(27-09-2015 साहित्य अकादेमी, नवी दिल्ली अर मुक्ति बीकानेर रै भेळप मांय आयोजित कहाणी केंद्रित कार्यक्रम में पठित पचरो : च्यार कहाणीकार - भंवरलाल ‘भ्रमर’, मीठेस निरमोही, अरविन्द सिंह आशिया, मदन गोपाल लढ़ा, )
बदळतो बगत अर दीठावां रै
बिचाळै दौड़ती-भागती सदी
नीरज दइया
भंवरलाल ‘भ्रमर’ (1946), मीठेस निरमोही (1951), अरविंद सिंह आशिया (1964) अर मदन गोपाल लढ़ा (1977) री कहाणियां बाबत बात
करण री भोळावण म्हारै जिम्मै राखीजी अर म्हैं विचार करण लाग्यो कै आं च्यारूं
कहाणीकारां बाबत एकठ बात कियां करी जावै। आगूंच म्हैं म्हारी टीप आलेख रूप कहाणी
पत्रिका ‘कथेसर’ अर उण पछै म्हारी पोथी ‘बिना हासलपाई’ (2014) में कहाणीकार भंवरलाल
‘भ्रमर’ माथै तो जग-जाहिर करी। मीठेस निरमोही, अरविंद सिंह आशिया अर मदन गोपाल लढ़ा
राजस्थानी रा चावा-ठावा कहाणीकार मानीजै। अठै ओ पण कैवणो लाजमी लखावै कै ऐ म्हारै
दाय पड़ता कहाणीकार मानो। आं री कहाणी-कला माथै बात करण री चावना साहित्य अकादेमी
पूरी करी इण खातर मोकळो आभार। म्हारै साम्हीं सगळा सूं मोटी अबखायी आ कै अठै बगत री
एक सींव बांध्योड़ी है। आं च्यारूं कहाणीकारां माथै निरी ताळ तांई न्यारी-न्यारी
बातां कैयी जाय सकै पण म्हैं बंधी सींव री काण राखता थका बगत रो माण राखूंला।
हिंदी कहाणी-कविता
रै जोड़ मांय दसकवार बात करण रो चलस रैयो है। जलम री दीठ सूं देखां तद भंवरलाल ‘भ्रमर’ आजादी सूं एक बरस
पैली जलमिया। इण सीगै नै फळावां तो आं च्यारूं कहाणीकारां नै दसक रै हिसाब सूं एक
ऊपर एक पगोथियो मांडता राख सकां। दोय बीसी रै इण बगत नै साठोत्तरी रै सीगै देखां
तो दोय कहाणीकार मांय अर दोय आगै ऊभा दीसै। असल में कहाणीकार रै जलम
री ठौड़ बात कहाणी का कहाणी-संग्रै रै जलम सूं करी जावणी चाइजै। भंवरलाल ‘भ्रमर’ रा
तीन कहाणी संग्रै- तगादो (1972), अमूजो कद तांई (1976) अर सातूं सुख (1995) ; मीठेस निरमोही रो एक
कहाणी संग्रै- अमावस, एकम अर चांद (2002) ; अरविंद सिंह आशिया रा
दोय कहाणी संग्रै- कथा एक (2001) अर कथा दोय (2009) अर मदन गोपाल लढ़ा रो एक
कहाणी संग्रै- च्यानण पख (2014) म्हारै साम्हीं है। ऐ सात कहाणी-संग्रै राजस्थानी कहाणी रै
आभै रूपाळो इंदर-धनुस मान सका। आ ओळी कविता मांय तो रूपळी लाग सकै पण आलोचना रै
सीगै इण ढाळै री ओळ्यां रो बगत गयो समझो।
किणी रचना रै पाठ सूं ई आलोचना रो जलम हुवै। किणी रचना री
परख पाठक अर आलोचक दोनूं ई करै, पण आं दोनूं मांय घणो आंतरो हुवै। पाठक किणी पण
रचना नै बांचै अर नीं बांचै का अधबिचाळै छोड़ सकै। जद कै आलोचना री जबाबदेही अर
