मधु आचार्य ‘आशावादी’ की तीन नई राजस्थानी कृतियां
जलम : 27 मार्च, 1960 (विश्व रंगमंच दिवस)
शिक्षा : एम. ए. (राजनीति विज्ञान), एलएल.बी.
सिरजण : 1990 सूं राजस्थानी अर हिंदी री विविध विधावां में लगोलग लेखन। ‘स्वतंत्रता आंदोलन में बीकानेर का योगदान’ विषय पर शोध।
प्रकाशन : ‘अंतस उजास’ (नाटक); ‘गवाड़’, ‘अवधूत’, ‘आडा-तिरछा लोग’ अर ‘भूत भूत रो गळो मोसै’ (उपन्यास); ‘ऊग्यो चांद ढळ्यो जद सूरज’, ‘आंख्यां मांय सुपनो’ अर ‘हेत रो हेलो’ (कहाणी-संग्रह); ‘अमर उडीक’ अर ‘अेक पग आभै मांय’ (कविता-संग्रह); ‘सबद साख’ (राजस्थानी विविधा) रो शिक्षा विभाग, राजस्थान खातर संपादन। हिन्दी में ई न्यारी न्यारी विधावां में 26 पोथ्यां प्रकाशित।
स्थाई संपर्क : कलकत्तिया भवन, आचार्यों रो चौक, बीकानेर (राजस्थान)
ई मेल : ashawaadi@gmail.com / मो. 9672869385
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‘गवाड़’, ‘अवधूत’ अर ‘आडा-तिरछा लोग’ उपन्यासां पछै ‘भूत भूत रो गळो मोसै’ मधु आचार्य ‘आशावादी’ रो चौथो राजस्थानी उपन्यास है। इणी ढाळै ‘ऊग्यो चांद ढळ्यो जद सूरज’ अर ‘आंख्यां मांय सुपनो’ पछै ‘हेत रो हेलो’ आपरो तीसरो राजस्थानी कहाणी-संग्रै है। हिंदी में ई आपरा छव उपन्यास अर पांच कहाणी संग्रह प्रकाशित हुया है। कथा-साहित्य री आं 18 पोथ्यां रै पाण कैयो जाय सकै कै अबै राजस्थानी-हिंदी में मधु आचार्य ‘आशावादी’ एक उल्लेखजोग मुकाम माथै पूगग्या है।
अठै खास बात आ है कै हिंदी अर राजस्थानी में बै न्यारी-न्यारी रचनवां अर पोथ्यां दी है। केई राजस्थानी साहित्यकार आपरी हिंदी में लिख्योड़ी रचनावां नै राजस्थानी में पुरसता रैया है। इण दीठ सूं राजस्थानी नै साचै हियै अंगेजण रो आपरो संकळप जसजोग मानीजै। सागै ही अठै आ अखावरणी चावूं कै साहित्य अकादेमी पुरस्कार पछै केई साहित्यकार रो लेखक बंद हुयग्यो अर केई साव सुस्त-मांदा पड़ग्या पण मधुजी लगोलग लिखण वाळा में हरावळ देख्या जाय सकै। साहित्य-समाज मांय इण ढाळै री केई बातां है, जिकी चालती रैवै। कोई नीं लिखै तो बात हुवै कै क्यूं कोनी लिखै, अर कोई लिखै तद ई बात हुवै कै इत्तो बेसी क्यूं लिखै? आं बातां रो कोई छेड़ो कोनी। समाज री इसी केई बातां रो उथळो लेखक आपरी रचनावां में दिया करै। रचना में दियोड़ो उत्तर ई प्रामाणिक हुवै।
नवी कथा-साहित्य री दोय राजस्थानी पोथ्यां बाबत म्हैं म्हारी बात राखूंला। राजस्थानी कथा साहित्य मांय लोक-रंग दूजा करतां बेसी नै न्यारो मानीजै। इक्कीसवी सईकै मांय आज बदळतै कथा साहित्य में कथा-प्रयोगां खातर मधु आचार्य ‘आशावादी’ रै लेखन नै याद करीजैला। कथा-साहित्य में कोलाज अर नाटकीयता रो सांवठो प्रयोग आपरी रचनावां में मिलै। अठै एक उल्लेखजोग बात कै ‘गवाड़’ रा लेखक मधु आचार्य ‘आशावादी’ रो गवाड़ सूं बेसी प्रेम अर मोह है। आपरी नवी पोथ्यां मांय गवाड़ रा केई नवा रंग अर नवी बातां देख सकां। कैयो जाय सकै कै गवाड़ माथै कोपीराइट मधुजी रो साहित्य मांय हुयग्यो है कै कठैई किणी प्रसंग मांय गवाड़ रो नांव का गवाड़ री कोई बात आवै तो मधु आचार्य ‘आशावादी’ रो नांव अर लेखन चेतै आवै।
