आंख्यां मांय सुपनो (कहाणी संग्रै), आडा-तिरछा लोग (उपन्यास) रै लोकार्पण-समारोह रो पत्र-वाचन
डॉ. नीरज दइया
राजस्थानी उपन्यास का कहाणी विकास जातरा री बात करां तो बीकानेर सदा सूं ई अगाड़ी
गिणीजै। आगै ई बीकानेर नै अगाड़ी बणायो राखण रो जस जिण रचनाकारां नै जावैला वां
मांय मधु आचार्य ‘आशावादी’ रो नांव हरावळ। आ म्हारी कोई अग्गमवाणी नीं, परतख-साच जाणो
कै ‘गवाड़’, ‘अवधूत’ पछै तीजो राजस्थानी उपन्यास ‘आडा-तिरछा लोग’ हुवो का ‘उग्यो
चांद, ढ्ळ्यो जद सूरज’ पछै दूजो राजस्थानी कहाणी संग्रै ‘आंख्यां मांय सुपनो’
बांच्यां रचनाकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ गद्य लेखक रूप आपरी सांवठी ओळखण करावै।
उपन्यास अर कहाणी दोनां पेटै जे अेकठ
बात करणी चावां तो ‘कथा’ सबद बरत सकां। आज ओ जूनो सबद ‘कथा’ घणो जूनो अर घसीज्योड़ो
लाखावै। म्हनै लागै कै अबै इण सबद मांय बो अरथ कोनी रैयो जिको बरसां पैली हो। जिका
सबद बरसां सूं बरतीजै बै आवण वाळै बगत जाणै होळै-होळै घसीजता-घसीजता सागण अरथ
बिसराय देवै। ‘कथा’ सबद बोलां जद इयां लखावै जाणै कोई जूनी कहाणी जियां सत्यनारायण
भगवान री का दूजी किणी बरत-कथा री बात कर रैयां हां। आ साव खरी बात आगूंच ठाह है
कै बरसां लोककथा सबद आपां रै अठै घणो-घणो चलस में रैयो। कैवणिया कैवै कै लोककथा रै
काळजै सूं आधुनिक कहाणी अर उपन्यास रो विगसाव हुयो। केई जाणीकारां रो मानणो इण सूं
साव जुदा ई देख सकां। आं दोनूं बातां बिचाळै तीजी बात उपन्यास रो नांव नवल-कथा थरपण
री ई राखीजी, पण अकारथ गई।
‘आडा-तिरछा लोग’ अर ‘आंख्यां मांय
सुपनो’ मांय आपां रै आसै-पासै री दुनिया मिलै। हरेक रचना रो मूळ आधार अंतपंत लोक ई
हुवै, लोक सूं कोई पण रचना जुदा नीं हुवै। कैयो जाय सकै कै किणी पण रचना रो जलम रचनाकार
रै मांयलै-बारलै लोक रै सिरोळै-मेळ सूं ई हुया करै। इक्कीसवी सदी मांय आज जद आपां
री मांयली-बारली दुनिया तर-तर बंतळ-बिहूणी हुवती लखावै। इण अबखी वेळा भागा-दौड़ी
इत्ती बेसी हुयगी है कै अबै खुल’र बंतळ खातर बगत अर निरायंत ई कोनी मिलै। च्यारूंमेर
पसरियो अर पसरतो मून आपां री आपसी बंतळ रा मारग ई बंद कर न्हाख्या। आखती-पाखती पसरी
सूनवाड मांय ओ कारज रचनाकार रूप मधु आचार्य ‘आशावादी’ संभाळै, बै जाणै आपां नै बंतळ
सारू हेलो करै। लेखक रो नाटककार हुवणो इण हुनर मांय इजाफो करै। आपां जाणा कै नाटक
विधा मांय अंतस री आखी दुनियां नै बंतळ रै सीगै सिरजणी पड़ै। मधु आचार्य ‘आशावादी’
रै रचना-संसार मांय
साहित्य री न्यारी-न्यारी विधावां घणी-घणी नैड़ी आय’र मेळ-मिलाप करती दिसै। न्यारा-न्यारा पात्रां री
बंतळ सूं भांत-भांत रा लोग होळै-होळै अंतस रै आंगणै आप रो रूप संभाळता खुद री
ओळखाण करावै।
मधु आचार्य ‘आशावादी’ रै हिंदी अर
राजस्थानी लेखन मांय घाळमेळ कोनी कै किणी अेक रचना नै कणाई हिंदी रचना रूप राख