जिम्मेदारी दोनूं हुवै, तद पूरी पठनीय-अपठनीय रचना रो पाठ जरूरी हुय जावै। केई बार
ओ पाठ बारंबार करणो पड़ै। म्हैं कैवणी चावूं कै फोरी तौर माथै कैवणियां कीं पण कैय
सकै। मंच माथै मानीता कवि मोहन आलोक बिराजै अर म्हनै चेतै आवै आप सूं सुणियो एक प्रसंग-
गालिब टू गेटै। म्हैं जद कहाणीकार भ्रमर टू लढ़ा बात करणी स्वीकारी तद सूं ई आं सातूं
पोथ्यां नै दूसर-दूसर बांचतो केई-केई बातां विचारतो रैयो। आं कहाणीकारां री केई
कहाणियां मांय रमतो रैयो अर केई कहाणियां म्हनै रमावती रैयी। जद कहाणी रा पात्र आपां
रै अंतस आपरी कहाणी खुद कैवण लागै तद समझूं कै कहाणी पूरी बैठगी है। हरेक भाषा री
आपरी लकब हुवै, अठै म्हैं कहाणी बैठण री बात करूं तद उण रो अरथाव कै बा कहाणी आपरै
जस नै थापित करती बगत री लांबी सींव सदा ऊभी दीसैला।
कहाणी कोई चोखी का भूड़ी कोनी हुवै, चोखो अर भूड़ो हुवै उण रो
रचाव। कहाणी लिखणी एक कला है अर हरेक आपरी कला रै प्रताप न्यारै-न्यारै ढंग सूं
कहाणी नै बैठावण रा जतन करै। अर्जुनदेव चारण एकर शिक्षा विभाग री पोथी ‘आहूतियां’
रो संपादन करतां लिख्यो- कला में पूरणता अर प्रफेक्सन जैड़ी कोई चीज नीं हुवै, अठै
तो मछली री आंख खातर हरेक रो आपरो तीर अर निसाणो हुवै। सो कैवणो चावूं कै च्यारू
कहाणीकारां मांय कोई किणी सूं कमती का बेसी कोनी, छता पण आ कैय सकां कै आं च्यारूं
कहाणीकारां री कहाणी-कला रा ग्राफ एकसार कोनी। खुद भंवरलाल भ्रमर अर बां री
कहाणी-जातरा माथै विचार करतां म्हारो मानणो रैयो कै बगतसर आलोचना आपरो काम नीं
करियो इण वजै सूं राजस्थानी रो एक बोजोड़ कहाणीकार आपरो बो मुकाम नीं हासल कर सक्यो
जिण रो बो हकदार हो।
प्रतिनिधि कहाणी-संकलन ‘उकरास’
(1991) में संपादक
कवि-कहाणीकार सांवर दइया जद भ्रमरजी री ‘बातां’ कहाणी रो चयन करियो तो
जाणै इण कहाणी री कोई गुमियोड़ी चाबी लाधगी। मूळ कहाणी रै प्रकाशन पछै लगैटगै बीस
बरसां रो मून रैयो। इण नैं जोधपुर रै कथा समारोह (1995)
मांय वाजिब मान
मिल्यो, जिको 1972 पछै मिलणो चाइजतो हो। कहाणी-आलोचना री गफलत रा केई कारण
रैया। चावा-ठावा लोककथाकार विजयदान देथा तो उण टैम भुंवाळी खायग्या- बां संयोजक
कवि-कहाणीकार मीठेस निरमोही नैं म्हारै साम्हीं घणै अचरज सूं बूझ्यो- ‘भंवर! आ कहाणी कद लिखी?’ बिज्जी घणो अळोच कीनो कै
इण सांतरी कहाणी री पैली गिनार क्यूं कोनी हुई। इणी ढाळै सवाल रूप आपां विचार कर सकां
कै मीठेस निरमोही जिसै कहाणीकार री साव कमती कहाणियां आवण रै लारै कांई कारण रैया।
बगत री जरूरत समझा अर कहाणी रै विकास अर विगसाव खातर आपां इक्कीसवी सदी रा