अबार रै बगत, समाज अर मिनखाजूण री जटिलतावां फगत दीखै जिसी कोनी। आं मांय केई मांयला आंटा हुया करै। मिनख रै मांय-बारै न्यारै-न्यारै भांत रो अंधारो है। केई आंकड़ा अठै हुया करै जिका फिट करणा पड़ै। ओ मारग सीधो सट कोनी, इण मांय केई मोड़ अर घेर-घुमाव सागै ढळाण-चढाण मिलै। असल में किणी मोटै साच नै जे आपां पूरो सावळ जाणनो का देखणो चावां तो एक तरीको ओ है कै उण नै छोटै-छोटै टुकड़ा मांय बांट’र देखां। ऐ छोटो-छोटो सांच ई सेवट किणी मोटै अर पूरै सांच नै उजागर करै। साच फगत किणी एक ओळी में नीं मिलै कै आपां सोध लां। हरेक रा आप-आप रा न्यारा-न्यारा साच हुवै, जिका घणी वेळा बगत बगत माथै बदळता ई रैवै। इण जगत रा केई साच अर उण साच री असलियत मधु आचार्य ‘आशावादी’ आपरी रचनावां में प्रगटै।
आपां उपन्यास ‘भूत भूत रो गळो मोसै’ री बात करां। साहित्य अकादेमी सूं सम्मानित आपरै उपन्यास ‘गवाड़’ (2012) मांय पैली कड़ी रो सिरैनांव हो ‘अंधारो’ अर ‘भूत भूत रो गळो मोसै’ (2017) रै पैलै अध्याय रो नांव ई ‘अंधारो’ है। नांव एक है पण कथा न्यारी न्यारी है। आं दोनूं ‘अंधारां’ बिचाळै पांच बरसां री छेती है। दुनिया मांय जित्तो साच उजास में आपां नै निजर आवै उण सूं बेसी साच किणी ऊंडै अंधारै कठैई लेखन-पत्रकार नै जोवणो पड़ै। एक रचनाकार आपरी रचना में उणी ऊंडै अर खरै साच नै उजागर करण री खेचळ करिया करै। ‘भूत भूत रो गळो मोसै’ रा भूत बै कोनी जिका रो रैवास अंधारो मानीजतो रैयो है। ‘भूत’ रो अरथाव आपां लोक-कथावां मांय जिण भूत सूं लेवां वो अलायदो है। इण उपन्यास रै मारत उपन्यासकार कैवै कै हरेक रो आपरो भूत हुवै। भूत रो अरथ आपणै जीवण मांय लारली ‘विगत’ सूं लेवां। जिको बगत गयो परो, बो आपां भेळै आपां रो भूत बण’र सागै चालै।
इण उपन्यास रो खास पात्र जद 15 बरसां रो हो तद सूं डायरी लिखण री बाण पोखै। इण रो अरथाव ओ हुयो कै उण बरस दर बरस आपरी डायरी में केई-केई भूत पाळ लिया। उपन्यास में वर्तमान अर विगत जीवण नै आम्हीं-साम्हीं राखतां, हुयै बदळाव नै समझण री चेष्टा करीजी है। उपन्यास रो नायक अर उण री घर आळी राधा आपरी चरचा अर बातां रै मिस जीवण रा केई-केई गूढ मरम खोलै। लत कोई हुवो घणी माडी हुवै। कथा-नायक री डायरी लिखण री आदत उण री लत बणगी। रोजीना बिना डायरी लिख्या, नींद कोनी आवै। जद आप साम्हीं बगत अर समाज रो लेखो-जोखो हुवै, अर आप देखां कै ओ बदळाव हुय रैयो है तो कियां हुय रैयो है? क्यूं हुय रैयो है? आखै जगत नै समझणो घणी अबखी बात है। इण दुनिया में मिनख खुद आगै बधण खातर कांई-कांई जतन करै, उण में जूना संबंध अर अपणायत, आपां री संस्कृति, जीवण-मूल्य अर संस्कार जद डिगू-डिगू होवता दीखै तद कोई रचनाकार किणी रचना नै लिखण सारू प्रेरित हुवै।