देवै अर कणाई राजस्थानी रचना रूप। आप दोनूं भाषावां मांय न्यारी-न्यारी रचनावां सिरजै।
‘कावड़’ पोथी री भूमिका कागद रूप लिखतां चावा-ठावा लोककथा लेखक विजयदान देथा लिखै
कै असली लेखक बो हुवै जिको कै रोज कीं न कीं रचै। जे कोई कवि होळी-दियाळी कविता
लिखै तो बो कवि कियां हुयो? लेखक री गत तो नित लेखण मांय। बिज्जी री दीठ सूं मधु
आचार्य ‘आशावादी’ रै लेखन नै देखां तो नौ उपन्यास री, छह कहाणी-संग्रै अर छह कविता-संग्रै,
आपां साम्हीं आयाड़ो अर अजेस केई-केई आवण री आस-उम्मेद अर पक्को पतियारो। नाटक अर
बीजी विधावां मांय ई केई पोथ्यां प्रकाशित।
केई लिखारा ओ सवाल करै कै मधु
आचार्य ‘आशावादी’ इत्तो कद अर कियां लिखै? इण रो जबाब तो लेखक खुद राखैला, म्हारो
मानणो है कै कद अर कियां लिखै री ठौड़ जरूरी सवाल ओ मानीजै कै जिको लिख्योड़ो है बो
कियां अर किसो’क है? परख रै सीगै किणी रचना अर रचनाकार नै परंपरा मांय देखणो-परखणो
जरूरी मानीजै। म्हारो मानणो है कि किणी अेक रचना माथै न्यरी-न्यारी दीठ सूं चरचा
करी जाय सकै तद इत्तो लिख्योड़ो साम्हीं है तो चरचा खातर केई कोण देख सकां। साची
बात तो आ है कै ‘आशावादी’ रै रचनाकर अर रचनावां पेटै घणी-घणी बातां करी जाय सकै,
पण आज बात करां राजस्थानी उपन्यास ‘आडा-तिरछा लोग’ अर कहाणी संग्रै ‘आंख्यां मांय
सुपनो’ माथै।
मधु आचार्य ‘आशावादी’ प्रयोगधर्मी
गद्यकार मानीजै। आप रै उपन्यास अर कहाणी-कला री बात करां तो कैयो जा सकै कै आप रा
उपन्यास, उपन्यास जिसा उपन्यास कोनी हुवै अर कहाणियां ई इणी ढाळै। मतलब कै आपरी कहाणी,
कहाणी जिसी कहाणी कोनी हुवै। विधावां रा बण्योड़ा अर चलत रा चलतऊ खांचा सूं न्यारो-निरवाळो
रूप लेवती आप री रचनावां मांय केई प्रयोग ओळख सकां। ‘आडा-तिरछा लोग’ उपन्यास रो
सूत्र अेक कहाणी दांई है। ओछै काल-खंड री दीठ सूं छोटै-सै बगत मांय मोटी बात नै
परोटण री खेचळ मिलै। उपन्यास रो खास पात्र पटवारी काण-कायदै आळो अर बडेरा री सीख
माथै लैण सूं चालण वाळो पात्र धुरी रूप मिलै।
उपन्यास रा च्यारूं भाग जाणै
च्यारा न्यारी-न्यारी कहाणियां कैवै। आं नै असल मांय च्यार बिंब का कथ्य-रूपक ई
मान सकां। च्यारू कहाणियां आपस मांय रळ परी जिण दुनिया री सिरजणा करै उण मांय
आडा-तिरछा लोगां नै सीधा-सट्ट करण री कामना तो दीसै ई दीसै, साथै-साथै उपन्यास केई-केई
सवाल साम्हीं राखै। किणी पण जातरा का जूण खातर हरेक नै खुद रै मारग री पिछाण पण
जरूरी हुवै। मारग केई हुवै अर अेकठ केई मारग साम्हीं आयां हरेक नै खुद रै मारग रो
वरण करणो पड़ै। आडा-तिरछा लोगां रा मारग सेवट खूट जावै अर वा नै कोई मजल नीं मिलै। आडा-तिरछा
लोगां री बानगी फगत संकेत रूप निजर आवै। अै चरित्र अर पात्र अेक पूरै वर्ग नै
अरथावै।
आ इण उपन्यास अर उपन्यासकार री आ