चावा-ठावा कहाणीकारां मांय अरविंद सिंह आशिया अर मदन गोपाल लढ़ा जिसा कहाणीकारां री
कहाणियां री बगतसर ओळख-अंवेर करां-करावां।
जिण च्यार कहाणीकारां री बात म्हैं कर रैयो हूं बै
राजस्थानी रा सिरै कहाणीकारां बिचाळै हरावळ राख्या जाय सकै। जद आलोचना पेटै इण
ढाळै री कोई बात कैयी जावै तद उण रा प्रमाण ई चाइजै। इण ओळी री साख मांय आं च्यार
कहाणीकारां री कहाणियां सूं म्हैं बदळतो बगत अर दीठावां रै बिचाळै दौड़ती-भागती सदी
रा केई चितराम आपरै साम्हीं राखणा चावूं। कहाणी असल मांय बदळतै बगत नै अंवेरै। आज
जिका दीठावां सूं आपां धिरियोड़ा हां का कैवां कै जिका दीठाव आपां रै ओळै-दौळै रैवै
बां दीठावां रै बिचाळै दौड़ती-भागती सदी री पिछाण आज री कहाणी करावै। बगत री बारखड़ी
आ कै बगत भागतो जाय रैयो है अर इण दौड़तै-भागतै बगत नै कोई थाम नीं सकै। फगत कहाणी
मांय बगत नै राख सकां, कै उण री साख आवण वाळी पीढियां खातर अंवेर दां। कहाणी जद आ
साख अंवेरै तद बगतसर आलोचना नै इण साख रा गीत गावणा चाइजै।
कथेसर रा संपादक कहाणीकार-कवि रामस्वरूप किसान कहाणी-विकास
जातर बाबत बात करता भंवरलाल ‘भ्रमर’ बाबत लिखै- “राजस्थानी रा लांठा कहाणीकार
भंवरलाल ‘भ्रमर’ सायना में सै सूं सिरै, झीणी संवेदना रा कहाणीकार है।” (कथेसर-7 अक्टूबर-दिसम्बर, 2013) भ्रमर जी बरस 1970 सूं पैली रा कहाणीकार
है। अै कहाणियां अर ओ बगत कहाणी-इतिहास में इण खातर महतावू है कै इणी बगत रै
आसै-पासै नवी कहाणी आपरा पग मांड्या। भ्रमर जी रै साथै वां रा समकालीन कहाणीकार
सांवर दइया, मोहन आलोक अर नंद भारद्वाज आद वां दिनां मरुवाणी, हेलो, हरावळ जिसी पत्रिकावां
सूं नवी कहाणी नै मजबूत कर रैया हा। आलोचना में हासलपाई लगावणिया घणा है, इणी खातर
म्हैं कहाणी आलोचना पोथी रो नांव ‘बिना हासलपाई’ राख्यो अर इण नांव री साख इण ओळी
सूं करावूं- कीरत में नवी कहाणी रा हरावळ कहाणीकार सांवर दइया मानीजै, पण अठै ओ उल्लेख जरूरी लखावै
कै भंवरलाल ‘भ्रमर’ राजस्थानी में घणो पैली लिखणो चालू करियो।
भंवर लाल ‘भ्रमर’ री कहाणी-जातरा माथै विगतवार विचार करां तो ‘तगादो’ सूं ‘सातू सुख’ तांई सैंतीस कहाणियां रो दरसाव आपां साम्हीं बणै। ‘उपरलो
पासो’ नांव सूं कहाणी-संग्रै आवणवाळो है। कहाणीकार भ्रमर जी री च्यार व्हाली
कहाणियां- ‘बातां’, ‘उड़दो’, ‘तगादो’ अर ‘ढोंग’ री बात करां। अमूजो कद तांईं री भूमिका सूं इयां पण कैयो
जाय सकै कै कहाणीकार मुजब अै व्हाली अर टाळवीं कहाणियां है। आं कहाणियां सूं
कहाणीकार रो मोह रैयो है, तद ई आं नैं दूजै संग्रै में दूसर सामिल करीजी ही। खरैखरी