इण उपान्यास रा तीन भाग है- अंधारो, भरोसै रो भूत अर आंकड़ो फिट हुयग्यो। आं तीनां में बियां तो न्यारी न्यारी कथावां मिलै। जिकी सेवट में एक कोलाज रचै अर उपन्यास आपरी बात कैवण में सफल हुवै। अंधारो खंड में अनिता मैडम रै मिस एक लुगाई री तीस बरसां री कहाणी डायरियां रै मारफत साम्हीं है। सेठ हरख चंद अर अनिता मैडम री इण कहाणी में जूण रा केई-केई साच है। उपन्यासकार बदळतै-बिगड़तै संबंधां रो एक इसो गणित साम्हीं राखै कै उण रै मारफत केई बातां साम्हीं आवै। बदळती दुनिया रा रंग-ढंग, मतलब रा संबंध, धन रो लोभ नवै बगत री केई कहाणियां कैवै। बगत रै साच साम्हीं आपां नै जूनै सांच नै ई देखणो चाइजै। सेठ रो असल में एक भूत हो, अर अनिता रो ई एक भूत। जिको उण जूनै भूत रो गळो मोस दियो। लोक बरसां सूं मानतो आयो है कै बुरै रो अंत बुरो हुवै। नवी दुनियां रै चानणै अनिता री बेटी सुनिता री कहाणी मांय अनिता मैडम रै भूत रो खतमो हुवतो लखावै। इण अध्याय री छेहली ओळी देखो- “डायरी रै आज रै पन्नै माथै छेहली ओळी, लोग साच कैवै कै भूत ई भूत रो गळो मोसै।”
दूजै अध्याय ‘भरोसै रो भूत’ में सतीश अर उण रै दोस्त री कहाणी अर संबंधां रो एक नवो इतिहास उजागर हुयो है। सतीश बाबत उपन्यास में ओळी आवै कै ‘बो अबै भूत बणग्यो।’ इण बाबत फेर सवाल उठै कै ‘मिनख नीं रैयो कांई?’ तद ई जबाब सागण आवै कै ‘मिनख नीं रैयो, भूत हुयग्यो।’ असल में ओ उपन्यास मिनख में लोप हुवतै मिनखपणै नै दरसावै अर उण नै चेतन करण रो एक लांठो जतन है। उपन्यासकार मिनख रै मिनख बणयो रैवण री बात माथै जाणै हियै री पीड़ दरसावै कै मिनख रै खोळयै मांय मिनख मिनख क्यूं नीं रैवै? खोटा अर कूड़ा करमा नै भूंडतो उपन्यास ठीमर सुर में कैवै कै भूत रै खातमै खातर दूजो भूत बणग्योड़ो है।
सगळा सूं बेसी मरम री बात तीजै खंड में देखी जाय सकै, जठै एक लेखक री दुनिया रा केई नाचता-कूदता भूत आंख्यां साम्हीं उपन्यासकार राख्या है। ‘आंकड़ो फिट हुयग्यो’ नावं रै इण खंड में बाड़ खेत नै खावै आळी बात साची हुवती लखावै। जद साहित्यकारां री दुनिया मांय अंधारो बण जासी तद बै उजास री बात करण रा अधिकारी कियां हुयग्या। बां रै मूढै उजास री बात ई बिरथा हुय जासी। उणियारो बदळतै मिनखां री ऐ बातां लिखणियो एक लेखक इसै मिनखां नै भूत कैवतो जिका बगत-बगत माथै आपरा उणियारा बदळतो। असल कामना आ है कै आपां सगळा वरतमान में रैवां, कोई किणी रै भूत सूं परेसान ना हुवै कोई किणी रै भूत नै परेसान ना करै। उपन्यास री ऐ ओळ्यां देखां- “डायरी लिखणियो पैला सूं ही जे आपरै चावतै माथै लिखणो सरु करै तो फेरूं माड़ी बातां नीं तो दीसै अर नीं लिखीजै। फगत आरती उतारीजै। बिना तेवड़’र लिखां तद साच लिखीजै। म्हैं साच लिखण खातर ही डायरी सरु करी ही। आज तांई तो साच ही लिख्यो है, आगै री कुण जाणै।” (पेज ६६)
