राजेंद्र जोशी
आज दस अक्टूबर सांवर दइया जी की जयंती
पर डॉ. नीरज दइया की एक उल्लेखनीय कृति “पाछो कुण आसी” अर्थात वपिस कौन आएगा का
लोकार्पण है। जीवन के विविध प्रश्नों पर बहुत ही संजीदा ढंग से इन कविताओं में कवि
ने अपनी बात कही है। राजस्थानी साहित्य में नीरज दइया ने अपना वह मुकाम हासिल किया
है कि वे किसी परिचत के मोहताज नहीं है, बस नाम ही काफी है। आरंभ में बहुत से
मित्र नीरज दइया को उनके पिता प्रख्यात साहित्यकार श्री सांवर दइया के नाम से
पहचानते थे किंतु नीरज ने साहित्य-जगत में सक्रिय रहते हुए एक इतिहास बनाया है कि
अब ऐसा दौर आ गया है कि सांवर दइया का स्मरण उनके पुत्र के नाम से किया जाने लगा
है। डॉ. नीरज का जन्म 22 सितम्बर, 1968 को रतनगढ़ (चूरू) में हुआ और प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा भी कीर्ति-शेष कवि
श्री किशोर कल्पनाकांत की पावन भूमि पर हुई। साहित्यिक वातावरण में पले बढ़े नीरज
ने अपना आरंभिक लेखन राजस्थानी में किया।
उनका मानना रहा है कि लेखन में भाषा नहीं वरन लेखन ही महत्वपूर्ण होता है ।
संग्रह पाछो कुण आसी की बहुत सी कविताएं राजस्थानी में और हिन्दी के अतिरिक्त अन्य
भारतीय भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी है।
नोखा और बीकानेर में शिक्षा के समय उनके
योग्य शिक्षकों में पिता श्री सांवर दइया के अतिरिक्त कान्ह महर्षि, मो. सद्दीक,
ए. वी. कमल, अजीज आजाद, पेंटर के राज, सन्नू हर्ष आदि अनेक नाम रहे जो कला और
साहित्य जगत के जीवंत हस्ताक्षरों के रूप में पहचाने जाते हैं। स्कूली शिक्षा के
समय श्री रावत सारस्वत और श्री श्रीलाल नथमल जोशी द्वारा संचालित राजस्थानी की
विविध परीक्षाओं को उत्तीर्ण किया और जनकवि श्री कन्हैयालाल सेठिया से उनका गहरा
जुड़ाव पत्र संपर्क के रूप में रहा। महाविद्यालय तक पहुंचते पहुंचते डॉ. नीरज दइया
ने कहानीकार और कवि के रूप में माणक और मरवण जैसी पत्रिकाओं के माध्यम से अपनी
उपस्थिति दर्ज की तथा राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर का
भत्तमाल जोशी महाविद्यालय पुरस्कार से भी आप सम्मानित किए गए।
पिता के विछोह का गहरा आधात झेलने वाले
डॉ. नीरज दइया ने जहां अपने पिता के अप्रकाशित साहित्य के प्रकाशन में
महत्त्वपूर्ण योगदान दिया वहीं नेगचार जैसी पत्रिका का संपादन कर अपनी योग्यता को
प्रमाणित किया। कवि, कहानीकार और व्यंग्यकार श्री सांवर के हिंदी में कविता संग्रह-
उस दुनिया की सैर के बाद, राजस्थानी में कविता संग्रह- हुवै रंग हजार, आ सदी मिजळी
मर, कहानी संग्रह- पोथी जिसी पोथी, व्यंग्य संग्रह- इक्यावन व्यंग्य और अनुवाद-
स्टेच्यू जैसी सात कृतियों का प्रकाशन अपने आप में नीरज दइया के अपने पिता और
साहित्य के प्रति निष्ठा और प्रेम को प्रकट करता है। इसी क्रम में यदि हम कुछ
जोड़ना चाहे तो मोहन आलोक री कहाणियां और कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां जैसी कृतियों
के संपादन को जोड़ते हुए कह सकते हैं कि डॉ. नीरज दइया एक आत्मीय और भावुक अपने
संबंधों के निभाने वाले रचनाकर है।
पिता के नहीं रहने के बाद अपने सृजन के
साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में एम. ए. हिंदी और राजस्थानी साहित्य में करने के
पश्चात डॉ. उमाकांत के निर्देशन में “निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध” विषय
पर शोध कार्य किया । आप शिक्षा और साक्षरता से गहरा जुड़ाव रखते हैं। जिले के