सफलता मानीजैला कै बो जिण दुनिया नै रचै, उण रचाव मांय अेकठ जिका केई-केई रंग भेळा
करै, वै रंग जुड़ता-जुड़ता रंगां रो अेक कोलाज बणावै अर उण सूं जिको पूरो अेक चितराम
साम्हीं आवै। इण चितराम मांय आपां रै आसै-पासै री दुनियां रा उणियारा चिलकै। आकारा
री दीठ सूं ‘आडा-तिरछा लोग’ लघुउपन्यास-सो दिखै पण इण नै महाकाव्यात्मक-उपन्यास बणावै
इण मांयला केई-केई घटना-प्रसंग अर संकेत-संदर्भ। जूण रा जिका चितराम इण
महाकाव्यात्मक उपन्यास रै मारफत साम्हीं आवै वै आज रै बगत नै अरथावतां चीलै चालती
मिनखाजूण नै बिडदावै अर रंग सूंपै।
उपन्यास रै पैलै भाग मांय
सासू-बहू री बंतळ जिण नाटकीयता सूं खुलती जावै वा असल मांय गूंगै हुवतै संबंधां नै
सूत्र देवै कै किणी पण समस्या रो समाधान सेवट बतंळ सूं ई संभव हुय सकै। उपन्यास
मांय खुद उपन्यासकार बिना कीं कैयां ओ लाखीणो साच थरप देवै। जे बगतसर आडा-तिरछा
लोगां री ओळख नीं करीज सकैला तो कमला, राधा अर उण री छोरी जिसी अबलावां नै
आत्महत्या करणी पड़ैला। उपन्यासकार रो मिनखां पेटै ओ सोच आं ओळ्यां मांय देखां- “दो
हाथ, दो पग, आंख्यां अर सरीर री दूजी सगळी चीजां ही, इण खातर मिनख तो हा ई सरीर
सूं। पण जद उणां रै विचार अर वैवार माथै सोचूं तो मिनख आळी बातां नीं दीसै।” (पेज-59) मधु
आचार्य ‘आशावादी’ मिनख री परख विचार अर वैवार सूं करण रा हिमायती कैया जा सकै। चावा-ठावा
उपन्यासकार देवकिशन राजपुरोहित उपन्यास रो फ्लैप मांडता लिखै- “उपन्यासकार मधु
आचार्य ‘आशावादी’ आपरी सोझीवान दीठ सूं कथापात्रां रो चरित्र-चित्रण करता थकां
भ्रष्टाचार अर बेईमानी नै ठौड़-ठौड़ै भांडै, तो सागै ईमानदारी री सरावणा करण सूं ई
नीं चूकै। भूड़ै अर भलै रो भेद भी ओ उपन्यास आछी तरै अरथावै।”
‘आंख्यां
मांय सुपनो’ संग्रै री कहाणियां मांय केई-केई यादगार पात्र मिलै। दूजै सबदां मांय आ पण कैय
सकां कै मधु आचार्य ‘आशावादी’ रै लेखन रो मूळ आधार ई यादगार पात्र है। वै वा यादगार
पात्रां री ओळख नै थरपण पेटै ई स्यात सिरजण करै। आपरी हरेक कहाणी अर उपन्यास मांय
केई केई यादगार चरित्र आपां रै अंतस मांय घर कर लेवै। मधु आचार्य ‘आशावादी’ री आ
कला अर सावचेती मानीजैला कै वै घणै सहज अर सीधै रूप जटिल अर बेजोड़ चरित्रां री
सिरजणा करण रो हुनर जाणै। आसावादी सुर, नाटकीय बंतळ अर बेजोड़ पात्र आपरी लेखन री
तीन मोटी खासियता मानी जाय सकै।
दाखलै रूप बात करां तो संग्रै री
पैली कहाणी ‘सीर री जूण’ रा मोहन भा आखी जूण बिना किणी रुजगार करियां आखी जूण काढ
देवै, सेवट बां रै अंतस माथै अेक टाबर रा बोल जाणै कोई कांकरो बण’र आखी अमूझ नै
बारै काढै तो वै दुनिया नै ई छोड़’र जावै परा। दूजी कहाणी ’लाल गोटी’ रा गफूर चाचा
आपरै दुख नै आपरै आसै-पसै री दुनिया मांय टाबरा भेळै रम्मता-रम्मता जाणै भुळा’र
राखण री अटकळ सीखावै। तो कहाणी ‘आंख्यां मांय सुपनो’ री पार्वती काकी आपरै बेटै री