इण उपन्यस मांय केई निगर अर अबोट साच है। इसा भूतां नै साम्हीं लावणा उपन्यासकार री हिम्मत री बात है। हस्तीमल नै सेठ गुलगुलिया साहित्य सम्मान री खबर रै मारफत साहित्य अर समाज रा केई साच पैली बार इण उपन्यास मांय साम्हीं आया है। केई-केई चैरा आं घटनावां रै मारफत साफ चिलकण लागै। ओ उपन्यास डायरी रो सफल प्रयोग आरसी दांई करै, जिण सूं अठै असली उणियारा भेळा हुवता जावै। कथा-नायक जद आपरै बगत रा इत्ता भेद डायरी मांय राखै तो उण खातर ई सेवट अबखायां हुवै। डायरियां नै बाळ देवणो बां भूतां सूं छुटकारो उपन्यास मांय बतायो है। ‘बीती ताही बिसार आगे की सुध लेय’ रै मरम साथै ओ उपन्यास बिना किणी नै उपदेस दिया आगै बधतो जावै। उपन्यास री तीन कथावां असल मांय तीन सूत्र है। मैडम, दोस्त अर लेखक सूं आगली कड़ी खुद बांचणियो है। उपन्यास बाबत कवि-आलोचक जितेंद्र निर्मोही फ्लैप मांय लिखै - “भूत भूत रो गळो मोसै जो आप के तांई नुवा कथा-जगत में ले जावैगो, ज्या कुपातर ई स्पातर होर जी रैया छै। यो ई आज को जुग छै। ई में बगत रा सैलाण वे मनख छै ज्या को नांव अनिता, सतीश, हस्तीमल छै। ज्यो जमाना में खलनायक होता हुया बी बगत रा नायक छै। बगत रा बिगड़ता उणियारा रै सागै मनख रा चेहरा बी मुखौटा होता जा रैया छै। ई बगत में माया खास छै।”
कहाणी संग्रै ‘हेत रो हेलो’ में आठ कहाणियां है। चरित्र अर घटना प्रधान आं कहाणियां में संवाद आं रा प्राण है। मरम री पिछाण रो हुनर अर कहाणीकार रो नाटकार हुवणो आं कहाणियां नै राजस्थानी री दूजी कहाणियां अर दूजै कहाणीकारां सूं न्यारी ठौड़ देवै। छोटा-छोटा सवाल-जबाब करता आं कहाणियां रा पात्र आपरै अंतस नै होळै होळै कहाणिया मांय खोल’र बांचणियां साम्हीं धर देवै। कहाणी नै मठार-मठार ठीमर सुर मांय किणी बातपोस दांई कैवणो अर रचण रो भाव आं कहाणियां नै पठनीय बणावै। आपां रै घर-संसार अर समाज रै आसै-पासै जिकी कहाणियां नै आपां देख’र गिनार कोनी करां, बां नै कहाणीकार घणै जतन से उठावै। घणै ऊंडै तांई एक एक नै देखै-परखै अर मरम तांई पूगै। किणी घटना अर खबर सूं अलायदी आं कहाणियां में कहाणीकार जाणै मन री पुड़तां नै खोलण अर उघाड़ण रो काम करै। जीवट अर हंसू सूं भरिया केई यादगार पात्र आं कहाणियां में मिलैला। ‘कचरै री जूण’ री सुगनी री कहाणी हरेक नीं जाणै सकै। क्यूं कै बां ऊपरस सूं दिखै कोनी। उण खातर घणै नेठाव सूं उण रै अंतस उतरणो पड़ै जठै पीड़ रा दरियाव है। सुगनी हुवै का ‘हुंकारो’ रो भैरूं बै पात्र है जिका री कहाणियां लुक्योड़ी रैवै। ऐ दुनिया मांय रैवतां थकां दूजां नै सुख देवै पण खुद रो दुख खुद ई संभाळ’र राखै।