अै कहाणियां खुद मोह करै जैड़ी है। राजस्थानी कहाणी इतिहास में आं रै मुकाबलै री
आं जिसी दूजी कहाणियां कोनी मिलै। आं कहाणियां नैं भ्रमर जी री प्रतिनिधि कहाणियां
मानी जाय सकै।
भ्रमर जी री कहाणियां में बदळतै बगत में अरथ री मार सूं
दूर-नैड़ै रा सगा-संबंधी, अठै तांई कै घरू-खून रा रिस्ता ई तर-तर ठंडा पड़ता जाय रैया
है। कहाणी बातां अर तगादो में घर-परिवार में पसरतै मून री बानगी देखण नैं मिलै।
घर-घर ओ मून कियां-कठै पसरतो जावै इण रो ठीमर बखाण ई आपां आं कहाणियां में देख
सकां। उड़दो बाल-मनोविग्यान री कहाणी में नाटकीय भाषा-पख ई सरावणजोग है। अै
कहाणियां नवी कहाणी री थरपणा री जमीन कमावणवाळी मानी जाय सकै। बरसां पछै आज जद
बजारवाद हावी हुवण सूं बजार-भाव भलांई बदळग्या हुवै पण मूळ संवेदना मांय रत्ती भर
ई फरक कोनी आयो। कहाणियां में बरतीज्या आंक रिपिया-टका बदळ दिया जावै तो आं नैं
आपां आज री सिरजण भेळै समकालीन साच नैं उजागर करणवाळी कहाणियां कैय सकां।
‘सातूं सुख’ नांव घणो सांकेतिक है, इण नांव में भ्रमर जी री
पूरी कहाणी-जातरा रो सूत्र जोयो जाय सकै। कहाणियां में दुख-दरद है, बिखो है, बुढापो है, बगत री मार है, संस्कारहीणता है अर
खरोखरी जिण नैं सुख कैवां उण री धाप’र कमी आं कहाणियां में
कहाणीकार दरसावै। नांव में व्यंजना सुख री है, अर बो अरथ री मार सूं
आधुनिक जीवण में सब सूं बेसी पछाड़ खा रैयो है। सुख री उडीक है। सुख सपनो हुयग्यो
है। संबंधां मांय खारास आवतो जाय रैयो है। मिनख मसीन बणतो जाय रैयो है। मिनख नैं
होस कोनी रैयो कै वो आपरी परंपरावां सूं कीं सीखै। कठै तो बडेरा सात सुखां में
सगळै सुख री बात परोटता अर कठै गिणती रा कोई सात सुख ई हाथ कोनी रैया। लांबै बगत
उपरांत ई आज आं कहाणियां रो असरदार लखावणो ई आं कहाणियां री सफलता है।
मीठेश निरमोही अर अरविंद सिंह आशिया रो कहाणी-संग्रै इक्कीसवी सदी
लागता साम्हीं आवै। ’अमावस, एकम अर चांद’ 2002 अर `कथा’ एक 2001 रै मारफत परख करणियां नै
जाण लेवणो चाइजै कै मीठेस निरमोही घणा पैली कहाणियां लिखणी चालू करी। घणखरा
कहाणीकार आपरै कहाणी संग्रै मांय बां कहाणियां रै कठै कद किसी छपी बाबत जाणकारी
नीं राखै, इण सूं बां नै घणै बगत पछै देखां तद इण ढाळै री चूक ई हुय सकै। इण खातर
म्हैं आगूंच कैयो कै कहाणी विकास जातरा मांय म्हैं जिण च्यार कहाणीकारां बाबत बंतळ
करूं बै च्यार पगोथिया इण रूप मांय मानो कै आं सूं कहाणी तर-तर डीगी हुवती जावै।
अठै अखरार कैबणी चावूं कै अरविंद सिंह आसिया अर मदन गोपाल लढ़ा जिसै कहाणीकारां री