उडीक मांय जीवता-जीव जाणै पाखाण-पूतळी हुय’र खुद अेक कहाणी बण जावै।
कहाणीकार किणी पात्र का घटना मांय
घणखरी बार उमाव रो जिको भाव अेक पेटै दूजै रो दरसावै अर कहाणी नै कहाणी
सुणवण-सुणावण री परंपरा सूं जोड़ै। इण बुणगट नै आं कहाणियां री खासियत मान सकां, तो
इण नै आपां सींव रूप ई देख सकां। जूनी अर नवी कहाणी मांय मोटो आंतरो परखां तो आज
री कहाणी जूण री अबखायां नै अरथावण माथै खास ध्यान देवै। चावा-ठावा कहाणीकार अर
संपादक भंवरलाल ‘भ्रमर’ इण संग्रै रो फ्लैप लिखतां लिखै- “आं कहाणियां मांय कहाणीकार
रो किणी ढाळै री सीख देवण रो भाव कोनी, बो तो बस आं चरित्रां रै मारफत जीवण रा
राग-रंग अर जूझ मांडै जिण सूं कै बांचणियां रै हियै उजास पसरतो जावै।”
हियै उजास री बात करां तो आं
कहाणियां मांय सांप्रदायिक सदभाव, अेकता-अखंडता अर भाईचारो ई उल्लेखजोग मान्यो
जावैला। कहाणी ‘धरम री धजा’ मांय मिंदर-मस्जिद नै अेक करण रो सांवठो संदेस देख
सकां। अचरज हुवैला कै इण जुग मांय शब्बीर अर जगदीश जिसा मिनख ई हुया। जिण विगत सूं
किणी घटना अर चरित्र नै मधु आचार्य ‘आशावादी’ होळै-होळै बखाणै बो कहाणी
बांचता-बांचता बांचणियां रै हियै ढूकै। अंतस मांय आपरो रंग-रूप उजागर करिणियां आं
बेजोड़ पात्रां माथै पूरो पक्को पतियारो करण रो भाव जागै तो कहाणी ‘सरपंची रो साच’
जिसी रचना सूं दुनिया मांय छळ-छंद करणिया पेटै भूंड रो भाव ई हियै जागै। नवी
दुनिया अर इंटरनेट रै चोळका नै कहाणी ‘हेत री सूळ’ बखाणै तो कहणी ‘सेवा रा मेवा’
मांय आधुनिक हुयै समाज रो विरोधाभास अर द्वंद्व उजागर करीज्यो है। कहाणी ‘गोमती री
गांगा’ घर-परिवार अर अेक पागल छोरी रै मनोविज्ञान नै सांवठै ढंग सूं साम्हीं राखै।
कहाणी अर उपन्यास विधा रै तत्विक
आधार माथै बात करां तो अकादमिक ढंग सूं बीसूं बातां बखाणीज सकै। अबार इत्तो ई कै बात
बीकानेर रै साहित्य जगत मांय अगाडी हुवण सूं चालू करी तो सेवट मांय कैवणो चावूं कै
मधु आचार्य ‘आशावादी’ नै बांचता चावा-ठावा उपन्यासकार-कहाणीकार यादवेंद्र शर्मा
‘चन्द्र’ चेतै आवै जिका रै सिरजण मांय केई-केई बेजोड़ पात्र मिलै अर चावा-ठावा
कहाणीकार सांवर दइया याद आवै जिका केई संवाद-कहाणियां लिखी। कांई अठै ओ कैवणो
वाजिब हुवैला कै आं दोनूं लेखकां री सिरजण-जातरा रो विगसाव मधु आचार्य ‘आशावादी’ रै
लेखन मांय देख सकां। मधु आचार्य रो लेखन जथा नांव
तथा गुण सूं भरपूर कैयो जाय सकै। आज लोकर्पण री मंगळ-वेळा म्हैं कामना करूं कै आपरी जस-बेल नित
सवाई-सांवठी हुवै। आसावादी सुर, नाटकीय बंतळ अर
बेजोड़ पात्र नै घणा-घणा रंग। म्हरै ऊपर पतियारो राखता बात कैवण रो अबकी फेर मौको
दियो, इण खातर आयोजक संस्था रो जस मानूं। इत्तै नेठाव सूं आप पूरी बात कान मांड’र सुणी,
आप रो घणो-घणो आभार। रंग आपनै।
---------------------
1.