‘हेत रो हेलो’ कहाणी जिसी कहाणियां नवी लीक घालै। सुनील अर श्याम जिसा पक्का भायला अबै मिलणा मुसकल है। श्याम री विधवा अनिता सूं सुनील रो ब्याव करणो एक नुवी लीक री थरपणा मानीजैला। तो ‘धुंध अर धुओं’ कहाणी में हरिदास अर रामली रै मारफत कहाणीकार सवाल उठायो है। लुगाई रो माणक साथै भागणो इण जुग री बात मान सका। छोरी ई छोरा सूं कमती कोनी हुवै इण साच नै कहाणी ‘अंतस रो सिणगार’ उजागर करै। जिण में डॉ. दिनेश री बेटी आपरै बैन-भाई अर परिवार खातर ब्याव री ऊमर निकळ देवै। कहाणियां सीधी-सरल कोनी, हरेक कहाणी मांय जूण रा केई-केई मरम अर कथा रा आंटा सुळझता-उळझता मिलैला। जे कोई कहाणी आपरै बांचणियै रै मन मांय सवाल उपजावै का लांबै बगत तांई चेतै रैय जावै तो उण कहाणी नै सफल कहाणी कैय सकां। आं कहाणियां रो कलेवर औपन्यास संसार दांई विगतवार बात करण री आस राखै। कोई चरित्र अर आपरी मनगत, विचार अर आस्थावां सूं मोटो हुया करै। कवि-कहाणीकार अर संपादक रामस्वरूप किसान कहाणियां रै चरित्रां पेटै बात करता फ्लैप माथै लिख्यो है- “आं चरित्रां री एक भोत बड़ी खासियत कै बै किणी ई हालत में आपरै दुख-दैन्य नै नीं भुनावै। मधु आचार्य ‘आशावादी’ रा ऐ गुमेजी पात्र ‘तिलंगा तीन’ रा राम, हरि अर सत्तार, ‘‘कचरै री जूण’ री सुगनी अर ‘हुंकारै’ रो भैरूं खुद रै ज्यानलेवा दरद नै ई पराई सहानुभूति रै सिक्का बदळै बेचै कोनी। आचार्य रा करड़ा पात्र दरद नै लुकोवै है, परोटै है, जीवै है। ओ जीवट ईज आं पात्रां री अमरता है। ऐड़ा अमर पात्र प्रेमचंद अर शरत बाबू री कहाणियां री याद दिरावै। हरेक कहाणी रो पात्र बोलै कम अर करै घणो है।”
सार रूप में आं दोनूं पोथ्यां बाबत कैवणो है कै रचना रो असली मरम तो पाठक नै खुद नै पकड़णो पड़ै। म्हारी बात तो फगत आंगळी-सीध है। उम्मीद करूं कै आप आं पोथ्यां नै बांचोला अर बांच’र ई मधु आचार्य ‘आशवादी’ नै सरावोला। इत्तो जरूर है कै जे आप एकर बांचण बैठग्या तो पोथी पूरी बांचण रै जादू में जकड़ीज जासो। सरल, सहज अर प्रवाह री भाषा इण गद्य पोथ्यां री खासियत है।
सेवट में आं पोथ्यां रै प्रकाशक बाबत घणी उल्लेखजोग बात आ है कै भाई प्रशांत बिस्सा इसा प्रकाशक है जिका रै अठै सूं प्रकाशित पोथ्यां नै लगोलग साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिल रैया है। रामपालसिंह राजपुरोहित, मधु आचार्य ‘आशावादी’ अर अबकी बुलाकी शर्मा नै अकादेमी पुरस्कार मिल्यो है। बधाई इण संजोग खातर कै तीनूं लेखकां री पोथ्यां रा प्रकाशक भाई प्रशांत बिस्सा है।
संस्था अर आयोजन सूं जुड़िया सगळा भाई-बंधुवां रो घणै मान आभार कै अबकी फेर म्हनै नवी पोथ्यां माथै म्हारी बात कैवण रो मौको दियो। मंच अर आपरो आभार कै म्हनै ध्यान सूं सुण्यो। जय राजस्थानी।
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