साक्षरता आंदोलन में आखर उजास मासिक बुलेटिन और साक्षरता प्रवेशिकाएं आखर गंगा में
अपाका महत्त्वपूरण अवदान रहा। शिक्षा विभाग के विभागीय प्रकाशनों में अपकी भूमिका
रही। शिक्षा और साक्षारता में अनेक महत्त्वपूर्ण कार्यों में डॉ. नीरज दइया का
उल्लेखनीय सतत सहयोग रहा। शिक्षा के क्षेत्र में
प्रारंभ में राजस्थान शिक्षा विभाग में कार्यरत रहे डॉ. दइया आजकल केंद्रीय
विद्यालय संगठन में हिंदी विभागाध्यक्षा के रूप में सेवारत है।
राजस्थानी में मौलिक कविता संग्रह के रूप में ‘साख’ तथा ‘देसूंटो’ आलोचना-संग्रह 'आलोचना
रै आंगणै’ तथा “बिना हासलपाई” लघुकथा संग्रह- ’भोर सूं आथण तांईं’ जैसी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई
हैं । इसी वर्ष आपको “जादू रो पेन” (बाल कहानियां) पर साहित्य अकादेमी का बाल
साहित्य पुरस्कार घोषित हुआ है। इससे पूर्व राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति
अकादमी द्वारा आपको अनुवाद पुरस्कार निर्मल वर्मा के कथा संग्रह "कव्वै और
काला पानी" के राजस्थानी अनुवाद “कागला अर काळो पाणी” पर मिल चुका है। यहां
यह भी उल्लेखनीय है कि भारतीय ज्ञानपीठ से पुरस्कृत अमृता प्रीतम के कविता संग्रह
"कागद ते कनवास" का राजस्थानी अनुवाद भी आपने किया, जो अनुवाद के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण माना गया है। यह क्रम जारी रखते
हुए डॉ. नीरज दइया ने “देवां री घाटी” (डॉ. भोला भाई पटेल की गुजराती यात्रा वृत्त
का राजस्थानी अनुवाद) तथा “सबद नाद” (भारतीय भाषाओं के कवियों की कविताएं का
प्रतिनिधि संचयन) को प्रस्तुत कर अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है। आपकी रचनाएं अनेक
सग्रहों में सहभागी रचनाकार के रूप में प्रकाशित हुईं और राजस्थानी भाषा, साहित्य और संस्कृति अकादमी, बीकानेर की मासिक
पत्रिका ‘जागती जोत’ का संपादन भी एक
वर्ष से अधिक समय के लिए आपने किया । अकादमी के उल्लेखनीय प्रकाशन के रूप में
“मंडाण” युवा कवियों की कविताओं का संपादन भी डॉ. नीरज दइया की महत्त्वपूर्ण
उपलब्धि कही जा सकती है।
आपको
नगर विकास न्यास सम्मान, पीथळ पुरस्कार और राजस्थानी भाषा, साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में अनेक
मान-सम्मान और पुरस्कार भी मिले हैं । राष्ट्रभाषा हिंदी के क्षेत्र में मौलिक कविता संग्रह के रूप में “उचटी हुई नींद” (2013) प्रकाशित तथा साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली के लिए “ग-गीत” (काव्य संग्रह कवि मोहन आलोक) का राजस्थानी
से हिंदी अनुवाद किया जो अकादेमी द्वारा 2004 में छपा ।
अंतरजाल
पर आपकी सक्रियता उल्लेखनीय है अनेक ब्लोग और बेब दुनिया के महासागर में कविता कोश
के भीतर राजस्थानी की स्थापना और निरंतरता का यश भी हम नीरज को देना होगा। डॉ.
नीरज दइया की सृजन यात्रा के इस सुदीर्ध यात्रा में अब “बिना हासलपाई” समकालीन
राजस्थानी कहानी के परिदृश्य को समझने समझाने में आलोचना के क्षेत्र में एक
महत्त्चपूर्ण उपलब्धि के रूप में देखा-स्वीकारा जाएगा और आशा की जानी चाहिए कि वे
इस यात्रा में आगे एक नया इतिहास भी लिखेंगे। राजस्थानी के यशस्वी कवि, कथाकार और आलोचक डॉ नीरज दइया को नई कृति 'पाछो कुण
आसी' के लोकार्पण के अवसर पर बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं।
तपसी भवन, नत्थूसर बास, बीकानेर- 334004
मोबाईल: 9414029687
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