आडा-तिरछा लोग (उपन्यास) मधु आचार्य ‘आशावादी’ / प्रकाशन
वर्ष : 2015 / पृष्ठ : 96 / मूल्य : 150
/- प्रकाशक : ऋचा (इंडिया) पब्लिशर्स, बिस्सां
रो चौक, बीकानेर
2. आंख्यां मांय
सुपनो (कहाणी संग्रै) मधु आचार्य ‘आशावादी’ / प्रकाशन
वर्ष : 2015 / पृष्ठ : 88 / मूल्य : 150
/- प्रकाशक : ऋचा (इंडिया) पब्लिशर्स, बिस्सां
रो चौक, बीकानेर
मधु आचार्य ‘आशावादी’
जलम : 27 मार्च, 1960 (विश्व रंगमंच दिवस)
शिक्षा : अेम. अे. (राजनीति विज्ञान), अेलअेल.बी.
कारज : पत्रकारिता अर संपादन
दैनिक भास्कर (बीकानेर) रा कार्यकारी संपादक
सिरजणा : 1990 सूं राजस्थानी अर हिंदी री विविध विधावां मांय लगोलग लेखन। ‘स्वतंत्रता आंदोलन में बीकानेर का योगदान’ विसय माथै सोध।
प्रकाशन
: राजस्थानी साहित्य : ‘अंतस उजास’ (नाटक), ‘गवाड़’, ‘अवधूत’,
‘आडा-तिरछा
लोग’ (उपन्यास) ‘ऊग्यो चांद ढळ्यो जद सूरज’,
‘आंख्यां मांय सुपनो’
(कहाणी-संग्रै), ‘अमर उडीक’ (कविता-संग्रै), ‘सबद साख’ (राजस्थानी विविधा)
रो शिक्षा विभाग, राजस्थान सारू संपादन।
हिन्दी साहित्य : ‘हे मनु!’,
‘खारा पानी’, ‘मेरा शहर’, ‘इन्सानों की मंडी’ @24 घंटे (उपन्यास),
‘सवालों में जिंदगी’, ‘अघोरी’, ‘सुन पगली’ (कहानी-संग्रह), ‘चेहरे से परे’,
‘अनंत इच्छाएं’, ‘मत छीनो आकाश’, ‘आकाश के पार’, ‘नेह से नेह तक’
(कविता-संग्रह), ‘रास्ते हैं, चलें तो सही’ (प्रेरक निबंध), ‘रंगकर्मी
रणवीर सिंह’ (मोनोग्राफ)
पुरस्कार : उपन्यास ‘गवाड़’ माथै राजस्थानी
भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर कानी सूं ‘मुरलीधर व्यास
राजस्थानी कथा-पुरस्कार’, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर कानी सूं
‘राज्य स्तरीय नाट्य निर्देशक अवार्ड’,‘शंभू-शेखर सक्सेना विशिष्ट
पत्राकारिता पुरस्कार’
जुड़ाव : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली रै
राजस्थानी भासा परामर्श मंडळ रा सदस्य, लगैटगै 75 नाटकां रो निरदेसन अर 200
सूं बेसी नाटकां मांय अभिनय, कई रचनावां रो बीजी भारतीय भासावां मांय
अनुवाद। विश्वविद्यालयां कानी सूं रचनावां माथै शोध।
ठावो ठिकाणो : कलकत्तिया भवन, आचार्यां रो चौक, बीकानेर (राजस्थान)
ई मेल :
ashawaadi@gmail.com मो. 9672869385
0 टिप्पणियाँ:
Post a Comment