अंवेर आलोचना करैला तो आं दीवां रो उजास घणो आगो पूगैला अर आपरी परंपरा मांय आं रो
उल्लेखजोग मुकाम ओळख सकालां।
मीठेस निरमोही री कहाणियां जनचेतना री अलख लियोड़ी बगत नै अरथावती
कहाणियां इण खातर मानी जावैला कै संग्रै ’अमावस, एकम अर चांद’ रै मारफत
कहाणीकार फगत आपरै पात्रां नै ई नीं, बांचणियां नै ई हूंस सूंपै। ‘अमूझता आखर’ अर
‘हवा भांग भिळी’ दोनूं कहाणियां जठै पूरी हुवै उण बगत कहाणीकार गांधी बाबै नै
बिचाळै लावै अर जिण हक खातर जूझ मांडै उण मांय गांधीवाद नै पोखै। इण सूं पैली री
पूरी कहाणी मांय आजादी पछै रो बदळतो बगत देख सकां अर सगळा दीठावां रै बिचाळै
दौड़ती-भागती सदी थकां ई जूना रंग अर ठसका निजर आवै। इणी ढाळै ‘गवाही’ कहाणी सूं
कहाणीकार मदियै जिसै लोगां री जूझ नै बिड़दावै। अठै राज रै बदळाव पछै ई उण बदळाव री
चावना पण देखी जाय सकै कै जिको आजादी पैली सुपनो हो अर बो सुपनो फगत सुपनो ई
रैयग्यो।
संग्रै री सिरैनांव कहाणी
री छेहली ओळी- ‘क्यूं डेडी अबै तौ आप म्हांरै दादी-दादौसा नै ई घरां लेय आसौ नीं?’
पूरी कहाणी रा नवा अरथ उघाड़ै। मिनख अर लुगाई सूं चालणियै परिवार मांय च्यार-माइतां
री दुरगत नै बखाणती आ कहाणी बदळतै बगत अर दीठावां रै बिचाळै दौड़ती-भागती आखी सदी
रो सांच साम्हीं राखै। एक बेटी आपरै मा-बाप अर सासु-सुसरा मांय जिको भेद करै उण
पेटै नवी बुणगट मांय रचीजी आ एक उल्लेखजोग कहाणी है। ‘बंधण’ कहाणी आपां री
संस्कृति नै पोखणवाळी कहाणी है तो कहाणियां मांय गाळ्यां सूं आज रो बदळ्यो बगत अर
बदळती संस्कृति ई दीसै। ‘हीरा महाराज’ बदळतै बगत मांय ठस्योड़ै बगत रो दीठाव राखै
कै इण सदी मांय ग्यान-विग्यान अर संचार क्रांति रै उपरांय ई अजेस गांवां मांय
झाड़-फूंक अर ठगी रा गोरखधंधा चाल रैया है। गांव अर पटवारी नै साम्हीं राखै कहाणी
‘हलकै रो हाकम’ है, इण कहाणी में पटवारी रै अन्याव नै कहाणीकार दरसावै पण कहाणी रो
मरम भींवलै री छोरी सूं संवेट लेवणो हो, जिण सूं कहाणी अणूती लंबी नीं लगाती। जिसी
करणी विसी भरणी रो पाठ पढावती आ कहाणी पटवारी सूं बेसी भींवलै री छोरी री कहाणी बणती
तो बेसी असरदारा कैयी जावती।
मीठेस निरमोही री
कहाणियां री खासियत वां रा संवाद अर संवादां भेळै साम्हीं आवतो जूण-जथारथ मान
सकां। ‘छुटकारो’ कहाणी मांय पुलिस अर पत्रकार री बदळती भाषा बिचाळै मसीन हुवतै
मिनख री पीड़ ई परतख परख सकां। इण बदळतै बगत अर दीठावां रै बिचाळै दौड़ती-भागती सदी
रो एक सांच आपां री बदळती भाषा है। अरविंद सिंह आसिया रै कहाणी संग्रै कथा एक अर
दोय छप्या। आं मांय कुल 31 कहाणियां मिलै। आप री कहाणियां में अंग्रेजी-हिंदी रो
