलती कविता
अयानास ही दीखती
है
कविता यह है कि
मैं कविता की प्रतीक्षा कर रहा हूं
अगर आपकी भेंट हो
तो कहना उसे कि
मैं प्रतीक्षारत हूं।
००००
बीरबल
की खीचड़ी है कविता
नमक-मिर्च की
पूड़ी नहीं है कविता!
अटपटी लगी आपको
यह पंक्ति
किंतु कविता के
रचाव को लेकर मैं कुछ कहना चाहता हूं-
जीवन में जरूरी
होता है नमक-मिर्च का हिसाब
कवि भी रखता है
अपने हिसाब से हिसाब
बिना हिसाब की
नहीं होती कविता....
माफी चाहूंगा मैं
किसी की पसंद पर
नहीं लिख सकूंगा
कोई कविता
बीरबल की खीचड़ी
है कविता
गिराता है कोई
धास की ढेरी और भड़काता है आग
इधर उस दूर की आग
में पकती है कविता.....।
००००
मत
मांगना इस मद कोई हिसाब
कहने को तो कह
दिया-
देना पड़ेगा हिसाब
हर एक शब्द का
पर शब्द खुद हैं
मेरे पास बेहिसाब
कैसे किया जा
सकता है हिसाब
शब्दों का शब्दों
से
जब तुम ने सौंपे
थे शब्द मुझे
जब उपजे थे मेरे
भीतर शब्द
और जब मिले थे राह
पर चलते-चलते
किताबें पढ़ते और बतियाते
शब्द
तब कहां तय था
यह-
हिसाब देना होगा
हर के शब्द का!
मेरे भाई! कमी
नहीं है शब्दों की
शब्द खुद है मेरे
पास बेहिसाब
तब क्यूं आंकने बैठ
जाऊं मैं हिसाब...
अदल-बदल किया जा
सकता है शब्दों को
किसी सीमा में
नहीं बंधे हैं शब्द
लिए जा सकते हैं
उधार
बिना पूछे, किसी
से भी लें किसी के शब्द...
इस निराली दुनिया
के शब्दों के महासागर में पहुंचने पर
देखता हूं मैं-
वे बेहिसाब लड़ाते
हैं मुझे और मैं उन्हें
होती है- कविता
शब्दों की शब्दों
से अनोखी मुलाकात
है यह आपसदारी की
बात
जिसे लिख दिया है
यहां, स्मरण रहे!
००००
- डा. नीरज दइया की राजस्थानी कविताओं का हिंदी अनुवाद : नवनीत पाण्डे
अनुवादक परिचय
नवनीत पाण्डे : जन्म
26 दिसम्बर, 1962 हिंदी और राजस्थानी में समान रूप से लेखन।
हिंदी और राजस्थानी में परस्पर अनुवाद। हिंदी में कविता संग्रह- ‘सच के आस पास’, ‘छूटे हुए संदर्भ’ प्रकाशित। राजस्थानी
कहानी संग्रह ‘हेत रा रंग’ चर्चित।
संपर्क : 2 डी- 2, पटेल नगर, बीकानेर- 334003
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भाई नदीम अहदम के लिए आभार शब्द छोटा लग रहा है।
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