प्रयोग आज रै बगत नै साम्हीं राखण पेटै हुयो है। समाज में भाषा रै जटिल स्वरूप सूं
आपां आयै दिन आम्हीं-साम्हीं हुवां। राजस्थानी कहाणी में भाषा रै मारफत असल
राजस्थान नै साकार करणो कोई अरविंद सिंह सूं सीखै। कथा एक सूं कथा दोय में आवतां
आवतां कहाणी कला रो विकास दीसै अर जिण कहाणियां में साव कमती सबदां मांय सांवटण री
खथावळ लागै बा कथा दोय में पूगतां घणी ठीमर निगै आवै। कहाणियां मांय प्रयोग है तो
साथै ई साथै घिस्यै-पिट्यै विसय माथै कहाणी नीं लिख’र नवा विसयां नै बपरावण री
समझदारी ई अठै देखी जाय सकै।
अरविंद सिंह आशिया री कहाणियां
बेजोड़ इण खातर मानी जावैला कै चरित्रां अर पात्रां री दीठ सूं इण ढाळै री कहाणियां
राजस्थानी में कमती मिलै। कहाणी आपरै मरम सूं अंतस मांय सदा सदा खातर जाणै कोई
ठावी ठौड़ बणा लेवै। दाखलै रूप कहाणी ‘हुंसरडाई’ री बात करूं तो इण कहाणी नै बांचता
बिचाळै अमर कहाणीकार प्रेमचंद री कहाणी ‘ठाकुर का कुआं’ याद आवण लागै। सागण बो ई
दीठाव है अर लागै बावड़ी बाबड़ी नीं, बो ई सागी कूवो है। अबकी हलकू झोंपड़ै में
कोनी बो कूवै में है। बिज्जी री लोककथा ई आंख्यां साम्हीं आवै जिण में कूवै माथै
धनगैलो माणस खुद रै बेटै रो ई भख लेय लेवै। आशिया री कहाणी रो अंस आपरी निजर करूं-
“जितरे तो लारै गांम रै चौकीदार रो फटकारो सुणीज्यो- “कुण है रे ओ बावड़ी कनै?” अर
बिण रै हाथ सूं बंधणो छूटग्यो। जतना झूंपड़ा कनी दौड़ी। ठेठ झूंपड़ा में वड’र जक
खायो। बारै कुत्तां रो कुरळावणो वत्तो व्है गियो हो।” (कथा एक पेज 16)
कहाणी ‘हुंसरडाई’ में बीछूड़ी री जोड़ी नै पूरी करण रो जिको कळाप है उण
सूं बेसी घणी-लुगाई रो प्रेम अर जीवण री अबखायां रो चितराम, जिण नै कहाणी बिना कीं
कैयां बांचणियां साम्हीं जाणै खोल’र धर देवै। हीमतो नीं रैयो तद जतना दूजी बिछूड़ी
रो कांई करै? बां दोनूं बिछूड्यां सेवट पाछी बावड़ी में बगा आवै। अठै अंग्रेजी
फिल्म ‘द मास्क’ याद आवै। किणी रचना नै बांच्यां उपरांत उण रो ओळूं में थिर हुय
जावणो रचना री सफलता मानीजै अर एक रचना में किणी बीजी जगचावी रचना री ओळूं आवणी ई,
जियां अरविंद सिंह री कहाणी में प्रेमचंद री कहाणी-कला री ओळूं रो लखाव हुवणो ई
कहाणीकार री सफलता है। इणी दीठ सूं म्हैं कैवणी चावूं कै नवा कहाणीकरां मांय पूर्ण
शर्मा पूरण अर अरविंद सिंह आशिया बेजोड़ कहाणीकार मानीजैला। कथा दोय में कहाणी ‘1947’ लंबी कहाणी है जिकी देस
री आजादी सूं जुड़ी हिंदु-मुसळमानां रै दंगा अर अंतस री प्रीत नै उजागर करै। कहाणी ‘बांझ’
में संवाद शैली रो प्रयोग है तो लुगाई-आदमी रै भेद अर सामाजिक खामियां नै घणै मरम
सूं कहाणी साम्हीं राखै। बगत री सींव सूं फगत इत्तो ई’ज कै कहाणीकार आशिया एक
भरोसैमंद कहाणीकार है अर आप सूं राजस्थानी कहाणी नै घणी घणी उम्मीद राखणी चाइजै।
आज री कहाणियां मांय युवा
कहाणीकार खुद री खरो-खरी जूण-जातरा नै, अंतस रै सुख-दुख साथै रचण री खेचळ कर रैया
है। इणी ओळ मांय मदन गोपाल लढ़ा रै कहाणी संग्रै ‘च्यानण पख’ री 17 कहाणियां नै प्रमाण
स्वरूप देख सकां। कहाणी ‘आफळ’ मांय एक कहाणी मांडण री आफळ दिखावतै इण कहाणीकार नै
कहाणी-रचाव री रचना-प्रक्रिया री कहाणी कैयी जा सकै। आ कहाणी खुलासो करै कै किणी
रचना सूं पैला किण भांत री सोचा-विचारी करणी पड़ै। लिखणो अंत-पंत वैचारिक हुवै अर
कहाणी ‘दोलड़ी जूण’ दांई कोई पण रचनाकार एकठ दोय जूण जीवै, आं दोनूं बिचाळै आपसरी
मांय रस्सा-कस्सी ई चालै। किणी रचना पेटै उण रै आगै री विगत सोच’र चिंतन करणो
लाजमी लखावै तो पाठक रूप घर-परिवार रा सदस्यां अर बीजा री ई आपरी केई केई चावनावां
अर बात-विचार हुया करै। पोथी रै सिरै नांव कहाणी ‘च्यानण पख’ में डायरी शैलो रो
प्रयोग है बठै ई युवा सोच अर संबंधां में लुगाई जात री ओळखाण अर आपै रो सवाल ई
मेहतावू बण जावै। अठै बात करां कथेसर में छपी कहाणी "आरती अग्रवाल री
गळी" री। उण कहाणी रो नांव बदळ’र संग्रै में अग्रवाल री ठौड़ प्रियदर्शिनी कर
दियो है। कहाणी आकाशावाणी में हुयै किणी अजोगै कारनामै नै उजागर करै, तो हेत रा ई
केई रंगां नै राखै। इणी ढाळै री एक दूजी उल्लेखजोग कहाणी ‘उदासी रो कोई रंग कोनी
हुवै’ मानी जावैला। बदळतो बगत एक साच है अर आपां रै आसै-पासै रा दीठावां बिचाळै
दौड़ती-भागती कहाणी नै कागद माथै थिर करणी एक कला है। किणी जथारथ सूं खवर बणै अर
कहाणी ई बण सकै। किणी जीवतै-जागतै मिनख-लुगाई का विभाग सूं जुड़ी घटना सूं कहाणी
लिखणो विवाद रो विषय बण सकै, आ विचारतां ई कहाणीकार व्यक्तिगत सींव सूं पात्र नै
बारै काढ’र आरती अग्रवाल नै आरती प्रियदर्शिनी लिखण रो मतो करियो हुवैला। “तिरस’
जिसी कहाणियां रै मारफत लढा इंटरनेट री क्रांति रो एक दीठाव रंजकता साथै राखै तो
आपरी सगळी कहाणियां री भाषा में तार तार हुवतै साच नै साम्हीं लावण रा जतन करै।
बगत री सींव मांय कीं
बातां अठै राखी, कीं बातां रैयगी। रैयगी जिकी किणी आलेख रूप आप नै किणी पत्रिका
में का म्हारी आवती पोथी मांय बांचण नै मिलैला। अबार इत्तो ई’ज। आप सगळा रो मोकळो
आभार।
(साहित्य अकादेमी अर मुक्ति कानी सूं 27-09-2015 नै बीकानेर में हुयै कार्यक्रम खातर पत्रवाचन)
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